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सरकारों ने नहीें समझा प्रवासी कामगारों का दर्द, सिर्फ एक कसूर, यहां मतदाता होते तो पूजे जाते

हरियाणा और पंजाब आए प्रवासी श्रमिकों का एक ही कसूर था कि वे यहां वोटर नहीं थे। अगर ऐसा होता तो वे यहां से पलायन को मजबूर न होते और नेता उनकी पूजा करते।

By Sunil Kumar JhaEdited By: Published: Sat, 30 May 2020 07:34 AM (IST)Updated: Sat, 30 May 2020 09:15 AM (IST)
सरकारों ने नहीें समझा प्रवासी कामगारों का दर्द, सिर्फ एक कसूर, यहां मतदाता होते तो पूजे जाते
सरकारों ने नहीें समझा प्रवासी कामगारों का दर्द, सिर्फ एक कसूर, यहां मतदाता होते तो पूजे जाते

चंडीगढ़, [अनुराग अग्रवाल]। कोरोना महामारी के चलते लाकडाउन में फंसे लाखों प्रवासियों का कुसूर सिर्फ यही था कि उनमें से अधिकतर न तो हरियाणा में वोट डालते थे और न ही पंजाब के वोटर के रूप में दर्ज थे। ये लाखों प्रवासी यदि इन दोनों में से किसी भी एक राज्य के मतदाता होते तो उन्हेंं हरियाणा और पंजाब के बीच फुटबाल नहीं बनना पड़ता। इन प्रवासियों की मदद को लेकर आजकल राज्य सरकारों में श्रेय लेने की होड मची हुई है। पंजाब सरकार ने प्रवासियों को जहां उनके हाल पर छोड़ दिया था, वहीं हरियाणा सरकार ने उन्हेंं सहारा देने का दावा करते हुए पंजाब के विरुद्घ पोस्टर वार छेड़ दिया है।

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पंजाब और हरियाणा में दुर्गति का शिकार हुए इन प्रवासियों की पीड़ा नहीं समझ पाए राजनेता

पोस्टर वार छेड़ने का सिलसला सोशल मीडिया पर खूब चला हुआ है। भाजपा खुद इस काम में आगे नहीं है, लेकिन अपनी विचारधारा के फ्रंटियल संगठनों और लोगों के जरिये पंजाब पर खुला हमला बोला जा रहा है। हरियाणा में करीब आठ लाख प्रवासी कामगार ऐसे हैं, जो अपने घर जाने के इच्छुक थे। इनमें से करीब सवा तीन लाख प्रवासी कामगारों को भाजपा सरकार अपने खुद के खर्चे पर उनके मूल राज्यों में रेलगाडिय़ों तथा बसों के जरिये भिजवा चुकी है। कुछ प्रवासियों के जाने का सिलसिला अभी चल रहा है तो लाखों प्रवासी कामगारों ने स्थिति सामान्य होने की कल्पना करते हुए अपने घर जाने का इरादा त्याग दिया है।

ऐसे ट्रकों में जानवरों की तरह ठूंस कर पलायन करने को विवश हुए श्रमिक।

पंजाब से भगाए गए इन श्रमिकों को हरियाणा में मिला सहारा, साथ ही पंजाब के विरुद्ध पोस्टर वार भी

सबसे ज्यादा दिक्कत पंजाब से चलकर हरियाणा पहुंचे उन प्रवासी कामगारों के सामने आई, जो किसी भी सूरत में पैदल, साइकिलों के जरिये अथवा नदियों के रास्ते अपने घर पहुंचना चाहते थे। पंजाब ने उन्हेंं अपने प्रदेश में रोकने की कोई कोशिश नहीं की। हरियाणा के डीजीपी ने पंजाब के डीजीपी से इस बारे में बात भी की, लेकिन बात नहीं बन पाई। इन मजदूरों पर यमुनानगर में लाठीचार्ज भी हुआ। मामला बढ़ा तो उन्हेंं राहत शिविरों में ठहराया गया तथा खाने-पीने की वस्तुएं उपलब्ध कराते हुए उनके राज्यों में भेजने की कार्य योजना तैयार की गई। अब अंबाला व यमुनानगर में पंजाब से आए ज्यादा प्रवासी नहीं बचे हैं, जो अपने घर जाने से वंचित रह गए।

