खनन बंद होने के 18 साल बाद भी नहीं हुआ अरावली क्षेत्र का पुनर्वास, मिट्टी से भरी जानी थी गहरी खाई
सुप्रीम कोर्ट ने 18 वर्ष पूर्व अरावली में खनन बंद करवा दिया था। साथ ही अरावली के पुनर्वास के लिए कहा गया था। खनन के कारण खोदे गए गड्ढों को भरने को कहा गया था लेकिन इतने वर्षों बाद भी इसका काम नहीं हुआ है।
नई दिल्ली [बिजेंद्र बंसल]। सुप्रीम कोर्ट ने 6 मई 2002 को अपने एक आदेश में अरावली की पहाड़ियों में न सिर्फ गैर वानिकी कार्य प्रतिबंधित कर दिए थे, बल्कि हर तरह के खनन पर भी रोक लगा दी थी। शीर्ष अदालत ने यह निर्णय पर्यावरणविद एमसी मेहता बनाम भारत सरकार के मामले सुनवाई करते हुए दिया था। इस मामले में सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट को केंद्रीय पर्यावरण संरक्षण समिति की रिपोर्ट मिली।
रिपोर्ट में बताया गया था कि दिल्ली से सटी अरावली की पहाड़ियों में खनन माफिया सक्रिय है। माफिया अवैज्ञानिक तरीके से खनन करवा रहा है और इसमें शासन-प्रशासन का भ्रष्ट तंत्र भी सहयोग कर रहा है। पहाड़ियों से पत्थर खनन का तरीका यह है कि जितने क्षेत्र से पत्थर लिया जाए, उतने क्षेत्र में मिट्टी भरी जाए। मगर खनन माफिया ने पहाड़ियों से पत्थर निकालकर गहरी खाई बना दी हैं। इन गहरी खाई में अरावली पर बरसने वाला बरसाती पानी जमा हो रहा है। इससे अरावली से सटे क्षेत्र का भूजल स्तर लगातार नीचे जा रहा है।
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शीर्ष अदालत ने पर्यावरण व जल संरक्षण को ध्यान में रखते हुए आदेश जारी किए थे कि अरावली की पहाड़ियों में जहां भी खनन से नुकसान हुआ है, वहां पहाड़ियों का पुनर्वास हो। गहरी खाई में मिट्टी भरी जाए मगर यह काम 18 साल बाद भी नहीं हो पाया है। पहाड़ों के बीच बरसाती पानी से गहरी खाई अब सुंदर झील का रूप लेने लगी हैं क्योंकि अरावली के नीले पत्थर की तलहटी पर पानी जमा होने से खाई नीले पानी की झील दिखाई देती हैं।
पर्यावरणविद करेंगे हरियाणा सरकार के तर्कों का विरोध
हरियाणा सरकार ने फरीदाबाद और गुरुग्राम जिला से लगती अरावली की पहाड़ियों में बंद पड़ी पत्थर खान एक बार फिर खोलने के लिए सुप्रीम कोर्ट में सुने जा रहे एमसी मेहता बनाम भारत सरकार के मामले में अर्जी लगाई है। सु्प्रीम कोर्ट में इस मामले की सुनवाई 16 अप्रैल को होगी। पर्यावरणविद कह रहे हैं कि हरियाणा सरकार पत्थर खनन के लिए जिस 2100 हेक्टेयर क्षेत्र में अनुमति मांग रही है, उससे अरावली पूरी तरह नष्ट हो जाएगी।
पर्यावरणविद् पीके मित्तल बताते हैं कि यह 2100 हेक्टेयर क्षेत्र हरियाणा सरकार ने वह ढूंढा है जिस पर 2002 से पहले कभी खनन कार्य नहीं हुआ। असल में यही वह क्षेत्र है जिसमें वन्य जीव विचरते हैं। 2002 के बाद यूं तो अवैध रूप से खनन होता रहा है मगर नियोजित खनन पूरी तरह बंद हो गया है। इसके चलते वन्य जीव केवल उसी क्षेत्र में विचरते हैं जहां खनन कार्य नहीं हुआ। इसलिए यदि अब बचे हुए क्षेत्र में भी खनन की अनुमति मिल गई तो अरावली से वन्य जीव पूरी तरह गायब हो जाएंगे।
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