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खेत से लिए गए सैंपल की रिपोर्ट कृषि विभाग करेगा ऑनलाइन, किसानों को मिलेगी अहम जानकारी

पोषक तत्वों की कमी का असर पैदावार पर देखा जा रहा है। भूमि की उपजाऊ शक्ति कम हो रही है। विशेषज्ञों का कहना है कि इनकी आपूर्ति व अधिक पैदावार की चाह में किसान यूरिया व अन्य रसायनिक खादों का अंधाधुंध प्रयोग कर रहे हैं।

By Naveen DalalEdited By: Published: Sat, 04 Dec 2021 04:10 PM (IST)Updated: Sat, 04 Dec 2021 04:10 PM (IST)
खेत से लिए गए सैंपल की रिपोर्ट कृषि विभाग करेगा ऑनलाइन, किसानों को मिलेगी अहम जानकारी
कृषि विभाग की सैंपलों की रिपोर्ट पोर्टल पर अपलोड करने की तैयारी।

यमुनानगर, जागरण संवाददाता। कृषि योग्य भूमि में पोषक तत्वों की स्थिति जानने के लिए कृषि एवं किसान कल्याण विभाग ने प्रक्रिया तेज कर दी है। हर खंड के पांच-पांच गांवों से सैंपल लिए जा चुके हैं। बाकी खंडों से लेने के लिए ब्लाक स्तर पर जिम्मेदारी सौंपी जा रही है। खास बात यह है कि हर खेत से लिए सैंपल की रिपोर्ट आनलाइन होगी। इसके लिए सरकार ने पोर्टल लांच किया है। इस रिपोर्ट में किसान व मिट्टी में पोषक तत्वों की स्थिति का विवरण होगा। इसका मकसद रिपोर्ट के आधार पर आगामी योजनाएं बनाना बताया जा रहा है। विभाग के उच्चाधिकारियों के मुताबिक अब तक लिए गए सभी सैंपलों की रिपोर्ट पोर्टल पर अपलोड करने की तैयारी है।

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इन पोषक तत्वों की हो रही कमी

कृषि विशेषज्ञों के मुताबिक कृषि योग्य भूमि के अंदर आर्गेनिक काबन (जैविक अंश)  .75 प्रतिशत से अधिक होना चाहिए जबकि यह .04-.05 तक देखा जा रहा है। फास्फोरस की मात्रा 10 से 20 किलो प्रति हेक्टेयर होनी चाहिए जबकि आठ से 15 किलो प्रति हेक्टेयर देखी जा रही है। पोटाश की यदि बात की जाए तो 150-300 किलो प्रति हेक्टेयर होनी चाहिए, लेकिन यह 125 से भी कम है। इसी तरह जिंक .06 पीपीएम से अधिक होनी चाहिए। इसकी मात्रा कहीं कम हो रही है तो बहीं बढ़ रही है।  

यह हो रहा नुकसान 

पोषक तत्वों की कमी का असर पैदावार पर देखा जा रहा है। भूमि की उपजाऊ शक्ति कम हो रही है। विशेषज्ञों का कहना है कि इनकी आपूर्ति व अधिक पैदावार की चाह में किसान यूरिया व अन्य रसायनिक खादों का अंधाधुंध प्रयोग कर रहे हैं। जिससे फसल पर आने वाली लागत भी बढ़ रही है और फसल में कीड़ों व बीमारियों का प्रकोप भी बढ़ रहा है। वातावरण लगतार प्रदूषित हो रहा है। 

ऐसा करें तो बेहतर 

कृषि विज्ञान केंद्र दामला के वरिष्ठ संयोजक डा. एनके गोयल के मुताबिक किसान जिंक, पोटाश, गोबर की खाद, कंपोस्ट, दाल वाली फसलें व ढेंचा की बिजाई करें। किसी भी फसल के अवशेषों को जलाएं नहीं बल्कि उनका खेत में ही प्रबंधन करें। ऐसा करने से आर्गेनिक कार्बन यानि जैविक अंश की मात्रा बढ़ेगी।  खेत में लाभदायक जीवाणु भी बढ़ेंगे। किसान जागरूकता के अभाव में खेतों में ही फसल अवशेषों को  आग लगा देते हैं। जिसका असर भूमि की उर्वरा शक्ति पर भी देखा जाता है। जमीन ठोस हो जाती है। साथ ही लागत भी बढ़ जाती है। इसलिए किसान का इस दिशा में जागरूक होना जरूरी है। 

सैंपल लेने की प्रक्रिया तेज

कृषि एवं किसान कल्याण विभाग के उप निदेशक डा. जसविंद्र सैनी ने बताया कि मृदा जांच को लेकर विभाग पूरी तरह संजिदा है। लगातार सैंपल लिए जा रहे हैं। हर ब्लाक से पांच-पांच कवर किए जा चुके हैं। सभी सैंपलों की रिपोर्ट व किसान संबंधी जानकारी पोर्टल पर अपलोड की जाएगी। विभागीय स्तर पर सैंपल लिए जाने की प्रक्रिया भी तेज कर दी गई है।


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