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Baroda byelection 2020: चौटाला से छीनकर बरोदा को गढ़ बनाने वाले हुड्डा की प्रतिष्ठा दांव पर, भेदना होगा चक्रव्‍यूह

Baroda byelection 2020 पूर्व मुख्‍यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के लिए बरोदा उपचुनाव में अपनी प्रतिष्‍ठा बचाना बड़ी चुनौती है। हुड्डा से पूर्व सीएम ओमप्रकाश चौटाला से छीनकर बरोदा को अपना गढ़ बनाया था। उनकाे अपना गढ़ बचाने को अन्‍य दलों का चक्रव्‍यूह भेदना होगा।

By Sunil Kumar JhaEdited By: Published: Tue, 27 Oct 2020 02:31 PM (IST)Updated: Tue, 27 Oct 2020 02:31 PM (IST)
Baroda byelection 2020: चौटाला से छीनकर बरोदा को गढ़ बनाने वाले हुड्डा की प्रतिष्ठा दांव पर, भेदना होगा चक्रव्‍यूह
पूर्व मुख्‍यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा अपने बेटे दीपेंद्र सिंह हुड्डा के साथ रणनीति चर्चा करते हुए। (फाइल फोटो)

चंडीगढ़, [अनुराग अग्रवाल]। Haryana, Baroda By election 2020 : हरियाणा के दो बार मुख्यमंत्री रह चुके भूपेंद्र सिंह हुड्डा के लिए बरोदा का रण प्रतिष्ठा का सवाल बना हुआ है। बरोदा कभी पूर्व उप प्रधानमंत्री ताऊ देवीलाल और उनके बेटे इनेलो सुप्रीमो ओमप्रकाश चौटाला का गढ़ रहा है। करीब 11 साल पहले कांग्रेस खासकर हुड्डा परिवार ने बरोदा को इनेलो से छीनकर अपना गढ़ बनाने में कामयाबी हासिल की थी। अब ताऊ देवीलाल के वटवृक्ष लोकदल की एक शाखा जजपा के रूप में भाजपा के साथ जुड़ी है, जिस कारण हुड्डा के सामने न केवल अपने गढ़ को बचाने की चुनौती है, बल्कि अपनी ही पार्टी के नेताओं द्वारा बुने जाने वाले चक्रव्यूह को भेदने की जरूरत भी है।

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हुड्डा पिता-पुत्रों ने बरोदा के चुनाव में झोंकी ताकत, विधायकों की पूरी टीम को लगाया

पानीपत से रोहतक जाते हुए रास्ते में बरोदा विधानसभा क्षेत्र पड़ता है। इस हलके में 54 गांव आते हैं। यह पूरा इलाका ग्रामीण परिवेश वाला है। शहरी व्यवस्थाएं और तामझाम यहां ज्यादा नजर नहीं आते। कभी भूपेंद्र सिंह हुड्डा के लिए गढ़ी सांपला किलोई के रूप में अपनी विधानसभा सीट छोड़ने वाले श्रीकृष्ण हुड्डा बरोदा से विधायक बनते रहे हैं।

श्रीकृष्ण हुड्डा के किलोई सीट छोड़ने के बाद भूपेंद्र हुड्डा यहां से चुनाव लड़े और जीते तथा प्रदेश के पहली बार मुख्यमंत्री बने। अब श्रीकृष्ण हुड्डा का देहावसान हो चुका है, जिस कारण बरोदा में उपचुनाव हो रहा है। कांग्रेस ने यहां श्रीकृष्ण हुड्डा के परिवार के किसी सदस्य को टिकट देने की बजाय नए चेहरे इंदु नरवाल पर दांव खेलना वाजिब समझा है।

विरोधी खेमे का नहीं मिल रहा खास साथ, फिर भी बढ़ा रहे गठबंधन की मुश्किलें

इंदु नरवाल पूरी तरह से राजनीति के नए खिलाड़ी हैं, लेकिन उनका चुनाव भूपेंद्र हुड्डा और उनके राज्यसभा सदस्य बेटे दीपेंद्र सिंह हुड्डा लड़ रहे हैं। हुड्डा का विरोधी खेमा हालांकि इंदु को अपनी पसंद के उम्मीदवार के रूप में पेश करता है, लेकिन जब हुड्डा की पहली पसंद कपूर नरवाल को टिकट नहीं मिला तो प्रियंका गांधी के हस्तक्षेप के बाद दूसरा नाम पूछा गया। तब दीपेंद्र ने इंदु नरवाल का नाम दिया।

इंदु नरवाल भी खुद को हुड्डा और उनके बेटे दीपेंद्र का मजबूत सिपाही बताते हैं। बहरहाल, बात कांग्रेस की जीत और हुड्डा के गढ़ को बचाए रखने की चुनौती की है। ऐसे में यहां प्रचार की पूरी कमान हुड्डा और उनके बेटे दीपेंद्र ने संभाली हुई है।

कांग्रेस की प्रदेश अध्यक्ष कु. सैलजा, कुलदीप बिश्नोई और किरण चौधरी भी बरोदा में सक्रिय हैं। बिहार चुनाव में व्यस्तता की वजह से रणदीप सिंह सुरजेवाला और कैप्टन अजय यादव का यहां कम ही आना-जाना हो रहा है। हुड्डा अपनेे दो दर्जन से ज्यादा विधायकों, एक दर्जन पूर्व मंत्रियों व पूर्व विधायकों तथा अपनी चुनाव मैनजेमेंट टीम के जरिये बरोदा के गढ़ को न केवल जीतने बल्कि अपनी राजनीतिक प्रतिष्ठा को बनाए रखने के लिए दमदार तरीके से जुटे हुए हैं।

भूपेंद्र हुड्डा जब सोनीपत लोकसभा सीट से चुनाव हारे थे, तब बरोदा में उन्हें सबसे ज्यादा वोट मिले थे। इसी लोकप्रियता के आधार पर हुड्डा खासे आश्वस्त भी हैं, लेकिन भाजपा व जजपा की जोड़ी उनके लिए कभी भी कोई परेशानी खड़ी करने का पूरा दमखम रखती हैं। इसलिए यह चुनाव हुड्डा की राजनीतिक प्रतिष्ठा से जुड़ा हुआ माना जा रहा है।

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