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एक योजना ऐसी भी, गड्ढों से जेब भरने का मौका

सरकार ने एक योजना ऐसी बनाई है जिससे शिकायतकर्ता को हर हाल में लाभ होगा चाहे गड्ढे भरें या न भरें। जेब जरूर भर जाएगी।

By Anurag ShuklaEdited By: Published: Mon, 02 Mar 2020 04:35 PM (IST)Updated: Mon, 02 Mar 2020 04:35 PM (IST)
एक योजना ऐसी भी, गड्ढों से जेब भरने का मौका
एक योजना ऐसी भी, गड्ढों से जेब भरने का मौका

पानीपत, जेएनएन। एक प्रसिद्ध प्रेरणात्मक वाक्य है, ‘मौके हर जगह हैं, बस आप पहले उन्हें ढूंढो।’ कमाई के लिए मौके ही मौके देने जा रही है मनोहर सरकार। करना इतना ही है, जहां गड्ढा दिखे, वहीं फोटो खींच लें। ‘हरपथ’ एप पर अपलोड कर दें। 96 घंटे इंतजार करें। गड्ढा अगर नहीं भरता तो आपके खाते में पहुंच जाएंगे सौ रुपये। ठेकेदार पर जुर्माना लगेगा एक हजार, इसीमें से सौ रुपये होंगे आपके। एक अप्रैल से ये मौका स्कीम शुरू हो रही है। गली की तो बात बहुत दूर, जीटी रोड पर ही गड्ढे हफ्तों नहीं भरते। बनाने के लिए उखाड़ दी गई सड़क महीनों-महीनों तक नहीं बनती। आप अगर बेरोजगार हैं तो गड्ढे खोजकर जेब भरिये। नौकरीपेशा हैं तो साइड बिजनेस का मौका है। हां, ठेकेदार जरूर आपकी एक गड्ढा फोटो पर स्व.जगजीत सिंह को याद करेगा, ‘जिन जख्मों को वक्त भर चला है, तुम क्यों उन्हें छेड़े जा रहे हो।’

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बेटी के हम गुनहगार 

हाल ही में एक रिपोर्ट आई। पति-पत्नी के बीच कलह की बड़ी वजह बना फोन। पानीपत में 40, यमुनानगर में 48 फीसद मामलों में मोबाइल फोन इन दोनों के बीच ‘वो’ बन गया। बात अब इससे भी ज्यादा बढ़ रही है। बेटी को फोन नहीं दिलाने पर सास ने दामाद के सामने ही छह महीने की फूल सी नातिन को पटककर मार डाला। कुछ क्षणों के आवेश ने इतना बड़ा गुनाह करा दिया। मोबाइल का नशा एक बड़ा रोग बन रहा है। मनोचिकित्सकों ने एक रिपोर्ट में बताया कि किस तरह इसकी जकड़न बढ़ रही है। जिस तरह से दूसरे रोगों के लिए स्वास्थ्य जांच कैंप लगते हैं, क्यों नहीं इस नशे को दूर करने के लिए विकल्प दिए जाते। वैसे आप इस पर अमल कर सकें तो समाधान हो सकता है, ‘हर खुशी नहीं मिलती मोबाइल के पास, कुछ  वक्त बैठा करो परिवार के साथ।’  

शिवांस ऐसे बनते ही क्यों हैं

हवा में पिस्तौल लहराता छात्र शिवांस एकाएक प्रिंसिपल के पास पहुंचता है। देखते ही देखते गोलियां बरसाकर उनकी हत्या कर देता है। प्रैक्टिकल परीक्षा के लिए तैयारी नहीं करने पर प्रिंसिपल ने उसे टोक दिया था। इसी बात से उसने ये रास्ता अपना लिया। पिस्तौल कहां से लाया, जब ये सवाल उठा तो पता चला कि वो उसके पिता की थी। अगर इसे छोटी घटना या सामान्य केस समझेंगे तो हमारे समाज में बच्चे इसी तरह बड़े होकर शिवांस ही बनते जाएंगे। जब वो बाहर झगड़ा करके लौटा, तब किसी ने उसे नहीं समझाया। जब डीजे पर पिस्तौल लहराते नाचता, तब किसी ने नहीं टोका। हमें ऐसे शिवांस नहीं चाहिए, ऐसे पेरेंट्स भी नहीं बनना। यमुनानगर के जिस स्कूल में हत्या हुई, उसका नाम है, स्वामी विवेकानंद। क्यों नहीं हम स्वामी विवेकानंद की ये बात याद रखते, ‘बच्चों पर निवेश करने की सबसे अच्छी चीज है, अपना समय और संस्कार।’

विधानसभा में मार्केटिंग तो हो गई

पानीपत ग्रामीण से जनता के नुमाइंदे हैं महीपाल ढांडा। समालखा से विधायक हैं धर्म सिंह छौक्कर। पहले हैं भाजपाई और दूसरे कांग्रेसी। दोनों में एक बात समान है, चेहरे पर हमेशा मुस्कुराहट रहती है। अनजान का भी गर्मजोशी से स्वागत करते हैं। दूसरी बार जीतकर आए ढांडा को उम्मीद थी मंत्री बनने की। पर नाम कट गया। तब भी कहते रहे, ‘जाहि विधि राखे राम, ताहि विधि रहिये।’ पर बजट सत्र में दोनों दूसरे ही रूप में नजर आए। छौक्कर ने किसानों को गन्ने की फसल के भुगतान का मामला उठाया तो ढांडा ने उन्हें बीच में टोक दिया। यह बात तू-तड़ाक तक पहुंच गई। अंदर की बात ये निकली, ढांडा को मनोहर संग सुर बैठाने थे, छौक्कर को अपनी पकड़ मजबूत करनी थी। अब इनके हमदर्द ही कह रहे, मार्केटिंग हो गई। क्या मालूम ढांडा को झंडी वाली कार और छौक्कर को जीटी बेल्ट का नेता बना दिया जाए।


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