आफिसर आन ड्यूटी: Baroda by-election में सभी के अपने-अपने दावे और समीकरण, पढ़ें हरियाणा की और भी रोचक खबरें
हरियाणा की राजनीति व ब्यूरोक्रेसी में ऐसा बहुत कुछ होता है जो अक्सर मीडिया में सुर्खियां नहीं बन पाता। आइए हरियाणा के साप्ताहिक कालम आफिसर आन ड्यूटी में राज्य की कुछ ऐसी ही रोचक खबरों पर नजर डालते हैं।
चंडीगढ़ [सुधीर तंवर]। एक अनार सौ बीमार। इसे समझना है तो बरोदा चले आइये जहां उपचुनाव हैं। सत्तारूढ़ भाजपा-जजपा के मंत्रियों से लेकर संगठन तक के पदाधिकारी और कांग्रेस और इनेलो के तमाम दिग्गज यहां डेरा डाले हुए हैं। जीत के सभी के अपने-अपने दावे हैं और अपने-अपने समीकरण। अब सीट तो एक है और जीतेगा भी कोई एक, लेकिन मुंगेरी लाल की तरह हसीन सपने लेते हुए सभी को अपनी जीत पक्की नजर आ रही है। मुहब्बत और जंग में सब कुछ जायज है की तर्ज पर कुछ सियासी दलों ने मतदाताओं को रिझाने के लिए सच्चे-झूठे सभी हथकंडों का रास्ता अख्तियार कर लिया है। अलग-अलग जनसभाओं के फोटो को एडिटिंग के जरिये विशाल रैली का रूप देकर सोशल मीडिया पर ऐसे चलाया जा रहा कि विशेषज्ञ भी गच्चा खा जाएं। कुछ अखबारों में यह फोटो छप भी गए। हालांकि पोल खुली, लेकिन तब तक वोटरों तक अलग मैसेज पहुंच चुका था।
काम न आई सेटिंग, फिर खुड्डे लाइन
हरियाणा में शीर्ष स्तर की अफसरशाही में तबादलों का ऐसा दौर शुरू हुआ है कि यह थमने का नाम नहीं ले रहा। शीर्ष स्तर के IAS अफसरों के तबादलों की सूचियां धड़ाधड़ जारी हो रही हैं। आलम यह है कि कई अतिरिक्त मुख्य सचिव-प्रधान सचिव और निदेशकों को नई जिम्मेदारी देकर दो दिन में छीन भी ली गई। बताते हैं कि कुछ अफसर सेटिंग बैठाकर मनचाहे पदों पर आसीन होने में कामयाब रहे, लेकिन जैसे ही बात मुख्यमंत्री के दरबार में पहुंची, सारा किया धरा चौपट हो गया। एक झटके में यह अफसर फिर से खुड्डे लाइन हो गए। पुरानी कहावत है कि जब कोई बड़ा पेड़ उखड़ता है तो उसकी छत्रछाया में फल-फूल रहे छोटे पौधों पर असर पड़ जाता है। कुछ इसी तर्ज पर शीर्ष स्तर की अफसरशाही में बदलाव का असर विभिन्न महकमों में दिख रहा है। मलाईदार पदों की चाह जो न करा दे वह थोड़ा।
रास नहीं आ रही पुलिस की घुसपैठ
हरियाणा में IAS-HCS काडर के पदों पर IPS-HPS अफसरों की तैनाती पर खूब हाय-तौबा मची है। HCS आफिसर एसोसिएशन जहां खुलकर इस प्रयोग का विरोध कर रही, वहीं IAS लाबी को भी सरकार का यह फैसला रास नहीं आ रहा। हालांकि उनका विरोध दबी जुबान तक सीमित है। वह खुलकर सामने नहीं आ पा रहे। इस सबसे बेपरवाह मुखियाजी (मुख्यमंत्री) ने कुछ और महकमों में प्रशासनिक पदों पर पुलिस अफसरों को लगाने की तैयारी कर ली है। सीएमओ में ब्लू प्रिंट लगभग तैयार है जिसे अमलीजामा पहनाना बाकी है। खासकर उन महकमों पर नजर ज्यादा है जहां भ्रष्टाचार की शिकायतें सर्वाधिक हैं। सरकार में ईमानदार अधिकारी की छवि वाले एक IAS अफसर ने कहा कि सिस्टम में सुधार के लिए प्रयोग में कुछ गलत नहीं है, लेकिन कहीं यह सब प्रशासनिक तंत्र में पुलिस की घुसपैठ के लिए तो नहीं हो रहा। अगर ऐसा है तो इसका परिणाम गंभीर होंगे।
बिल्ली करेगी दूध की रखवाली
अब बिल्ली करेगी दूध की रखवाली। यह बात हम नहीं, बल्कि अफसरशाही में उच्च पदों पर आसीन लोग कह रहे हैं। पहली नजर में उनके दावे में भले ही रुतबा घटने की खिसियाहट नजर आती हो, लेकिन बात में दम है। दरअसल जब से परिवहन महकमे में IAS-HCS अफसरों की जगह IPS-HPS सहित दूसरे महकमों के अफसर लगाए गए हैं, एक नई बहस खड़ी हो गई है। यूं तो क्षेत्रीय परिवहन प्राधिकरण (RTA) सचिवों के आफिस मनोहर सरकार के पहले कार्यकाल में ही प्रयोग का अड्डा बन गए थे, जब HCS अफसरों को हटाकर एडीसी को जिम्मेदारी सौंपी गई। भ्रष्टाचार की शिकायतें कम नहीं हुईं तो एडीसी से यह जिम्मेदारी छीनकर दूसरे महकमों के अफसरों को देनी पड़ी। यहां तक तो ठीक था, लेकिन HPS अफसरों की RTA सचिव और रोडवेज प्रबंधक बनाने का फैसला किसी को रास नहीं आया। पुलिस की छवि कैसी है, यह किसी से छिपा नहीं।