हरियाणा में 198 किलोमीटर बहेगी सरस्वती नदी की जलधारा, जानें कहां-कहां से गुजरेगी
Saraswati River हरियाणा में सरस्वती को पुनर्जीवित कर धरातल पर लाने की मुहिम में तेेजी आ गई है। हरियाणा में विलुप्त हो चुकी सरस्वती नदी कई इलाकों से गुजरेगी। सरस्वती नदी की जलधारा हरियाणा में 198 किलोमीटर में बहेगी।
राज्य ब्यूरो, चंडीगढ़। प्राचीन काल में विलुप्त हुई वेदों में उल्लिखित सरस्वती नदी को पुनर्जीवित कर धरातल पर लाने की मुहिम में आदिबद्री डैम अहम साबित होगा। सबकुछ योजना के अनुसार हुआ तो प्रदेश में सरस्वती की जलधारा 198 किलोमीटर बहेगी। यमुनानगर के आदिबद्री से शुरू होकर पवित्र नदी कुरुक्षेत्र, कैथल से होते हुए पंजाब के पटियाला के सतड़ाना के पास घग्गर नदी में मिलेगी। इससे आगे नदी की जलधारा को गति देने का काम उन राज्यों का है, जिनके बीच से होकर सरस्वती ने प्रवाहित होने के लिए अपना मार्ग बना रखा है।
आदिबद्री से शुरू होकर कुरुक्षेत्र, कैथल से होते हुए पटियाला के सतड़ाना के पास घग्गर नदी में मिलेगी
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इसी नदी के किनारे हजारों वर्ष पुराने वेद-पुराणों की रचना हुई थी। पूरे विश्व को शिक्षा और संस्कारों का ज्ञान भी यहीं से मिला। नदी को पुनर्जीवित करने के लिए डैम, झील व बोरवेल सहित कई प्रोजेक्टों पर काम चल रहा है। नदी के बहाव क्षेत्र का पता लगाने के लिए सरस्वती धरोहर बोर्ड और तेल एवं प्राकृतिक गैस निगम (ओएनजीसी) मिलकर 100 कुएं खुदवाएंगे। अगले एक साल में सरस्वती के उद्गम स्थल आदिब्रदी से लेकर कुरुक्षेत्र के पिहोवा तक 20 बड़े जलाशय (सरोवर) बनाने का लक्ष्य है ताकि इनमें बरसाती पानी का संचय कर नदी में तेज गति से जल प्रवाह सुनिश्चित किया जा सके।
सरस्वती बोर्ड और ओएनजीसी खुदवाएंगे 100 कुएं, आदिब्रदी से पिहोवा तक 20 बड़े जलाशय बनेंगे
सरस्वती नदी में गिरने वाले सभी 23 छोटे चैनलों व नालों को सरस्वती नदी का नाम दिया गया है। प्रदेश की पांच नदियों का जल सरस्वती नदी की धारा को प्रवाह देगा। वर्तमान में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान (इसरो), जियोलाजिकल सर्वे आफ इंडिया (जीएसआइ), ओएनजीसी, नेशनल इंस्टीट्यूट आफ हाइड्रोलाजी (एनआइएच) रुड़की, भाभा एटामिक रिसर्च सेंटर (बीएआरसी), सरस्वती नदी शोध संस्थान जैसे 70 से अधिक संगठन सरस्वती नदी विरासत के अनुसंधान कार्य में लगे हैं।
अनुसंधान, दस्तावेजों, रिपोर्ट और वैज्ञानिक तथ्यों के आधार पर यह साबित हो गया है कि सरस्वती नदी का प्रवाह भूगर्भ में अब भी आदिबद्री से निकलकर गुजरात के कच्छ तक चल रहा है। इसरो के पुराने मानचित्रों के अनुसार सरस्वती नदी योजना को अंतिम रूप दिया गया है।
सरस्वती नदी के विकास को लेकर प्रदेश सरकार ने 388 करोड़ रुपये मंजूर किए हैं। गंदगी से अटी पड़ी सरस्वती में पानी के प्रवाह से पहले उसे स्वच्छ करने का मास्टर प्लान भी तैयार है। कुरुक्षेत्र के पिपली से लेकर गीता की उद्गम स्थली ज्योतिसर तक सफाई अभियान चलाया जाएगा। शाहाबाद से लेकर इस्माईलाबाद के जलबेड़ा तक मारकंडा के ओवरफ्लो पानी को भी संचित किया जाएगा। इसको लेकर बीबीपुर झील में बड़ा जलाशय बनाने की योजना है।
सरस्वती नदी का यह है धार्मिक आधार
महाभारत के अनुसार सरस्वती हरियाणा में यमुनानगर से थोड़ा ऊपर और शिवालिक पहाड़ियों से थोड़ा-सा नीचे आदिबद्री नामक स्थान से निकलती थी। इसी नदी के किनारे ब्रह्मावर्त (कुरुक्षेत्र) था। विभिन्न शोधों के अनुसार यदि हड़प्पा सभ्यता की 2600 बस्तियों को देखें तो वर्तमान पाकिस्तान में सिंधु तट पर मात्र 265 बस्तियां थीं, जबकि शेष अधिकतर बस्तियां सरस्वती नदी के तट पर मिलती हैं।
शोध एजेंसियों के अनुसार सरस्वती नदी के किनारे 633 पुरातत्व स्थानों में 444 हरियाणा में हैं। धर्मग्रंथों में सतलुज, ब्यास, रावी, चिनाब और झेलम नदियों के समूह को पंचनद कहा गया है। इन पांचों के साथ जब सिंधु और सरस्वती नदी आ मिलती हैं तो इसे सप्तसिंधु कहा गया।
सरस्वती नदी के होने का यह है वैज्ञानिक आधार
कई वैज्ञानिक आधार हैं जिनके अनुसार सरस्वती नदी प्राचीन समय में हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, गुजरात और राजस्थान में बहती थी। नासा के मुताबिक लगभग 5500 साल पहले धरती पर सरस्वती नदी का अस्तित्व था। यह नदी लगभग आठ किलोमीटर चौड़ी और 1600 किलोमीटर लंबी थी। सरस्वती नदी आखिर में जाकर अरब सागर में विलीन हो जाती थी।
करीब चार हजार वर्ष पहले प्राकृतिक परिवर्तनों के कारण सरस्वती नदी विलुप्त हो गई। विज्ञान के मुताबिक जब नदी सूखती है तो जहां-जहां पानी गहरा होता है, वहां-वहां तालाब या झीलें रह जाती हैं। ये तालाब और झीलें अर्धचंद्राकार शक्ल में पाई जाती हैं। आज भी कुरुक्षेत्र में ब्रह्मसरोवर या पेहवा में इस प्रकार के अर्धचंद्राकार सरोवर देखने को मिलते हैं, लेकिन ये भी सूख गए हैं। यह सरोवर प्रमाण हैं कि इस स्थान पर कभी कोई विशाल नदी बहती रही थी और उसके सूखने के बाद झीलें बन गईं।