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हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर के गृह मंत्री की भूमिका में 'Gabbar'

Gabbar Is Back अनिल विज को मनोहर लाल ने गृह मंत्रालय के साथ ही स्थानीय निकाय और स्वास्थ्य सहित सात विभागों की जिम्मेदारी सौंपी है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Mon, 16 Dec 2019 11:43 AM (IST)Updated: Tue, 17 Dec 2019 08:44 AM (IST)
हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर के गृह मंत्री की भूमिका में 'Gabbar'

पानीपत, सतीश चंद्र श्रीवास्तव। Gabbar Is Back: गब्बर के नाम से चर्चित अनिल विज को मनो-टू सरकार में छवि के अनुरूप गृह मंत्री की भूमिका मिल गई। अब वह एक्शन मोड में भी हैं। प्रदेश में लंबे समय से गृह मंत्रालय मुख्यमंत्री अपने पास रख रहे थे। इससे पहले 1996 में चौ. बंसीलाल ने अपने विश्वासपात्र मनीराम गोदारा को गृह मंत्रालय सौंपा था। सत्तारूढ़ दल में विधायक के रूप में सर्वाधिक अनुभव वाले विज पर सख्ती की जिम्मेदारी दिख रही है जिनसे विपक्ष के नेता पहले ही विचलित होते रहे हैं।

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जो किसी से नहीं सधे उसे विज साध देते

प्रदेश में गठबंधन की सरकार बनने तथा जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) के नेता दुष्यंत चौटाला को उप मुख्यमंत्री का पद सौंपे जाने के बाद विज को दी गई जिम्मेदारियां सरकार की कार्यनीति का संदेश देने में कामयाब रहीं। मुख्यमंत्री मनोहर लाल को पता है कि जो किसी से नहीं सधे उसे विज साध देते हैं। उनके साथ तो डॉ. अशोक खेमका जैसे आइएएस अधिकारी भी शांति से काम कर लेते हैं। पिछली सरकार में स्वास्थ्य और खेल विभाग में निर्णयों के कारण विज स्पष्ट विजन वाले नेता के रूप में छवि बनाने में कामयाब रहे। तब मुख्यमंत्री मनोहर लाल के साथ तालमेल के कुछ सवाल भी उठते थे। सत्ता में दोबारा वापसी के बाद विज में भी बदलाव दिख रहा है।

अनिल विज को गृह मंत्रालय की जिम्मेदारी

अनिल विज को मनोहर लाल ने गृह मंत्रालय के साथ ही स्थानीय निकाय और स्वास्थ्य सहित सात विभागों की जिम्मेदारी सौंपी है। इस तरह 18 विभागों वाले मुख्यमंत्री मनोहर लाल और 10 विभागों वाले उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला के बाद वह सरकार में तीसरे नंबर के मंत्री हैं। दूसरी तरफ कार्रवाई की दृष्टि से देखें तो लापरवाह कर्मचारियों को निलंबित कर जांच बैठाने में नंबर एक का दर्जा दिया जा सकता है। उनके पास प्रतिदिन 400 से अधिक शिकायतें पहुंच रही हैं। विज भी भरोसा दे रहे हैं कि शिकायतकर्ता संतुष्ट होंगे, उन्हें इंसाफ मिलेगा। पानीपत-करनाल से लेकर गुड़गांव फरीदाबाद तक में कार्रवाई हो चुकी है। उन्होंने पुलिस अफसरों की कुंडली के साथसाथ अनसुलझे केसों की फाइलें भी तलब कर ली हैं। उधर नगर निगमों में अलग ही खौफ है। बचाव के लिए शरण में आने वालों को मनोहर मुस्कुराहट के साथ मुख्यमंत्री की तरफ से कोई भरोसा नहीं मिलना फिलहाल गब्बर को और पावरफुल बना रहा है।

पानीपत पर पानीपत

तीन युद्धों के लिए चर्चित पानीपत का नाम अगर संघर्ष का पर्याय है तो आशुतोष गोवारिकर की फिल्म पानीपत पर एक बार फिर उत्तरी भारत में पानीपत हो गया है। वैसे महाराष्ट्र के लोग पानीपत शब्द का प्रयोग सत्यानाश के लिए करते हैं। जैसे, जा तेरा पानीपत हो जाए। फिल्म में दिखाए गए भरतपुर के महाराजा सूरजमल के चरित्र ने पानीपत को चर्चा में ला दिया है। उन्हें लोभी दिखाया गया है जो मराठा पेशवा सदाशिव राव से इमाद को दिल्ली का वजीर बनाने और अपने लिए आगरा के किले की मांग करते हैं। उत्तर प्रदेश, राजस्थान, दिल्ली के जाटों के साथसाथ हरियाणा के जाटों में इस चरित्र चित्रण पर उबाल है।

हरियाणा में रह रहे मराठाओं का जिक्र नहीं

परिणामत: फ्लाप हो रही फिल्म चर्चा में आ गई है। धरना-प्रदर्शन और ज्ञापनों के कारण हरियाणा के सिनेमा घरों में फिल्म के प्रदर्शन पर रोक लग गई है। उधर मध्य प्रदेश के बांदा में बाजीराव मस्तानी के वंशज सदाब बहादुर भी अपने पूर्वज शमशेर बहादुर को जंग की जगह शायर की पोशाक में दिखाए जाने से खफा हैं। युद्ध के बाद हरियाणा में रह रहे मराठाओं का जिक्र नहीं है। फिल्म पानीपत में युद्धभूमि पानीपत का कहीं भला होता नजर भी नहीं आ रहा। न यहां शूटिंग हुई और न ही यहां के ऐतिहासिक स्थलों को ही फिल्म में देश-दुनिया के सामने रखने का प्रयास किया गया है।

तीन पीढ़ियों का विवाद

यमुना आर और पार का संघर्ष हरियाणा और उत्तर प्रदेश सरकारों के तालमेल से समापन की ओर बढ़ता नजर आ रहा है। उम्मीद है कि अगले वर्ष फरवरी-मार्च तक मुख्यमंत्री मनोहर लाल और योगी आदित्यनाथ मिल- बैठकर 9265 एकड़ जमीन के बंटवारे का सही रास्ता निकाल लेंगे। वैसे यह विवाद 1966 से चलता आ रहा है, परंतु नदी की धारा बदलने के साथ विवाद और गहराता रहा है। अवैध खनन ने खूनी संघर्षों को और बढ़ावा दिया। 1974 में सर्वे के बाद अरबों-खरबों एमएलडी पानी यमुना में बह चुका है।

हरियाणा के यमुनानगर, करनाल, पानीपत, सोनीपत, फरीदाबाद और पलवल जिले यमुना नदी के एक तरफ हैं दो दूसरी तरफ उत्तर प्रदेश के सहारनपुर, बागपत, शामली और गाजियाबद जिले हैं। नदी किनारे 146 गांवों के लोगों के बीच जमीन के लिए पिछले 44 वर्षों में लगभग 1400 झड़पों के दो हजार से अधिक केस अदालतों में लंबित हैं। उम्मीद की जा सकती है कि दोनों प्रदेशों की भाजपा सरकारें तीन पीढ़ियों से चले आ रहे विवाद के स्थाई समाधान में सफल रहेंगी। हरियाणा के हिस्से में 5643 एकड़ जमीन आनी है। इसके लिए माफिया के खिलाफ विशेष सख्ती दिखानी होगी।

[समाचार संपादक, पानीपत]

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