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हरियाणा में निजी सेक्टर में 75% आरक्षण देने को चुनौती देने वाली याचिका खारिज

हरियाणा सरकार द्वारा हरियाणवियों को 75 फीसद आरक्षण देने का फैसला किया गया है। विधानसभा में लाए गए बिल पर राज्यपाल भी मोहर लगा चुके हैं। फैसले को हाई कोर्ट में चुनौती दी गई थी जिसे हाई कोर्ट ने खारिज कर दिया है।

By Kamlesh BhattEdited By: Published: Mon, 15 Mar 2021 01:14 PM (IST)Updated: Mon, 15 Mar 2021 01:15 PM (IST)
हरियाणा में निजी सेक्टर में 75% आरक्षण देने को चुनौती देने वाली याचिका खारिज
हरियाणा में निजी सेक्टर में आरक्षण को चुनौती देने वाली याचिका खारिज। सांकेतिक फोटो

जेएनएन, चंडीगढ़। हरियाणा मेंं प्राइवेट नौकरियों में हरियाणवियों को 75 फीसद आरक्षण देने के सरकार के फैसले को पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट में चुनौती दी गई थी। इस चुनौती देने संबंधी याचिका पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने खारिज कर दिया है। हाईकोर्ट ने याची को कहा कि अभी सरकार का यह एक्ट इंडस्ट्री पर एप्लीकेबल नहीं हुआ है। ऐसे में याचिकाकर्ता को यह याचिका वापस लेने की छूट दी जाती है। हाई कोर्ट ने याचिका को वापस लेने की छूट देते हुए याचिका को खारिज कर दिया।

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बता दें, हरियाणा की भाजपा-जजपा सरकार ने निजी सेक्टर में राज्य के निवासियों को 75 प्रतिशत आरक्षण प्रदान करने के लिए विधानसभा में बिल पास किया था, जिस पर राज्यपाल भी मोहर लगा चुके हैं। सरकार के हरियाणा स्टेट इंप्लायमेंट आफ लोकल कंडिडेट एक्ट 2020 को हाई कोर्ट में चुनौती दी गई थी। यह चुनौती एक औद्योगिक संस्था ने देते हुए आशंका जताई कि इस कानून के लागू होने से हरियाणा से इंडस्ट्री का पलायन हो सकता है तथा वास्तविक कौशलयुक्त युवाओं के अधिकारों का हनन है।

पंचकूला मैसर्स एके आटोमेटिक ने पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट में दायर याचिका में इस एक्ट पर रोक लगाने की मांग की थी। याचिका के अनुसार हरियाणा सरकार का यह फैसला योग्यता के साथ अन्याय है। ओपन की जगह आरक्षित क्षेत्र से नौकरी के लिए युवाओं का चयन करना एक प्रतिकूल प्रभाव डालेगा। सरकार का यह फैसला अधिकार क्षेत्र से बाहर का व सुप्रीम कोर्ट के कई फैसलों के खिलाफ है। इसलिए इसे रद किया जाए।

याचिका में कहा गया था कि धरती पुत्र नीति के तहत हरियाणा सरकार निजी क्षेत्र में आरक्षण दे रही है, जो नियोक्ताओं के संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन है, क्योंकि निजी क्षेत्र की नौकरियां पूर्ण रूप से योग्यता व कौशल पर आधारित होती हैं। याचिका के अनुसार यह कानून उन युवाओं के संवैधानिक अधिकार के खिलाफ है जो शिक्षा के आधार पर भारत के किसी भी हिस्से में नौकरी करने की योग्यता रखते हैं।

अदालत को बताया गया था कि यह कानून योग्यता के बदले रिहायशी आधार पर निजी क्षेत्र में नौकरी पाने के लिए पद्धति को शुरू करने का एक प्रयास है जो हरियाणा में निजी क्षेत्र में रोजगार संरचना में अराजकता पैदा करेगा। यह कानून केंद्र सरकार की एक भारत श्रेष्ठ भारत की नीति के विपरीत है। कोविड-19 से प्रभावित बाजार को कुछ राहत की जरूरत है लेकिन यह कानून जो निजी क्षेत्र के विकास को भी बाधित करेगा और संभावना है कि इसी कारण राज्य से इंडस्ट्री स्थानांतरित भी हो सकती है।

हरियाणा की मनोहर सरकार ने एक कानून बनाकर राज्य में निजी क्षेत्र की नौकरियों में 75 प्रतिशत आरक्षण हरियाणा के रिहायशी प्रमाणपत्र धारकों के लिए जरूरी कर दिया है। यह आरक्षण 50 हजार रुपये मासिक से कम वेतन की नौकरियों के लिए है। राज्य में चल रही निजी क्षेत्र की उन कंपनियों, सोसायटी, ट्रस्ट, साझेदारी फर्म पर यह कानून लागू होगा, जिनमें 10 से ज्यादा कर्मचारी हैं। एसडीएम या इससे उच्च स्तर के अधिकारी कानून लागू किए जाने की जांच कर सकेंगे और कंपनी परिसर में भी जा सकेंगे। कानून के विभिन्न नियमों का उल्लंघन करने पर नियोक्ता पर 25 हजार रुपये से पांच लाख रुपये तक के जुर्माने का प्रविधान किया गया है।


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