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102 साल से देश की सीमाओं का पहरेदार है अंबाला एयरबेस, दुश्‍मनों के लिए और भी हुआ घातक, गर्व देता है इसका इतिहास

AirForce Day 2021 अंबाला एयरफोर्स स्‍टेशन 102 साल से देश की सीमाओं का प्रहरी है। अंबाला एयरबेस से चीन और पाकिस्‍तान दोनों बार्डर पर दुश्‍मनों की हरकतों पर नजर रहती है। राफेल लड़ाकू विमान के आ जाने से यह एयरबेस दुश्‍मनों के लिए और भी घातक हो गया है।

By Sunil Kumar JhaEdited By: Published: Fri, 08 Oct 2021 10:22 AM (IST)Updated: Fri, 08 Oct 2021 10:09 PM (IST)
102 साल से देश की सीमाओं का पहरेदार है अंबाला एयरबेस, दुश्‍मनों के लिए और भी हुआ घातक, गर्व देता है इसका इतिहास
अंबाला एयरफोसर् स्‍टेशन का इतिहास 102 साल पुराना है। (फाइल फोटो)

अंबाला, [कुलदीप चहल]। AirForce Day 2021: 102 साल पुराना अंबाला एयरफाेर्स (Ambala AirForce Station) देश की सीमाओं का सच्‍चे मायने में पहरेदार है। यहां से पाकिस्‍तान और चीन की सीमाओं की निगरानी होती है व दुश्‍मनों की हर हरकत पर पैनी नजर रहती है। अंबाला एयरबेस (Ambala Airbase) की चीन और पाकिस्‍तान के साथ युद्धों में अहम भूमिका रही है। बालाकोट एयरस्‍ट्राइक हो या काेई और अभियान इस एयरबेस ने शानदार काम किया। अब राफेल जैसे लड़ाकू विमान के आ जाने से यह दुश्‍मनों के लिए और घातक हो गया है। इसका अद्भूत इतिहास गर्व से भर देता है।

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साल 1919 में अंग्रेजों के एयर ट्रैफिक कंट्रोल से हुई थी शुरुआत, आजादी के बाद युद्धों में रहा महत्पूर्ण

अंबाला एयरबेस की शुरूआत अंग्रेजों ने 102 साल साल पहले की थी। अब यह भारत के सामरिक रणनीति में बेहद अहम हो गया है। वहीं यहां पर तैनात राफेल की 17 स्कवाड्रन गोल्डन एरो अब और घातक हो गई है। थल सेना की सिख लाइट इंफेंट्री (एलआइ) के साथ मिलकर सैन्य अभियानों व अन्य कार्यों में संयुक्त रूप से काम करेगी। ऐसे में राफेल की स्कवाड्रन और घातक होगी जबकि सिख एलआइ भी और मजबूत होगी। दोनों की जुगलबंदी को सैन्य नजरिये से काफी महत्वपूर्ण देखा जा रहा है। हाल ही में सेना प्रमुख एमएम नरवणे और एयर कमोडोर प्रदीप चाैधरी ने एफिलिएशन सेरेमनी में भाग लिया और इसके कागजातों पर हस्ताक्षर भी किए।

अंबाला एयरबेस पर तैनात राफेल लड़ाकू विमान। (फाइल फोटो)

इस तरह से बढ़ी है ताकत, राफेल की तैनाती से सामरिक दृष्टि से और महत्वपूर्ण हुआ

सैन्य जानकारों के अनुसार, राफेल की 17 स्कवाड्रन गोल्डन एरो और थल सेना की सिख एलआइ की एफिलिएशन काफी महत्वपूर्ण है। किसी भी अापरेशन को पूरा करने के लिए दोनों सेनाएं पूरा प्लान करेंगी। इसके बाद थल सेना और वायुसेना आपसी सूझबूझ के साथ इस में आगे बढ़ेगी। ऐसी परिस्थितियों में किसी भी आपरेशन के सफल होने के अत्यधिक संभावनाएं होती हैं। एक तरह से यह एफिलिएशन काफी महत्वपूर्ण है।

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जानें अंबाला एयरबेस का इतिहास

  • - वर्ष 1919 में अंबाला एयरफोर्स स्टेशन पर एयर ट्रैफिक कंट्रोल (एटीसी) बनाया गया, इस दौरान डीएच-9 व ब्रिस्टर फाइटर एयरक्राफ्ट ने आपरेट किया।
  • - प्रथम विश्व युद्ध के दौरान तत्कालीन रॉयल एयरफोर्स की 99 स्कवाड्रन ने सितंबर 1919 तथा स्कवाड्रन 114 ने नवंबर 1919 में कैंप अंबाला से आपरेट किया था।
  • - 1 अप्रैल 1938 को स्टेशन हैडक्वार्टर की स्थापना अंबाला में हुई, जबकि 28 स्कवाड्रन यहां तैनात की गई, विंग कमांडर सीएफ हॉर्सले पहले कमांडिंग आफिसर थे।
  • - 15 अप्रैल 1958 को एयर कमोडोर अर्जन सिंह ने वैंपायर जहाज लैंड कर रन-वे का शुभारंभ किया।
  • - 1954 में अंबाला एयरफोर्स स्टेशर पर 7 विंग की स्थापना हुई
  • - अंबाला वायुसेना स्टेशन से 60 के दशक में नैट, हंटर, मिस्ट्र, तूफानी और वैंपायर एयरक्राफ्ट ने आपरेट किया।
  • - भारत-पाक युद्ध के दौरान 18 व 20 सितंबर 1965 में अंबाला एयरबेस पर हमला करने के लिए पाक लड़ाकू जहाज अंबाला तक पहुंचे।
  • - भारत-पाक 1971 में हुए युद्ध के दौरान पाकिस्तान ने अंबाला एयरबेस पर 3 व 4 दिसंबर को हमला किया। अंबाला एयरबेस से छह किलोमीटर दूर शाहपुर गांव में बम गिराया।
  • - भारत-पाक 1971 के दौरान 32 स्कवाड्रन के विंग कमांडर एचएस मांगट अंबाला एयरबेस से अमृतसर रवाना हुए।
  • - 27 जुलाई 1979 काे पहला जगुआर, जिसे विंग कमांडर डीआर नाडकर्णी ने उड़ाया था, को अंबाला एयरबेस पर यूनाइटेड किंगडम से लाया गया। इसे तत्कालीन एयर कमोडोर एमएस बावा, जिन्हें हीरो आफ लौंगेवाला के नाम से भी जाना जाता है, ने इसी रिसीव किया था।
  • - वर्ष 2019 में 17 स्कवाड्रन गोल्डन एरो की स्थापना हुई, जिसको राफेल की कमान सौंपी गई है।

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वायुसेना में यह रहे शामिल लड़ाकू जहाज

वायुसेना का इतिहास काफी गौरवमयी रहा है। ब्रिटिश शासनकाल से शुरू हुआ यह सफर आज भी जारी है। वर्ष 1930 में वापिती, 1941 में हॉकर ऑडैक्स व हॉकर हार्ट, 1942 में हार्वर्ड, 1945 में टाइगर मॉथ व ऑक्स्फोर्ड, 1946 में स्पिटफायर, 1947 मे टैंपेस्ट, 1952 में वैंपायर, 1953 तूफानी, 1957 में हाकर हंटर्स, 1960 में नैट, 1969 में सुखोई एसयू 7, 1979 में जगुआर, 2002 में बायसन, 2020 में राफेल वायुसेना का हिस्सा रह चुके हैं।


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