Move to Jagran APP

इस बार देवउठनी में नहीं बजेगी शहनाई, गुरु ने बदला योग

चार माह के बाद पालनहार निंद्रा से जागेंगे। यह दिन काफी शुभ होगा। मंगलकार्य की शुरुआत होगी, बावजूद शहनाई नहीं बजेगी। आखिर ऐसा क्या है इस दिन।

By Ravi DhawanEdited By: Published: Thu, 15 Nov 2018 12:05 PM (IST)Updated: Sat, 17 Nov 2018 03:10 PM (IST)
इस बार देवउठनी में नहीं बजेगी शहनाई, गुरु ने बदला योग
इस बार देवउठनी में नहीं बजेगी शहनाई, गुरु ने बदला योग

जेएनएन, पानीपत: कार्तिक महीने की शुक्ल पक्ष की एकादशी का बहुत महत्व होता है। इस एकादशी को देवउठनी एकादशी कहा जाता है। इस देवउठनी एकादशी को देवोत्थान एकादशी, देव उठनी ग्यारस, प्रबोधिनी एकादशी कई नामों से जाना जाता है। ऐसी मान्यता है कि भगवान विष्णु क्षीर सागर में चार महीने की निद्रा के बाद जागते हैं। कार्तिक माह की एकादशी के दिन ही भगवान विष्णु जागते हैं इनके जागने के बाद से सभी तरह के शुभ और मांगलिक कार्य फिर से आरंभ हो जाते हैं, लेकिन इस बार शहनाई नहीं बजेगी। गुरू का कुछ ऐसा ही योग बन रहा है। जानने के लिए पढि़ए दैनिक जागरण की ये खबर।

loksabha election banner

गुरु अस्त होने के कारण इस वर्ष 19 नवंबर को पडऩे वाली देवउठनी एकादशी पर विवाह की शहनाइयां नही बजेंगी। पंडित निंरजन पराशर  ने बताया कि देवउठनी एकादशी को विवाह के लिए अबूझ व स्वयं सिद्ध मुहूर्त माना जाता है। इस बार देवउठनी एकादशी पर गुरु का तारा अस्त स्वरूप में रहेगा। जिसके कारण इस वर्ष देवउठनी एकादशी पर विवाह मुहूर्त नहीं बनेगा। 

विवाह योग में चंद्र, गुरु और शुक्र की अहम भूमिका
पानीपत के गंगाधाम मंदिर के पंडित निंरजन पराशर ने बताया कि विवाह का हमारे संस्कारों में अहम स्थान है। विवाह से ही व्यक्ति के गृहस्थ आश्रम का आरंभ होता है। विवाह के लिए एक ओर जहां योग्य जीवनसाथी की आवश्यकता होती है वहीं इस संस्कार को सम्पन्न करने के लिए एक श्रेष्ठ मुहूर्त की भी दरकार होती है। विवाह मुहूर्त सुनिश्चित करने में त्रिबल शुद्धि अर्थात चंद्र, गुरु और शुक्र की महती भूमिका होती है। 

  marriage

तीनों का गोचरवश शुभ स्थान में होना आवश्यक
विवाह के दिन चंद्र, गुरु व शुक्र का गोचरवश शुभ स्थानों में होना परम आवश्यक है। त्रिबल शुद्धि के साथ ही विवाह मुहूर्त में गुरु व शुक्र के तारे का उदित स्वरूप होना भी आवश्यक है। गुरु व शुक्र का तारा यदि अस्त है तो विवाह का मुहूर्त नहीं निकलेगा। 

देवशयनी से लेकर देवउठनी एकादशी तक वैवाहिक कार्यक्रम शुभ नहीं
हिंदू परंपरा के अनुसार सामान्यत: देवशयनी एकादशी से लेकर देवउठनी एकादशी तक विवाह का निषेध माना गया है। देवउठनी एकादशी को बिना पंचांग की सलाह लिए ही विवाह कर्म किया जा सकता है। उन्होंने बताया कि सोमवार 12 नवंबर कार्तिक शुक्ल पंचमी को गुरु पश्चिम में अस्त हो गया है। जो 7 दिसम्बर दिन शुक्रवार मार्गशीर्ष अमावस्या को पूर्व में उदय होगा। पंडित पराशर की मानें तो देवउठनी एकादशी इसके दौरान आ रही है इस लिए विवाह कार्य की हमारे ग्रंथ इजाजत नहीं देते। 


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.