एक और भू आवंटन घोटाले में फंसे हुड्डा की मुश्किलें बढ़ीं, अभय-दुष्यंत और सैलजा के खेमे में खुशी
एजीएल प्लाट आवंटने घोटाले मानेसर भूमि आवंटन घोटाले राबर्ट वाड्रा-डील घोटाले में वह अभियुक्त हैं। स्पष्ट है कि जब तक ये मुकदमे अदालत में चलते रहेंगे हुड्डा की राह मुश्किल ही रहेगी और कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व भी अब शायद उनके ऊपर उतना मेहरबान न रहे जितना अब तक रहा।
जगदीश त्रिपाठी, पानीपत। रोहतक में एक भू आवंटन में की गई अनियमितता में हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री और वर्तमान में विधानसभा में विपक्ष के नेता भूपेंद्र सिंह हुड्डा की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। इस प्रकरण की जांच सीबीआइ करेगी।
हरियाणा में कांग्रेस के सबसे शक्तिशाली नेता हुड्डा के सामने पेश आई इस मुश्किल से उनके भारतीय जनता पार्टी के नेता तो मन ही मन बल्लियों उछल ही रहे हैं, भाजपा की सहयोगी जननायक जनता पार्टी के नेताओं की प्रसन्नता की सीमा का कोई ओर-छोर नहीं होगा। लेकिन ये तो गैर कांग्रेसी पार्टियां हैं, इस भीषण गर्मी में इनके नेताओं के कलेजे को तो ठंडक मिल ही रही है, कांग्रेस के कई दिग्गजों को भी आनंद की अनुभूति हुई होगी।
फिलवक्त हुड्डा का खेमा कुमारी सैलजा को प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाने के लिए अपने कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व पर दबाव बना रहा है और उसने सैलजा को हटाने के लिए अभियान छेड़ रखा है। स्पष्ट है कि कुमारी सैलजा के खेमे को हुड्डा के खिलाफ एक और जांच के आदेश से खुशी होना स्वाभाविक है। लेकिन सबसे ज्यादा खुशी और सुकून इंडियन नेशनल लोकदल और जननायक जनता पार्टी के नेताओं अभय चौटाला और दुष्यंत चौटाला को हुआ होगा।
यद्यपि चाचा-भतीजे दोनों राजनीतिक कारणों से एक दूसरे के प्रबल विरोधी हैं, लेकिन दोनों इस बात पर एकमत हैं कि चौधरी ओमप्रकाश चौटाला और उनके बड़े बेटे अजय चौटाला को शिक्षक भर्ती घोटाले में फंसाने के पीछे हुड्डा का ही हाथ था। वैसे हुड्डा के खिलाफ पहले भी कई मुकदमे दर्ज हो चुके हैं। लेकिन इस घोटाले के बारे में प्रदेश के बहुत कम लोगों को पता होगा, यहां तक कि रोहतक के भी अधिकतर अनभिज्ञ होगे, जहां वह भूमि है। इस भूमि का अधिग्रहण करने के हरियाणा अर्बन डेवलपमेंट अथारिटी ने प्रदेश सरकार के समक्ष प्रस्ताव पेश किया था। उस समय प्रदेश के मुख्यमंत्री चौधरी ओमप्रकाश चौटाला थे।
भाजपा उनकी सरकार को समर्थन दे रही थी। लेकिन सन मार्च 2005 तक हरियाणा सरकार ने अधिग्रहण के प्रस्ताव को अपनी स्वीकृति नहीं प्रदान की। फिर विधानसभा के चुनाव आ गए और चौटाला की सरकार चली गई। मार्च 2005 में भूपेंद्र सिंह हुड्डा मुख्यमंत्री बने। हुड्डा की सरकार आते ही एक बिल्डर में आनन-फानन में अधिग्रहण के लिए प्रस्तावित भूमि पर आवासीय कालोनी विकसित करने के लिए समझौता कर लिया। उसके बाद हरियाणा सरकार ने हुडा की तरफ से आए 850 एकड़ के प्रस्ताव को आंशिक रूप से यानी 422 एकड भूमि के अधिग्रहण को स्वीकृति दे दी। उसके बाद 280 एकड़ भूमि पर बिल्डर कंपनी ने कालोनी विकसित करने के लिए लाइसेंस मांगा और जून, 2006 में उसे राज्य सरकार के टाउन एवं कंट्री प्लानिंग डायरेक्टर से इसके लिए स्वीकृत मिल गई।
फिर क्या था।अधिग्रहण से 280 एकड़ जमीन बिल्डर कंपनी के लिए छोड़ दी गई और उसके बादभूस्वामियों के पावर आफ अटार्नी रखने वालों के माध्यम से बिल्डर के नाम जमीन बेच दी गई। यद्यपि बाद में हरियाणा सरकार की तरफ से बिल्डर को जमीन देने के आदेश को सुप्रीम कोर्ट ने रद कर दिया और जमीन हुडा को देने सौंपने का आदेश दिया था। यहां उल्लेखनीय है कि मनोहर लाल सरकार ने पहले इसकी जांच खुद ही सीबीआइ से कराने का फैसला किया था, लेकिन न जाने क्यों वह पीछे हट गए। फिर एक आइएएस अधिकारी से जांच कराई, जिसने इस व्यवस्थागत खामी बतायकर सबको क्लीन चिट दे दी थी।
लेकिन इस प्रकरण में जो क्रमवार और यथाशीघ्र स्वकृतियां तत्कालीन हरियाणा सरकार की तरफ से दी गईं, वे संदेह उत्पन्न करती थीं और सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआइ को जांच करने का आदेश दे दिया । गौरतलब है कि हुड्डा इसके पहले एजीएल प्लाट आवंटने घोटाले, मानेसर भूमि आवंटन घोटाले, राबर्ट वाड्रा-डीलएफ-डील घोटाले में अभियुक्त बनाए जा चुके हैं। स्पष्ट है कि जब तक ये मुकदमे अदालत में चलते रहेंगे हुड्डा की राह मुश्किल ही रहेगी और कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व भी अब शायद उनके ऊपर उतना मेहरबान न रहे, जितना अब तक रहा।