Move to Jagran APP

हर चुनावी मौसम में बनते रहे क्षेत्रीय दल, इनेलो को छोड़ कोई टिका सियासी पिच पर

हरियाणा में लगभग हर चुनावी मौसम में क्षेत्रीय दल बनते रहे हैं। इनेलो को छोड़ दिया जाए तो इनमें से कोई सियासत की पिच पर ज्‍यादा टिक नहीं पाए।

By Sunil Kumar JhaEdited By: Published: Mon, 19 Nov 2018 11:15 AM (IST)Updated: Mon, 19 Nov 2018 11:37 AM (IST)
हर चुनावी मौसम में बनते रहे क्षेत्रीय दल, इनेलो को छोड़ कोई टिका सियासी पिच पर
हर चुनावी मौसम में बनते रहे क्षेत्रीय दल, इनेलो को छोड़ कोई टिका सियासी पिच पर

जेएनएन, चंडीगढ़। हरियाणा में नई क्षेत्रीय पार्टियां लगभग हर चुनावी मौसम में बनती रही हैं, लेकिन काेई सियासी पिच पर अधिक समय टिक नहीं पाईं। हरियाणा की सियासी पिच पर 31 साल की लंबी पारी खेलने के बाद चौधरी देवीलाल की पार्टी इनेलो भी दोफाड़ हो गई है। जींद रैली में नया दल बनाने की घोषणा कर चुके अजय चौटाला 9 दिसंबर को पार्टी के नाम और चुनाव चिह्न की घोषणा भी कर देंगे। वर्ष 1987 में बने इंडियन नेशनल लोकदल को छोड़ दिया जाए तो कोई अन्य सियासी दल राज्य की राजनीति में लंबे समय तक टिक नहीं पाया। अब यह डॉ. अजय चौटाला के राजनीतिक कौशल पर निर्भर करेगा कि वह इतिहास को कितना गलत साबित कर पाते हैं।

loksabha election banner

चौधरी देवीलाल की पार्टी इनेलो ने ही खेली 31 साल की लंबी पारी, पांच बार बनाईं सरकारें

प्रदेश में पिछले पांच दशकों में ज्यादातर समय कांग्रेस व जनता दल की सरकारें रही हैं। खास बात ये कि कांग्रेस के अधिकतर मुख्यमंत्रियों ने कुर्सी छिनते ही अलग सियासी पार्टियां बनाईं। देवीलाल, बंसीलाल और भजनलाल की राजनीति से मशहूर लालों के इस प्रदेश में लगातार क्षेत्रीय दल बनते रहे, लेकिन बाद में बुरे हश्र के चलते फिर मूल पार्टी में ही लौटना पड़ा।

वर्ष 1966 में हरियाणा गठन के बाद कांग्रेस ने पंडित भगवत दयाल शर्मा को मुख्यमंत्री बनाया तो इससे खफा अहीरवाल के दिग्गज राव बीरेंद्र सिंह ने हरियाणा विशाल पार्टी बना ली। उन्होंने छह महीने में ही मुख्यमंत्री की कुर्सी हथिया ली। हालांकि वह बाद में कांग्रेस में ही लौट आए।

1 दिसंबर 1975 को कांग्रेस के बैनर तले मुख्यमंत्री बने बनारसी दास गुप्ता ने हालांकि अलग राजनीतिक दल का गठन तो नहीं किया, लेकिन 22 मई 1990 को वह दूसरी बार दलबदल कर जनता दल के सहयोग से मुख्यमंत्री बने। इसके बाद बंसीलाल ने कई उतार चढ़ाव झेलने के बाद 1996 में कांग्रेस को अलविदा कर हरियाणा विकास पार्टी का गठन कर लिया। भाजपा के सहयोग से बंसीलाल उसी साल सरकार बनाने में सफल रहे और तीन साल सरकार चलाई। भाजपा के कदम खींचने के बाद पार्टी चल नहीं पाई और वापस कांग्रेस में ही हविपा का विलय करना पड़ा।

हजकां का विलय कर कांग्रेसी बने कुलदीप बिश्नोई

कांग्रेस से तीन बार मुख्यमंत्री बने चौधरी भजनलाल ने पार्टी आलाकमान द्वारा पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा को आगे करने के बाद 2 दिसंबर 2007 को हरियाणा जनहित कांग्रेस (बीएल) का गठन कर दिया। उनके देहांत के बाद पुत्र कुलदीप बिश्नोई ने हजकां को संभाला और भाजपा के साथ मिलकर चुनाव लड़े।

वर्ष 2014 के विधानसभा चुनाव में भाजपा से समझौता टूटने के बाद पार्टी की स्थिति बिगड़ती चली गई और अप्रैल 2016 में हजकां सुप्रीमो कुलदीप बिश्नोई ने पार्टी का कांग्रेस में विलय कर दिया। मराठा वीरेंद्र वर्मा ने भी अलग पार्टी बनाई, लेकिन सफलता नहीं मिलने पर उन्हें भी कांग्रेस में विलय करना पड़ा। पूर्व मंत्री गोपाल कांडा व विनोद शर्मा ने कांग्रेस से अलग होकर नए सियासी दल बनाए, लेकिन सियासी समर में चल नहीं पाए।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.