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नहीं बंटेगी नान क्रीमीलेयर, सभी को मिलता रहेगा समान आरक्षण, सुप्रीम कोर्ट ने खारिज किया हरियाणा सरकार का आदेश

नान क्रीमी लेयर में तीन लाख रुपये तक की आय वालों को नौकरियों और दाखिलों में प्राथमिकता देने के हरियाणा सरकार के आदेश पर सुप्रीम कोर्ट की रोक लगा दी है। छह लाख रुपये तक सालाना कमाई वाले नान क्रीमीलेयर में वर्गीकरण को हाईकोर्ट भी असंवैधानिक ठहरा चुका है।

By Kamlesh BhattEdited By: Published: Tue, 24 Aug 2021 07:20 PM (IST)Updated: Wed, 25 Aug 2021 08:13 AM (IST)
नहीं बंटेगी नान क्रीमीलेयर, सभी को मिलता रहेगा समान आरक्षण, सुप्रीम कोर्ट ने खारिज किया हरियाणा सरकार का आदेश
हरियाणा में नान क्रीमीलेयर को बांटने संबंधी सरकार का आदेश खारिज। सांकेतिक फोटो

राज्य ब्यूरो, चंडीगढ़। हरियाणा में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) की नान क्रीमीलेयर को दो भागों में बांटने के प्रदेश सरकार के पांच साल पुराने आदेश को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया है। नान क्रीमीलेयर में छह लाख रुपये सालाना की जगह तीन लाख रुपये से कम आय वालों को प्राथमिकता देने के आदेश को पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट द्वारा खारिज किए जाने के बाद प्रदेश सरकार ने सर्वाेच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था।

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सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को फैसला सुनाते हुए प्रदेश सरकार द्वारा 17 अगस्त 2016 को जारी अधिसूचना को रद कर दिया, जिसके तहत तीन लाख रुपये तक आय वाले ओबीसी परिवारों को शिक्षण संस्थाओं में दाखिले और नौकरियों में वरीयता दी गई थी। प्रदेश सरकार को तीन महीने में नई अधिसूचना जारी करनी होगी। हालांकि जस्टिस एल नागेश्वर राव और जस्टिस अनिरुद्ध बोस की पीठ ने 17 अगस्त 2016 और 2018 की अधिसूचनाओं के आधार पर हुए दाखिलों और नियुक्तियों को बाधित नहीं करने का भी निर्देश दिया है।

वर्ष 2016 की अधिसूचना के मुताबिक मेडिकल कालेजों में प्रवेश के लिए तीन लाख रुपये तक की वार्षिक आय वाले ओबीसी युवाओं को नान क्रीमीलेयर के भीतर वरीयता दी गई है। इससे पहले हाई कोर्ट ने भी सात अगस्त 2018 को दिए अपने फैसले में नान क्रीमीलेयर सेगमेंट के भीतर तीन लाख रुपये से कम की वार्षिक आय और तीन से छह लाख रुपये के भीतर सालाना आय के रूप में उप-वर्गीकरण करने वाली सरकारी अधिसूचना को असंवैधानिक करार दिया था।

हाई कोर्ट ने आदेश में कहा था कि केवल आर्थिक मानदंडों पर नान क्रीमीलेयर के भीतर उप-वर्गीकरण को सही ठहराने के लिए कोई डाटा नहीं था। हाई कोर्ट के जस्टिस महेश ग्रोवर और जस्टिस महाबीर सिंह सिंधु की खंडपीठ ने फैसले में कहा कि छह लाख रुपये से अधिक सालाना आय वालों को क्रीमीलेयर के रूप में माना जाता है। ऐसे में बिना किसी इनपुट के पिछड़ों की सूची में उप वर्गीकरण पिछड़े वर्गों के बीच समान वितरण के दरवाजे बंद कर देता है। सीधे यह नहीं माना जा सकता कि जिन लोगों की आय तीन लाख के ऊपर है, वे सामाजिक पिछड़ेपन से ऊपर उठ चुके हैं।

ऐसे समझिये हरियाणा का क्रीमीलेयर

क्रीमीलेयर ओबीसी की वह कैटेगरी है, जिसे आर्थिक रूप से सक्षम माना जाता है। इस कैटेगरी के लोगों को नौकरी और शिक्षा में 27 फीसद आरक्षण नहीं मिलता। मौजूदा नियमों के अनुसार छह लाख रुपये या इससे अधिक की सालाना आय वाले परिवारों को क्रीमीलेयर की कैटेगरी में रखा जाता है।


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