हरियाणा में काेरोना संकट में वेतन कटौती के बीच महिलाएं पति से मांग रहीं गुजारा भत्ता
हरियाणा में कोराेना संकट में वेतन कटौती से बड़ी समस्या खड़ी हो गई है। इसके बाद महिलाएं गुजारा भत्ता मांग रही हैं। वे अपने पति से गुजारा भत्ता लेने के लिए शिकायतें दे रही हैं।
चंडीगढ़, जेएनएन। कोरोना महामारी के दौर में निजी क्षेत्र में रोजगार छिनने से लेकर वेतन में कटौती और बॉस द्वारा परेशान करने की शिकायतों का ग्राफ बढ़ गया है। कई मामलों में महिलाएं पति से गुजारा भत्ते की मांग को लेकर हरियाणा मानवाधिकार आयोग का दरवाजा खटखटा रहीं, लेकिन आयोग के हाथ कानूनन बंधे हैं। मानवाधिकार आयोग केवल पब्लिक अथॉरिटी से जुड़े केस ही सुन सकता है। फिलहाल मानवाधिकार आयोग ने मानवाधिकारों के प्रति जनचेतना के लिए मुहिम छेड़ी हुई है।
हरियाणा मानवाधिकार आयोग के पास पहुंच रही ढेरों शिकायतें, कानूनन बंधे हाथ
कई दर्जन मामलों में खुद संज्ञान ले पीडि़तों को लाखों रुपये का मुआवजा भी दिलाया है। शिक्षा, चिकित्सा, ट्रैफिक जैसे मुद्दों पर संज्ञान लेकर कई अहम आदेश जारी कर चुके मानवाधिकार आयोग की योजना लंबित मुकदमों को तेजी से निपटाने और पीडि़तों को त्वरित न्याय दिलाने की है। आयोग में पहुंच रहे केसों की प्रकृति और भविष्य की योजनाओं पर आयोग के सदस्य दीप भाटिया से दैनिक जागरण के राज्य ब्यूरो में प्रिंसिपल कॉरसपोंडेट दयानंद शर्मा ने विशेष बातचीत की। प्रस्तुत हैं मुख्य अंश:-
-आयोग में कितने केस विचाराधीन हैं और किस तरह के?
आयोग के पास इस साल एक जनवरी 31 जुलाई तक 1183 शिकायतें मिली थी। इनमें से अधिकतर का निपटारा कर दिया गया है। इनमें से 480 शिकायत केवल पुलिस के खिलाफ थी। इसके अलावा आयोग ने दर्जनों मामलों में संज्ञान लेकर मुआवजा भी दिलवाया।
-आयोग के पास अधिकतर किस तरह की शिकायतें आती हैं?
कोरोना और लॉकडाउन ने आयोग के पास आने वाले शिकायतों का दायरा ही बदल दिया। लॉकडाउन के दौरान नौकरी गंवाने या वेतन कम होने के शिकायत आयोग के पास काफी संख्या में आ रही हैं। हालांकि इस तरह की शिकायत आयोग के दायरे में नहीं आती और हमें ऐसी शिकायतें वापस भेजनी पड़ती हैं। इसके अलावा मानवाधिकार आयोग को हर क्षेत्र और तबके से शिकायतें मिल रही हैं। इनकी आधी संख्या पुलिस उत्पीडऩ या पुलिस के गलत रवैये की होती हैं। इसके चलते कई बार राज्य के पुलिस प्रमुख को निर्देश जारी किए हैं। बीपीएल कार्ड और पेंशन सहित अन्य सरकारी योजनाओं का लाभ न मिलने की शिकायतें भी काफी हैं।
-आयोग की क्या ख्ुाद की कोई जांच टीम है?
मानवाधिकार आयोग जांच के लिए पूरी तरह से पुलिस पर निर्भर करता है। पुलिस का एक अधिकारी आयोग की एक जांच टीम मुखिया होता है। आयोग को जब लगता है कि अमुक विषय की जांच जरूरी है तो वह जांच कराता है।
-वे बड़े मसले, जिन पर संज्ञान लेकर आयोग ने खुद कार्रवाई की हो?
जेलों में मानवाधिकार हनन व स्वास्थ्य विभाग की काफी शिकायतें मिलती थी। इसलिए आयोग ने जेलों की जांच का काम शुरू किया। स्वास्थ्य विभाग के खिलाफ शिकायत व संज्ञान लेकर भी आयोग ने कई महत्वपूर्ण आदेश पारित किए हैं। इसके अलावा स्कूलों पर आयोग ने कई बार संज्ञान लेकर आदेश जारी किए हैं।
-लोगों की शिकायत पर आपका अनुभव?
आयोग के पास कई शिकायतें ऐसी आती हैं जिन पर हम चाह कर भी कोई कार्रवाई नहीं कर सकते क्योंकि कानूनी तौर पर वे हमारे अधिकार क्षेत्र से बाहर की होती हैं। कई ऐसी शिकायतें हमें मिलती हैं जो निचली अदालत में चल रहे सिविल सूट या अन्य मामले की होती हैं। जब लोगों को वहां कोई राहत नहीं मिलती तो वे जज के खिलाफ ही आयोग में शिकायत कर देते हैं। अनपढ़ या ग्रामीण लोगों को तो छोडिय़े, पढ़े-लिखे लोग भी शिकायत लेकर पहुंच रहे कि अधिकारी ने उनका प्रमोशन नहीं किया या वेतन नहीं बढ़ाया। प्राइवेट कंपनी के कर्मचारी भी आयोग में शिकायत करते रहते हैं, जबकि यह हमारे अधिकार क्षेत्र से बाहर की बात है। डाक से कई शिकायत तो हमारे पास ऐसी आती है जो राष्ट्रपति से लेकर हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस तक भेजी होती है। उसकी कापी भी हमे भेज दी जाती है। इस तरह की शिकायत पर आयोग कोई कार्रवाई नहीं कर सकता। आयोग केवल पब्लिक अथॉरिटी के खिलाफ शिकायत सुनने की अधिकार रखता है।
-आयोग के पास जो पावर है, क्या वह पर्याप्त है?
आयोग को अभी कई स्तर पर शक्ति देने की जरूरत है। हम पूरी तरह से पुलिस जांच पर निर्भर करते हैं। जांच के लिए अन्य टीम की संभावना होनी चाहिए। सीबीआइ, बिजली की कोर्ट की तर्ज पर मानवाधिकार कोर्ट का मामला सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है। अगर यह लागू हो जाए तो आयोग मानवाधिकार के लिए और अच्छे ढंग से काम कर पाएगा।
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