कालीन कारोबारियों का बड़ा फैसला, कारोबार से ऊपर रखा देश का सम्मान, जर्मनी के डोमोटेक्स में नहीं लेंगे भाग
देश के कालीन कारोबारियों ने बड़ा फैसला किया है। कालीन कारोबारियो ने देश के सम्मान के लिए जर्मनी के हनोवर शहर में होने वाले डोमोटेक्स फेयर 2022 में भाग न लेने का निर्णय किया है। कारपेट एक्सपर्ट प्रमोशन काउंसिल ने कहा कि इस फेयर में स्टाल नहीं लगाया जाएगा।
पानीपत, [रवि धवन]। भारत के सम्मान के लिए देश के कालीन निर्यातकों ने बड़ा फैसला किया है। निर्यातकों ने जहां से करोड़ों का कारोबार मिलता है, वहां अपना स्टाल लगाने के आफर को ठुकरा दिया है। यह कदम देश के सम्मान के लिए उठाया गया है। कारपेट एक्सपोर्ट प्रमोशन काउंसिल (सीइपीसी) ने जर्मनी के हनोवर में जनवरी में लगने वाले डोमोटेक्स-2022 में भाग लेने से इन्कार कर दिया है।
बार बदल देते हैं हाल, पीछे लगवाते हैं स्टाल, सीइपीसी ने किया बायकाट
दरअसल, हनोवर में जहां टेक्सटाइल फेयर लगता है, वहां सीइपीसी की ओर से पूरा हाल बुक कर लिया जाता है। पिछले कुछ वर्षों में देखा गया कि हनोवर में हर बार भारत का हाल बदल दिया जाता रहा। इस बार भी ऐसा ही किया गया। कारपेट कारोरियों ने इसे देश के सम्मान पर चोट कहा है। देशभर से 400 निर्यातक सीइपीसी के माध्यम से जाते हैं। इस फेयर में भदोही, जयपुर, बनारस से भी निर्यातक भाग लेते हैं। वहां से भी बेहद कम निर्यातक शामिल होंगे।
इस फेयर के लिए भारत सरकार की ओर से निर्यातकों को सीइपीसी के माध्यम से सब्सिडी पर 15 मीटर के दायरे में स्टाल लगाने का अवसर मिलता है। कारोबारियों का कहना है कि वहांं भारतीय निर्यातकों का सम्मान नहीं किया जाता। सीइपीसी को 94 प्रतिशत निर्यातकों ने इस रवैये को बेहद खराब बताया और इसे देश के सम्मान पर चोट कहा। सीइपीसी के बोर्ड ने इसी कारण डोमोटेक्स फेयर-2022 में भाग लेने से ही जर्मनी को इन्कार कर दिया। देशभर से 150 निर्यातक सीइपीसी के माध्यम से जाते हैं। अकेले पानीपत से 50 निर्यातक इसमें शामिल होते हैं।
पानीपत के निर्यातकों ने इस फैसले को सही ठहराया है। डोमाटेक्स फेयर में भदोही, जयपुर, बनारस से भी निर्यातक भाग लेते हैं। वहां से भी इस बार बेहद कम निर्यातक शामिल होंगे। हालांकि दूसरा कारण कोविड भी बताया गया है। जर्मनी में कोरोना संक्रमितों की संख्या बढ़ रही है।
इतनी महत्वपूर्ण है सीइपीसी
छोटे निर्यातक यानी दस करोड़ तक के सालाना टर्नओवर वाले निर्यातकों के लिए भी सीइपीसी बड़े कारोबार के रास्ते खोलती है। निजी तौर पर अगर निर्यातक अपना स्टाल लगाता है तो उसके दस से बीस लाख रुपये खर्च हो जाते हैं। सीइपीसी के माध्यम से तीन से चार लाख में उसे स्टाल मिल जाता है। छाबड़ा होम कांसेप्ट्स से लेकर पानीपत के बड़े निर्यातक पहले सीइपीसी के माध्यम से स्टाल लगाते थे और धीरे-धीरे कारोबार बढ़ता गया।