कड़ी धूप में यूं पैदल पलायन को मजबूर हुए प्रवासी श्रमिक।

इसे भुनाते हुए भाजपा की विचारधारा के संगठनों ने पोस्टर वार छेड़ते हुए यह श्रेय लेने की कोशिश की है कि पंजाब से भगाए गए श्रमिकों को हरियाणा ने सहारा दिया है, जबकि पंजाब द्वारा हरियाणा के इस दावे पर सवाल उठाए जा रहे हैं। अंबाला, साहा, यमुनानगर, केएमपी, अबोहर फाजिल्का के रास्ते टोहाना व सिरसा पहुंच रहे लोगों के सामने खास दिक्कत है। फिलहाल स्थिति यह है कि अंबाला व यमुनानगर जिलों में हर रोज तीन सौ साढ़े तीन सौ लोग राहत शिविरों में आ रहे हैं, जो अपने प्रदेश लौटने का इंतजार कर रहे हैं।

ऐसे में बड़ा सवाल खड़ा होता है कि प्रवासियों के साथ ऐसा क्यों किया गया? इसका जवाब अंबाला छावनी के एसडी कालेज के राजनीति विज्ञान विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर एवं विभागाध्‍यक्ष डा. रमेश मदान और भिवानी महापंचायत के संयोजक चौ. संपूर्ण सिंह देते हैं। व‍े कहते हैं अधिकतर प्रवासी हरियाणा या पंजाब के मतदाता नहीं हैं, इसलिए राजनेताओं ने उनकी कोई चिंता नहीं की। यदि वे मतदाता होते तो उन्हेंं सिर आंखों पर बैठाया जाता। समाजसेवी संगठनों ने इन प्रवासियों की मदद में अहम भूमिका निभाई है। यदि वे बाहर नहीं निकलते तो प्रवासियों के सामने बड़ी समस्या खड़ी हो जाती।

पंजाब-हरियाणा के शंभू बार्डर का यह दृश्‍य कई सवाल उठाता है।

जब नेता प्रवासी नहीं हो सकता तो मजदूर कैसे प्रवासी

कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय में शारीरिक शिक्षा विभाग में प्रोफेसर एवं विभागाध्यक्ष तथा सर्वजातीय सर्व खाप महापंचायत महिला विंग की राष्ट्रीय अध्यक्ष डा. संतोष दहिया ने किसी भी व्यक्ति के लिए प्रवासी शब्द पर भी आपत्ति जताई है। उनका कहना है कि जब कोई नेता एक राज्य से जाकर दूसरे राज्य में चुनाव लड़ता है तो वह प्रवासी नहीं कहलाता। इसी तरह से यदि कोई श्रमिक एक राज्य से दूसरे राज्य में आकर काम करने लगे तो उसे प्रवासी क्यों कहा जाता है। यह राज्य सरकारों की ड्यूटी है कि उसे तुरंत हर तरह की सुविधाएं प्रदान करते हुए स्थायी नागरिक की तरह रखा जाए।

ऐसे पैदल पलायन करते श्रमिकों का दृश्‍य आम हो गया था।

दबंग मकान मालिकों ने की किरायेदारों से मनमर्जी

हरियाणा के एनसीआर इलाकों में प्रवासी कामगार दबंग मकान मालिकों की मनमर्जी का भी शिकार हुए हैं। दबंग प्रवृत्ति के मकान मालिकों ने इन किरायेदारों को अपने घरों से बाहर निकलने के लिए मजबूर कर दिया। काम नहीं होने के कारण इन मजदूरों के पास न तो पैसा था और न ही रहने का कोई दूसरा ठिकाना। यही वजह रही कि मई के पहले सप्ताह से लेकर दूसरे सप्ताह तक प्रवासी कामगारों में अपने राज्यों में जाने की होड़ लगी रही। ऐसी स्थिति हिसार, सोनीपत, अंबाला, पलवल, गुरुग्राम, फरीदाबाद, रेवाड़ी और करनाल जिलों में भी बनी रही है।

हरियाणा भाजपा ने दी सफाई, कहा हमने की खूब सेवा

प्रवासी मजदूरों के साथ अन्याय तथा उनकी कोई सुध नहीं लिए जाने के आरोपों को भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सुभाष बराला सिरे से खारिज करते हैं। उन्होंने कहा कि सरकार व समाज सेवी संगठनों के कार्यों को यदि छोड़ दिया जाए तो अकेले भाजपा ने हर जिले में प्रवासी श्रमिकों को सहारा दिया है। उसका पूरा हिसाब भाजपा के पास है।

पंजाब का पलटवार, कहा ज्योति की तस्वीर संभाल कर रख ले हरियाणा

पंजाब कांग्रेस के प्रधान सुनील जाखड़ ने हरियाणा सरकार को आइना दिखाया है। उन्होंने कहा कि हरियाणा कुछ कहने से पहले 13 साल की उस लड़की की तस्वीर को जरूर संभालकर रख ले जो उनके सबसे बढिया शहर गुरुग्राम से दरभंगा तक 1200 किलोमीटर साइकिल पर अपने पिता को लेकर गई है। बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ का नारा देने वालों को क्या यह तस्वीरें नजर नहीं आईं।

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