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ओमप्रकाश चौटाला की सियासी पिच पर पुनर्वापसी से भाजपा को होगा सबसे ज्यादा राजनीतिक लाभ, जानिए कैसे

Haryana Politics जजपा और भाजपा मिलकर लड़ेंगी तो भाजपा को अधिक लाभ-हानि भले न हो लेकिन जजपा अपने बचे खुचे जाट वोट बैंक(जो ओमप्रकाश चौटाला के सक्रिय होने के बाद निश्चित रूप से खिसकेगा) में भाजपा का कुछ गैर वोटबैंक जुड़ जाने से लाभ में रहेगी।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Thu, 01 Jul 2021 09:15 AM (IST)Updated: Thu, 01 Jul 2021 01:46 PM (IST)
ओमप्रकाश चौटाला की  सियासी पिच पर पुनर्वापसी से भाजपा को होगा सबसे ज्यादा राजनीतिक लाभ, जानिए कैसे
पोलिटिकल पिच पर बुजुर्गावार की पुनर्वापसी से इनेलो का खोया जनाधार वापस लौट आने की प्रबल संभावना है।

पानीपत [जगदीश त्रिपाठी]। Haryana Politics इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो)के सुप्रीमो, पांच बार हरियाणा के मुख्यमंत्री रहे ओमप्रकाश चौटाला की दस साल की सजा पूरी होने के बाद जेल से रिहाई को लेकर इनेलो का प्रसन्न होना स्वाभाविक है, क्योंकि पोलिटिकल पिच पर बुजुर्गावार की पुनर्वापसी से इनेलो का खोया जनाधार वापस लौट आने की प्रबल संभावना है।

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यह बात भाजपा भी जानती है और मानती भी है, लेकिन दिलचस्प यह है कि भाजपा भी चाहती है कि इनेलो मजबूत हो और बुजुर्ग चौटाला उसका पुराना जनाधार वापस लाने में कामयाब हों, क्योंकि इससे सर्वाधिक लाभ में भाजपा ही रहेगी। भाजपा की इस सोच का कारण भी सब जानते हैं। हरियाणा में चार दशक से जाट-गैर जाट की राजनीति होती रही है।

गैर जाट चेहरा भजनलाल होते थे तो समय काल और परिस्थिति के अनुसार जाट चेहरा देवीलाल, बंसीलाल, ओमप्रकाश चौटाला और भूपेंद्र सिंह हुड्डा रहे। इनमें देवीलाल और उनके पुत्र ओमप्रकाश चौटाला गैरकांग्रेसी चेहरा रहे तो बंसीलाल और भूपेंद्र सिंह हुड्डा कांग्रेस का। इस समय जाट राजनीति तीन चेहरों, भूपेंद्र सिंह हुड्डा, चौधरी ओमप्रकाश चौटाला के पुत्र अभय चौटाला और पौत्र दुष्यंत चौटाला के इर्दगिर्द घूम रही है। लेकिन गैर जाट राजनीति के चेहरे की बात करें तो फिलवक्त केवल और केवल मनोहर लाल हैं। इसलिए भाजपा मानती है कि जितने अधिक कद्दावर जाट नेता एक दूसरे के विरुद्ध मैदान में होंगे, उतना ही उसका फायदे में रहना स्वाभाविक है। इसके संकेत भी मिलने लगे हैं।

ओमप्रकाश चौटाला की रिहाई के साथ ही कांग्रेस और इनेलो में युद्ध शुरू हो गया है। इनेलो के नेता हुड्डा पर आरोप लगा रहे हैं तो कांग्रेस के नेता चौटाला पर। भाजपा मुस्करा रही है। गौरतलब है कि पिछले चुनाव में जाट मतदाता भूपेंद्र सिंह हुड्डा यानी कांग्रेस और दुष्यंत चौटाला की नवगठित जननायक जनता पार्टी के बीच बंट गए थे। इनेलो को इससे तगड़ा नुकसान हुआ और उसके नेता अभय चौटाला ही केवल विधानसभा पहुंच सके। चूंकि जजपा इनेलो का ही बच्चा थी, इसलिए इनेलो का अधिकांश वोट बैंक उसके साथ चला गया।

