हाई कोर्ट ने कहा- सात साल से कम सजा वाले केस में गिरफ्तारी की जल्दबाजी न दिखाए पुलिस
पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसला सुनााया। हाई कोर्ट ने कहा कि पुलिस सात साल से कम की कैद की सजा के मामले में गिरफ्तारी की जल्दबाजी न दिखाए। ऐसे मामलों में संबंधित व्यक्ति को जमानत दी जा सकती है।
राज्य ब्यूरो, चंडीगढ़। Punjab And Haryana High Court : पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने पुलिस को सात साल से कम की कैद की सजा के मामले में पुलिस को जल्दबाजी नहीं दिखाने को कहा। हाई कोर्ट ने एक मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि पुलिस को ऐसे मामलों में आरोपितों को गिरफ्तार करने में जल्दबाजी नहीं दिखानी चाहिए। कोर्ट ने कहा कि ऐसे मामलों में आरोपितों को जमानत दी जा सकती है।
हाई कोर्ट के जस्टिस अनूप चितकारा ने धोखाधड़ी और विश्वासघात के मामले में आरोपित सोनीपत के एक व्यक्ति ते अगिम जमानत देते हुए यह आदेश पारित दिया। जस्टिस अनूप चितकारा ने कहा कि ऐसे मामलों में आरोपित जमानत के हकदार हैं। हाई कोर्ट ने हालांकि स्पष्ट किया कि विस्तृत और कड़ी शर्तें लगाकर आरोपित द्वारा जांच को प्रभावित करने, सबूतों से छेड़छाड़, गवाहों को डराने-धमकाने और जांच से भागने से रोका जा सकता है ।
जस्टिस चितकारा ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा अर्नेश कुमार बनाम बिहार सरकार मामले में दिए गए फैसले को आधार बनाया है। सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्य सरकारों को निर्देश दिया था कि वे अपने पुलिस अधिकारियों को निर्देशित करें कि जब अपराध सात साल से कम अवधि के लिए कारावास से दंडनीय हो तो आरोपित को तुरंत पुलिस द्वारा गिरफ्तार न किया जाए।
हाई कोर्ट ने कहा कि इस मामले में याचिकाकर्ता ने पहली बार अपराध किया है और उसे सुधार का मौका दिया जाना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि जमानत देते समय आरोपित को उपलब्ध विभिन्न आनलाइन और आफलाइन तरीकों से जमानत बांड प्रस्तुत करने का विकल्प देना चाहिए। जमानत बांड के साथ फिक्स डिपाजिट का विकल्प भी आरोपित को दिया जाना चाहिए। जमानत बांड और फिक्स डिपाजिट के बीच चयन करना आवेदक के विवेक पर निर्भर होगा।
कोर्ट ने यह भी साफ कर दिया कि याचिकाकर्ता को भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 27 के अनुसार हिरासत में माना जाएगा और वह जांच अधिकारी या किसी वरिष्ठ अधिकारी द्वारा बुलाए जाने पर जांच में शामिल होगा। जांच में सहयोग न करने की स्थिति में जमानत रद की जा सकेगी।
हाई कोर्ट ने कहा कि अगर याचिकाकर्ता जांच में सहयोग नहीं करता, जांच प्रभावित करता है, शिकायतकर्ता (पीड़ितों) को प्रभावित करने या बैंक खाते का पूरा विवरण देने में विफल रहता है तो इस आधार पर ही जमानत रद की जा सकती है।
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