Pulwama terror attack: पुलवामा हमले से दो दिन पहले शहीद हुए थे करनाल के लाल बलजीत, आज भी बच्चे पापा के लौटने की उम्मीद में
12 फरवरी को बलजीत के शहादत दिवस पर कोई राजनेता परिवार के बीच नहीं पहुंचा। ग्राम पंचायत व किसी सामाजिक संस्था ने भी बलजीत को सार्वजनिक तौर पर याद नहीं किया। हालांकि पिछले वर्ष गांव में खेलकूद प्रतियोगिता कराकर शहीद को श्रद्धांजलि दी गई थी।
पानीपत/करनाल [ सुशील कौशिक]। दो वर्ष पूर्व 14 फरवरी को हुए पुलवामा हमले से ठीक पहले 12 फरवरी को करनाल के घरौंडा के डिंगर माजरा गांव के जवान बलजीत सिंह ने देश के लिए सर्वोच्च बलिदान दिया। समय के साथ ग्रामीणों के दिलों से शहीद की यादें धूमिल होने लगी हैं। इसका प्रत्यक्ष उदाहरण तब दिखा, जब बलजीत के शहादत दिवस पर उनके बड़े भाई कुलदीप अकेले सरकारी स्कूल में बलजीत के नामयुक्त बोर्ड के समक्ष श्रद्धांजलि देने पहुंचे।
यह परिवार आज भी बलजीत को याद कर सिहर उठता है। बलजीत के दोनों बच्चे आज भी इस उम्मीद में हैं कि उनके पापा ड्यूटी पर गए हैं और जरूर वापस आएंगे। 12 फरवरी को बलजीत के शहादत दिवस पर कोई राजनेता परिवार के बीच नहीं पहुंचा। ग्राम पंचायत व किसी सामाजिक संस्था ने भी बलजीत को सार्वजनिक तौर पर याद नहीं किया। हालांकि पिछले वर्ष गांव में खेलकूद प्रतियोगिता कराकर शहीद को श्रद्धांजलि दी गई थी। बलजीत के पिता किशन सिंह गांव के हर नौजवान में बलजीत की झलक देखते हैं तो शहीद की पत्नी व बच्चों के दिलों में भी उनकी यादें तरोताजा हैं।
नेताओं के वादे अधूरे
12 फरवरी 2019 को बलजीत को श्रद्धांजलि देने पहुंचे नेताओं ने हरसंभव सहायता का वादा किया था। लेकिन आज तक बलजीत की पत्नी को सरकारी नौकरी, गैस एजेंसी की मांग अधूरी है। हालांकि स्कूल का नाम बलजीत के नाम पर जरूर कर दिया गया। परिवार को केंद्र सरकार ने 50 लाख रुपये की मदद भी दी थी।
ऐसे हुए थे शहीद
वाकया 12 फरवरी 2019 की सुबह का था, जब 50 राष्ट्रीय राइफल के जवानों को पुलवामा के पास तीन आतंकवादियों के घुसने की सूचना मिली। जवानों ने घेराबंदी शुरू कर दी। आतंकवादियों को भनक लग गई और उन्होंने फायरिंग कर दी। मुठभेड़ में हवलदार बलजीत अपने ऑफिसर जेसीओ के साथ सर्च अभियान की अगुवाई में शामिल थे। बलजीत ने एक आतंकवादी को मार गिराया लेकिन सामने से फायरिंग में उन्हें और साथी सिपाही को गोलियां लगीं। दोनों को अस्पताल ले जाया गया लेकिन वे शहीद हो गए।
हमेशा खलेगी कमी : अरुणा
बलजीत के शहीद होने के बाद उसके परिवार में ज्यादा बदलाव नहीं आया। दिनचर्या कमोबेश पहले जैसी ही है। बलजीत की पत्नी अरूणा कहती हैं कि पति देश के लिए शहीद हो गए। बच्चों के सिर से पिता का साया उठ गया। यह कमी कभी पूरी नहीं होगी।
पिता ने संभाला घर-परिवार
ग्रामीण नरेंद्र, रामदास, दर्शन कौशिक, राजेंद्र धीमान, प्रवीन लाठर, हरिराम लाठर, रामफल, भूपेंद्र लाठर, संजय दुलेत व अन्य का कहना है कि किशन सिंह बेटे बलजीत के शहीद होने के बाद छह माह तक घर के दरवाजे की तरफ ताकते रहते थे। कोई भी आता तो अनायास कह देते कि बलजीत, देखना कौन आया है।
वार हीरोज स्कूल में पढ़ रहे बच्चे
बसताड़ा स्थित वार हीरोज मेमोरियल स्कूल के डायरेक्टर कर्नल सुनहरा सिंह ने घोषणा की थी कि शहीद के बच्चे अर्नव व जन्नत उनके यहां निशुल्क पढ़ाई करेंगे। आठ वर्षीय जन्नत कक्षा चार में है तो अर्नव एलकेजी में पढ़ रहा है। 12 फरवरी 2019 को पूर्व सांसद स्वर्गीय अश्विनी चोपड़ा की पत्नी किरण चोपड़ा ने जन्नत के खाते में एक लाख रुपये की मदद दी। अब प्रतिमाह खाते में दो हजार रुपये आर्थिक सहायता के रूप में डलवाए जा रहे हैं।
शहीद को मरणोपरांत शौर्य चक्र
शहीद बलजीत की पत्नी अरुणा ने बताया कि 13 जनवरी को सेना ने दिल्ली में बलजीत की शहादत पर मरणोपरांत शौर्य चक्र दिया था। इसे लेने वह और भाई राहुल गए थे। गत वर्ष भी सेना ने दो पदक दिए थे। बलजीत के पिता ने बेटियों की शादी कर दी है। बड़ा लड़का कुलदीप व बलजीत संयुक्त रूप से रहते हैं। बलजीत का भतीजा भी चाचा की तरह फौज में जाना चाहता है।