Chhath Puja: छठ पर्व पर दिख रही सामाजिक एकता, किसी ने स्वीमिंग पूल दिया तो कहीं बन रहा सामूहिक प्रसाद Panipat News
व्रती 36 घंटे का उपवास करके अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य देंगी। पानीपत रिफाइनरी में तैयारी पूरी हो चुकी है।
पानीपत, [राज सिंह]। छठ पर्व को सामाजिक एकता के रूप में देखना है तो कुटानी रोड पर बने दो स्वीमिंग पूल के ईर्द-गिर्द पूर्वांचल के हजारों लोगों को जरूर देखें। 100 से अधिक परिवार पहुंचते हैं। यह 1000 लोगों से अधिक लोग इकट्ठा होते हैं। स्वीमिंग पूल कुटानी गांव के किसान हरविंद्र के हैं। यहां करीब दस वर्षों से छठ पूजा हो रही है। बिहार, जिला कटिहार निवासी गोकुल प्रसाद रोटी-रोजी की तलाश में वर्ष 1982 में पत्नी संग पानीपत आए। उन्होंने बताया कि छठ मैया की पूजा संतान प्राप्ति के लिए होती है। शुरुआती कुछ वर्षों तक हर साल इस पर्व पर गांव जाते थे। समय और पैसा अधिक खर्च होता था। इसके बाद असंध नहर पर जाने लगे, वहां भी भीड़ जुटने लगी। कुटानी निवासी हरविंद्र ने पशुओं के लिए बड़ा और परिवार के लिए छोटा स्वीमिंग पूल बना रखा है। उनसे छठ पूजा में अर्घ्य देने के लिए स्वीमिंग पूल मांगने गए। उनकी सहमति से व्रती यहां छठ करते हैं।
प्राचीन परंपरा है
गोकुल इस बारे में गोकुल प्रसाद ने श्रीराम के वनवास के बाद माता सीता, महाभारत काल में द्रोपदी ने भी छठ मैया की पूजा की थी। प्राचीन परम्परा है, इस बहाने से तमाम परिवार एक-दूसरे से मिल भी जाते हैं।
छठ मैया की पूजा करता हूं: सुरेंद्र पंडित
सुरेंद्र ने कहा कि मैं इलाहाबाद का मूल निवासी हूं,। परिवार में छठ पर्व नहीं मनाया जाता। यहां पूर्वांचल के लोगों के साथ छठ मैया की पूजा करता हूं।
खेत खाली रखते हैं : हरविंद्र किसान
हरविंद्र ने बताया कि हमारे खेतों में आकर हजारों लोग छठ पर्व मनाते हैं। उनकी खुशी से हमें भी सुकून मिलता है। अब तो वे अपने खेत का कुछ हिस्सा खाली रखते हैं ताकि पूर्वांचल के परिवार ठीक ढंग से पर्व मना सकें।
बिहार की महिलाएं शादी के बाद से ही निभाती आ रही छठ पर्व की परंपरा
पूर्वांचल के लोगों की छठ पर्व में अटूट श्रद्धा है। शादी के बाद से महिलाएं इस पर्व को मनाती आ रही है। खास बात यह है कि इस पर्व को लेकर बेटा-बेटी में फर्क नहीं किया जाता है। बेटी पैदा होने पर भी जश्न और छठ पर्व मनाया जाता है। परिवार की मुख्य महिला दो दिन तक निर्जल व्रत रखती हैं। यह सभी के लिए एक संदेश है।
बेटी पैदा होने के साथ शुरू किया था व्रत : आशा
बिहार के मीरगंज की रहने वाली आशा बीते 15 वर्षों से पानीपत में रह रही हैं। उन्होंने बताया कि बेटी पैदा होने के साथ छठ पर्व मनाना शुरू किया था। बेटा-बेटी में फर्क न करके पूरे श्रद्धाभाव से पर्व मनाती हैं। संतान के साथ परिवार पर छठी मैया की कृपा और खुशहाली बनी रहती है।
शादी के बाद से लगातार मना रही छठ
बिहार के पूर्णिया जिले के गांव मीरगंज की फूलदेवी बीते 20 वर्षों से अशोक विहार कालोनी में परिवार के साथ रहती हैं। फूलदेवी ने बताया कि शादी के बाद से ही बच्चों की सलामती और परिवार की खुशहाली के लिये छठ पर्व मनाती आ रही हैं। उनकी कृपा से बच्चे और परिवार आफत से बचा हुआ है।
बेटा नहीं, संतान की खुशहाली के लिए छठ संतना
बिहार के बनमंखी की संतना देवी ने कहा कि छठ पर्व केवल बेटे के लिये नहीं है, यह पर्व संतान के लिये है। बेटा-बेटी दोनों उसमें आते हैं। छठ पर्व को लेकर बेटा-बेटी में फर्क नहीं किया जाता है। दो दिन तक निर्जल व्रत रखते हैं।
सास के बाद बहू ने शुरू की छठ माता का व्रत
ऑफिसर कॉलोनी स्थित सूर्य नारायण मंदिर के पुजारी मोहन झा (60) कहते हैं कि करीब 25 साल की उम्र में मोतिहारी बिहार से समालखा आए थे। यहां फैक्ट्री में काम करते थे। पांच साल बाद उसका परिवार भी यहां रहने लगा। उसकी पत्नी छठ माता की व्रत करती थी। 2014 में पत्नी की मौत हो गई। अब उसकी जगह बहू पूजा देवी अपनी सास की तरह छठ माता का व्रत रखती हैं। मोहन झा के अनुसार राजाराम, लक्ष्मीकांत झा और अवधेश सिंह पूर्वांचल वासियों ने विचार विमर्श के बाद सभी के सहयोग से छठ माता का मंदिर बनाया है। मंदिर की जिम्मेदारी मैंने संभालनी शुरू कर दी। मंदिर के आसपास तालाब नहीं है। नवोदित कॉलोनी होने से श्रद्धालु आसपास के खाली प्लॉट में गड्ढा बनाकर वहीं पूजा अर्चना कर रहे हैं। तालाब के लिए जगह की जरूरत है।