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Sawan 2021: अंबाला का प्राचीन कैलाश मंदिर हाथी खाना, दूर-दूर से आते हैं शिवभक्‍त

अंबाला का प्राचीन कैलाश मंदिर हाथी खाना में सावन में दूसरे राज्‍यों से भी शिव भक्‍त आते है। इस शिव मंदिर में भगवान अर्धनारीश्वर की प्रतिमा आकर्षण का केंद्र रहता है। ब्रिटिश काल में मंदिर को स्‍थापित किया गया था।

By Anurag ShuklaEdited By: Published: Mon, 09 Aug 2021 08:40 AM (IST)Updated: Mon, 09 Aug 2021 08:40 AM (IST)
Sawan 2021: अंबाला का प्राचीन कैलाश मंदिर हाथी खाना, दूर-दूर से आते हैं शिवभक्‍त
अंबाला स्थित प्राचीन कैलाश मंदिर हाथी खाना।

अंबाला, जागरण संवाददाता। प्राचीन कैलाश मंदिर हाथी खाना की स्थापना सन 1844 ब्रिटिश काल में हुई थी। हाथीखाना मंदिर के शिवलालय में पूजा अर्चना करने के लिए दिल्ली, पंजाब, राजस्थान, हिमाचल, उत्तराखंड और उत्तरप्रदेश के कोने से भक्त पहुंचते हैं।

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मंदिर में दूरदराज क्षेत्रों से आए श्रद्धालु मत्था टेक कर आशीर्वाद प्राप्त करते है। इस मंदिर की मान्यता है कि सावन मास व महाशिवरात्रि पर विधि विधान से शिवलिंग पर जलाभिषेक करता है, उसको मनवांछित फल की प्राप्ति होती है।

सावन माह में कांवड़िये गंगोत्री और हरिद्वार से गंगाजल लाकर यहां पर जलाभिषेक करते हैं। इस बार कोरोना को देखते हुए कांवड़ियों के जल भरने पर पाबंदी है, बावजूद इसके जलाभिषेक करने के लिए कांवड़ के अलावा शिवभक्तों का समूह एकत्र हो रहे हैं। मंदिर परिसर में स्थापित नंदी व भगवान अर्धनारीश्वर की प्रतिमा आकर्षण का केंद्र है। इस मंदिर परिसर में सभी देवी देवताओं की प्रतिमा स्थापित की गई है।

मंदिर होता था साधु संतों का डेरा

हाथी खाना कैलाश मंदिर में अंग्रेजों के काल में फौज के हाथी बाधे जाते थे। उस समय यहा साधु संतों का डेरा होता था। जिस कारण मंदिर के नाम के साथ 'हाथीखाना' जुड़ा है। संतों की इच्छा के बाद यहा पर मंदिर का निर्माण शुरू हुआ। मंदिर के संस्थापक श्री श्री 1008 महंत श्री जय राम दास जी महाराज लायलपुर वाले थे। आगे उनके गद्दीनशीन शिष्य ही मंदिर की देखरेख करते आए हैं। वर्तमान में श्री श्री 108 महंत श्री मनमोहन दास जी महाराज गद्दी नशीन हैं। मंदिर में 40 फीट ऊंची अर्ध नारीश्वर की मूर्ति आकर्षण का केंद्र है।

चार सौ साल पुराना है रानी का तालाब का शिवालय

सेना क्षेत्र में रानी का तालाब मंदिर छछरौली रियासत के समय बनाया गया था। करीब 400 साल पहले छछरौली के राजा रणजीत सिंह का राज होता था। यह रियासत महाराजा पटियाला के अधीन होती थी। राजा रणजीत सिंह की पत्नी के शाही स्नान का स्थान होने के कारण ही इस जगह का नाम 'रानी का तालाब' पड़ा था। रानी स्नान के बाद प्रतिदिन यहां बने शिव मंदिर में पूजा के लिए आया करती थी। इस प्राचीन मंदिर की देखरेख 1999 से सेना के सुपर्द कर दी गई थी। अब सेना का पुरोहित ही यहां पूजा पाठ आदि कार्य करता है। हालांकि, 1999 से पूर्व इस मंदिर की देखरेख साधू संत किया करते थे। यह मंदिर अब सेना की 77 आ‌र्म्ड वर्कशाप की देखरेख में चल रहा है। मंदिर में सेना ने सौंदर्यीकरण की दिशा में भी खासा काम किया है।


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