निर्यातक रमन छाबड़ा का कहना है कि निर्यातकों को आगे बढ़ाने में सीइपीसी मददगार होती है। लेकिन, देश का सम्मान सबसे पहले है। भारतीय निर्यातकों को अब पीछे का हाल दिया जाने लगा है। निजी खर्च पर जगह महंगी मिलती है। जब भारत सबसे बड़ा हाल बुक कराता है, जगह भी आगे ही मिलनी चाहिए। हाल बार-बार नहीं बदलने चाहिए।
निर्यातक विनीत शर्मा और सतिंद्र लाखा। (फाइल फोटो)
ये पड़ता है असर
शिवालिका रग्स के निदेशक सतिंद्र लीखा ने जागरण को बताया कि बार-बार हाल बदले जाने से बायर (खरीदाार) को परेशानी होती है। एक बार हाल नंबर चार दिया, दूसरी बार हाल नंबर 17 कर दिया। इसके बाद हाल बदलकर छह कर दिया। बायर एक बार आता है तो उसे लगता है कि अगली बार भी उसी हाल में भारतीय होंगे। लेकिन हाल बदल दिया जाता है। बायर तब भारतीय कारोबारियों तक पहुंच ही नहीं पाते।
सही फैसला लिया गया है
सेक्टर 29 पार्ट-2 इंडस्ट्रियल एसोसिएशन के प्रधान एवं निर्यातक विनीत शर्मा का कहना है कि सीइपीसी ने सही फैसला किया है। भारत का सम्मान सबसे पहले है। निर्यातकों की राय पर सीइपीसी ने डोमोटेक्स में नहीं जाने का निर्णय सुना दिया है। अब इससे पीछे नहीं हटना चाहिए।
निर्यातक नीतिन गर्ग और सीइपीसी के चेयरमैन उमर हामिद। (फाइल फोटो)
सबक सिखाना जरूरी था
सीइपीसी के चेयरमैन उमर हामीद ने जागरण से बातचीत करते हुए कहा कि आयोजकों को सबक सिखाना जरूरी था। भारत करीब 30 वर्षों से इस फेयर में भाग ले रहा है। पिछले सात से आठ वर्ष के दौरान हमारा हाल बदल दिया जाता। हद तो तब होने लगी, जब सबसे पीछे का हाल हमें देने लगे। कई बार आपत्ति दर्ज कराई गई लेकिन आयोजकों ने इसे गंभीरता से नहीं लिया। अब डोमोक्टस में भाग नहीं लेंगे।
सबसे बड़ा हाल भारत ही बुक कराता था
डोमोटेक्स में सबसे बड़ा हाल भारत ही बुक कराता है। सीइपीसी के चेयरमैन उमर ने इसकी पुष्टि करते हुए बताया कि सीइपीसी के माध्यम से तीन हजार मीटर का हाल बुक कराया जाता है। इस हाल को हिस्सों में बांटकर भारत के निर्यातकों को सौंपते हैं। भारत सरकार की ओर से निर्यातकों को सब्सिडी मिलती है।
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20 हजार करोड़ का कारोबार
भारत से कालीन का ही 20 हजार करोड़ का सालाना कारोबार होता है। विनी डेकोर के नीतिन गर्ग ने जागरण से बातचीत में कहा कि अगर फेयर में एक या दो बायर भी जुड़ जाते हैं तो खर्चा निकल जाता है। साथ ही, भविष्य के लिए भी कारोबार बढ़ने के आसार बन जाते है। वैसे, इस बार फेयर से अलग होने के फैसले का वह समर्थन करते हैं।
निजी तौर पर रास्ता खुला है
इसके वाबजूद निजी तौर पर स्टाल लगाने का रास्ता खुला है। जो कारोबारी सीइपीसी से हटकर अपना स्टाल लगाना चाहते हैं, वे अग्रिम राशि का भुगतान कर बुकिंग करा सकते हैं। उन्हें सीइपीसी के माध्यम से सब्सिडी नहीं मिलेगी। वैसे, ऐसे निर्यातकों की संख्या बेहद कम ही है।
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