2014 में इनेलो ने अभय चौटाला के नेतृत्व में चुनाव लडकर 24 फीसद से अधिक मत हासिल किए थे और उन्नीस सीटें जीती थीं। तब कांग्रेस 20 फीसद से अधिक मत हासिल कर 15 सीटें जीती थीं। भाजपा को 33 फीसद से अधिक मत मिले थे और वह 47 सीटें लेकर मोदी नाम के सहारे सत्ता में आ गई थी। हालांकि तब कुछ क्षेत्रों में जाट मतदाताओं ने भाजपा को भी वोट दिया, लेकिन स्वजातीय मुख्यमंत्री न मिलने के बाद उनका भी मोहभंग हो गया। दूसरी तरफ गैरजाट और मजबूती से उसकी तरफ खिंच गए। इसका कारण फरवरी 2016 में हुए जाट आंदोलन के कारण जाट और गैर जाट की खाई का चौड़ी होना भी रहा। सो, 2019 में भाजपा को गैरजाटों को सपोर्ट मिला और वह पिछले चुनाव की अपेक्षा सवा तीन फीसद की बढ़ोतरी कर छत्तीस फीसद से अधिक मत हासिल करने में सफल रही। यह बात अलग है कि उसकी सात सीटें घट गईं। फिर भी वह चालीस सीटें ले आई और दुष्यंत की जजपा के साथ उसने गठबंधन कर सरकार बना ली। दूसरी तरफ इनेलो के 22 फीसद से अधिक मत खिसक गए उसे सिर्फ लगभग ढाई फीसद मतों और एक सीट से संतोष करना पड़े।

इनेलो के वोट बैंक से बहुत बड़ा हिस्सा जजपा के खाते में चला गया और उसे 18 फीसद वोट मिले व उसके दस विधायक जीते। लेकिन इस चुनाव में सबसे अधिक फायदा कांग्रेस का हुआ। पिछले चुनाव की अपेक्षा उसका मत प्रतिशत सात फीसद से भी अधिक बढ़कर 28 फीसद से कुछ अधिक हो गया और उसके इकतीस विधायक विधानसभा पहुंचे। अब भाजपा को लगता है कि यदि चौधऱी ओमप्रकाश चौटाला का व्यक्तित्व इनेलो को वापस उसका आधार वोट दिलाने के साथ ही हुड्डा के नेतृत्व वाली कांग्रेस के जाट वोट बैंक में भी सेंध लगाएंगे। दुष्यंत के वोट बैंक पर तो एक तरह से डाका ही पड़ सकता है। लेकिन कांग्रेस के जो वोट ओमप्रकाश चौटाला के कारण इनेलो में शिफ्ट होंगे, उससे कांग्रेस की सीटें घटेंगी।

हालांकि ओमप्रकाश चौटाला के जादू से इनेलो की सीटें भी इतनी नहीं बढ़ेंगी कि वह कांग्रेस से बहुत आगे निकल जाए। दोनों की सीटें लगभग आसपास ही रहेंगी, पर सत्ता के निकट तक अकेले दम पर कोई नहीं पहुंच पाएगी। दूसरी तरफ गैर जाट वोट भाजपा के साथ जाएगा और सत्ता उसे फिर मिल जाएगी। भले ही सीटों में दो चार की ही वृद्धि हो। हालांकि अभी चुनावों में काफी समय हैं, लेकिन कथित किसान आंदोलन के कारण जाट और गैरजाट का मुद्दा ठंडा नहीं पड़ने वाला है। रही बात जजपा की तो यदि वह भाजपा के साथ मिलकर लड़ती है तो पुराना प्रदर्शन भले ही न दोहरा पाए, लेकिन उसकी स्थिति बहुत खऱाब भी नहीं रहेगी। संभव है कि पुराना प्रदर्शन भी दोहरा दै। और यह भी कि जजपा और भाजपा मिलकर लड़ेंगी तो भाजपा को अधिक लाभ-हानि भले न हो लेकिन जजपा अपने बचे खुचे जाट वोट बैंक(जो ओमप्रकाश चौटाला के सक्रिय होने के बाद निश्चित रूप से खिसकेगा) में भाजपा का कुछ गैर वोटबैंक जुड़ जाने से लाभ में रहेगी।


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