आफिसर आन ड्यूटी: शरीर निर्मल, आत्मा कांग्रेसी... पढ़ें हरियाणा की और भी रोचक खबरें
गुस्से में आकर निर्मल सिंह और उनकी बेटी ने अलग डेमोक्रेटिक फ्रंट बना लिया लेकिन आत्मा अब तक कांग्रेसी ही है। पढ़ें हरियाणा की राजनीति से जुड़ी रोचक खबरें राज्य के साप्ताहिक कालम आफिसर आन ड्यूटी में ...
चंडीगढ़ [सुधीर तंवर]। पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के करीबी साथी रहे पूर्व मंत्री चौ. निर्मल सिंह का कांग्रेस प्रेम जाग गया है। विधानसभा चुनाव में उन्हेंं या उनकी बेटी चित्रा सरवारा को टिकट नहीं मिला तो वह नाराज हो गए। हालांकि हुड़्डा आखिर तक चाहते थे कि निर्मल सिंह को या उनकी बेटी को अंबाला छावनी से टिकट अवश्य मिले। हुड्डा को इस बात का आज तक मलाल भी है। गुस्से में आकर निर्मल सिंह और उनकी बेटी ने अलग डेमोक्रेटिक फ्रंट बना लिया, लेकिन आत्मा अब तक कांग्रेसी ही है। पिछले दिनों कुलदीप बिश्नोई ने गुलाम नबी आजाद के विरुद्ध बयान दिया तो निर्मल सिंह ने गुलाम नबी के समर्थन में मोर्चा संभाल लिया। गुलाम नबी और हुड्डा की बात ही एक है। इस जोड़ी में आनंद शर्मा भी शामिल हैं। लिहाजा निर्मल सिंह ने कुलदीप बिश्नोई के विरुद्ध इतना कुछ बोला कि हुड्डा व नबी दोनों खुश हो गए होंगे।
आगे आने वाला ही असली विजेता
हरियाणा में वीरवार का दिन कई मायनों में व्यस्त रहा। इस दिन दिल्ली जाने वाले आंदोलनकारी किसान बवाल कर रहे थे। फिर कर्मचारियों ने राष्ट्रव्यापी हड़ताल रखी। उसके बाद संविधान दिवस का भी आयोजन किया गया। केंद्र व राज्य सरकार के निर्देश थे कि सभी जगह संविधान दिवस पर कार्यक्रमों का आयोजन किया जाना चाहिए, मगर कहीं हुआ और कहीं बिल्कुल भी नहीं हुआ। कहीं औपचारिकता निभाई गई। बहरहाल, राजभवन व पुलिस मुख्यालय के बाद अगर कहीं से आयोजन किया गया तो वह है सूचना एवं जनसंपर्क विभाग की अतिरिक्त मुख्य सचिव धीरा खंडेलवाल का कार्यालय। धीरा खंडेलवान दफ्तर आई। आते ही उन्होंने सभी कर्मचारियों को बुलाया और उनके साथ संविधान दिवस की की चर्चा करते हुए उन्हेंं इस पर चलने की शपथ दिलाई। धीरा खंडेलवाल का अनुसरण करते हुए बाद में कई दफ्तरों में ऐसे ही शपथ दिलाई गई, लेकिन विजेता तो वही होता है, जो पहले जीत ले।
नेता जी, किसान सब जानता है
हरियाणा में वीरवार को पूरे दिन किसान आंदोलन चलता रहा, लेकिन एक भी नेता सड़क पर निकलने की हिम्मत नहीं कर पाया। ड्राइंग रूम में और अपने कार्यालयों में बैठे-बैठे इन नेताओं ने टीवी पर, इंटरनेट मीडिया पर तथा यू ट्यूब आदी पर पूरे आंदोलन का एक्सरे जरूर किया, लेकिन कोई न तो किसानों को समझाने आया, न ही उनका साथ देने आया, न ही उन्हेंं यह बताने आया कि तीनों कृषि कानून किस तरह से उनके फायदे में हैं और किस तरह से विरोध में हैं। अखबारों में अपनी उपस्थिति दर्ज कराने तथा किसानों का मसीहा साबित करने के लिए इन नेताओं ने बाद में अपने लंबे-लंबे बयान तो जारी कर दिए। साथ ही कई-कई मिनट की वीडियो भी जारी कर किसानों के हमदर्द होने का दावा किया। लेकिन, किसान इतना भी भोला नहीं इन नेतों के दिल में क्या है और बाहर क्या है, सब जानता है।
बहाना है तो भी अच्छा है जी
हरियाणा की भाजपा सरकार में साझीदार जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) दावा कर रही है कि उसने कोरोना की वजह से अपनी 9 दिसंबर की भिवानी में होने वाली रैली को स्थगित कर दिया है। साथ ही यह भी दावा किया गया है कि ऐसा पार्टी के कार्यकर्ता चाहते हैं। कार्यकर्ताओं का मत है कि कोरोना संक्रमण में रैली को करना उचित नहीं होगा, लेकिन कुछ विरोधी लोग कह रहे हैं कि जजपा को लग रहा था कि यदि आंदोलन के इस माहौल में रैली कर ली गई तो कहीं उल्टे ही लेने के देने न पड़ जाएं। भीड़ न आए और शर्मसार होना पड़ जाए, इसलिए कोरोना कै बहाना तलाशा गया। हो सकता है उनकी बात सच हो, लेकिन कोरोना काल में रैली करना उचित तो कतई नहीं था और अगर यह बहाना है तो अच्छा है। कम से कम कोरना संक्रमण का प्रसार तो नहीं होगा। रैली फिर हो जाएगी।