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हुड्डा खेमे की नई रणनीति, हरियाणा में अब चुनाव के जरिए कांग्रेस के जिला व प्रदेश अध्यक्ष बनाने की तैयारी

Haryana Congress हरियाणा कांग्रेस में पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा और प्रदेश अध्‍यक्ष कुमारी सैलला के खेमे के बीच खींंचतान जारी है। युवक कांग्रेस चुनाव में कामयाबी के बाद हुड्डा खेमे ने नई रणनीति बनाई है। हुड्डा खेमा अब हरियाणा में जिला अध्‍यक्षों और प्रदेश अध्‍यक्ष का चुनाव चाहता है।

By Sunil Kumar JhaEdited By: Published: Wed, 17 Nov 2021 10:23 AM (IST)Updated: Wed, 17 Nov 2021 10:23 AM (IST)
हुड्डा खेमे की नई रणनीति, हरियाणा में अब चुनाव के जरिए कांग्रेस के जिला व प्रदेश अध्यक्ष बनाने की तैयारी
हरियाणा कांग्रेस अध्‍यक्ष कुमारी सैलजा और पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा। (फाइल फोटो)

चंडीगढ़, [अनुराग अग्रवाल]। Haryana Congress Election : वोटिंग के जरिए हुए युवक कांग्रेस के चुनाव के साथ ही हरियाणा कांग्रेस में नया सियासी घमासान शुरू हो गया है। प्रदेश में पिछले सात साल से कांग्रेस का संगठन नहीं है। पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने संकेत दिए हैं कि राज्य में कांग्रेस के ब्लाक, जिला और प्रदेश अध्यक्ष के चुनाव वोटिंग के जरिए हो सकते हैं। इन चुनाव में हुड्डा अपनी पसंद के दावेदार खड़े करेंगे। प्रदेश अध्यक्ष पद का दावेदार कौन होगा, इसे लेकर हुड्डा ने अभी अपने पत्ते नहीं खोले हैं। वोटिंग के जरिए चुनाव कराने को लेकर हुड्डा कांग्रेस हाईकमान के संपर्क में हैं। वह अपनी पार्टी के विधायकों के जरिए भी हाईकमान तक अपनी बात पहुंचाने में लगे हैं।

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युवक कांग्रेस के चुनाव में मिली सफलता के बाद हुड्डा खेमे की नई रणनीति

कांग्रेस के संगठनात्मक चुनाव की वोटिंग प्रक्रिया पूरी होने से पहले यदि ब्लाक और जिला प्रधानों की सूची जारी भी हो गई तो वह अस्थायी पदाधिकारी होंगे। युवक कांग्रेस के चुनाव में पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा और उनके सांसद बेटे दीपेंद्र सिंह हुड्डा का दबदबा रहा है। युवक कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष पद पर दिव्यांशु बुद्धिराजा देश भर में सबसे अधिक रिकार्ड दो लाख मतों से चुनाव जीते हैं। 31 जिलाध्यक्षों में 26 और 90 विधानसभा अध्यक्षों में 78 हुड्डा खेमे के हैं। पांच प्रदेश महासचिव में चार पर हुड्डा गुट की मुहर लगी हुई है।

हरियाणा में में शुरू हो चुकी है कांग्रेस की सदस्यता मुहिम, सदस्यों के आधार पर होंगे संगठन चुनाव

युवक कांग्रेस के चुनाव में करीब 15 लाख युवाओं के वोट बने थे, जिसमें से नौ लाख 39 हजार ने अपने मताधिकार का इस्तेमाल किया। कांग्रेस के राजनीतिक गलियारों में इस बात को लेकर चर्चा है कि जब अकेले युवक कांग्रेस के पास इतने वोट हैं तो वह चुनाव कैसे हार सकती है। किसी-किसी विधानसभा में युवक कांग्रेस के इतने वोट दिखाए गए, जितने कि विधानसभा प्रत्याशी को भी नहीं मिले थे। ऐसे में हुड्डा विरोधी खेमे का चुनाव की पारदर्शिता पर सवाल उठाना लाजिमी है, लेकिन राजनीति में जीत के अलावा कुछ नहीं देखा जाता, भले ही उसे कैसे भी हासिल किया गया हो, इस सिद्धांत पर आगे बढ़ते हुए हुड्डा खेमे में कांग्रेस के संगठनात्मक चुनाव वोटिंग के जरिए कराने की तैयारियां शुरू कर दी हैं।

कांग्रेस के प्रदेश में 31 विधायक हैं। इनमें से 26 हुड्डा समर्थक हैं। हुड्डा खेमा शुरू से कहता आ रहा है कि यदि उनकी पसंद से टिकटों का बंटवारा हो गया होता तो प्रदेश के राजनीतिक हालात दूसरे होते। अभी चूंकि राज्य में चुनाव में तीन साल हैं तो ऐसे में हुड्डा खेमे में हाल-फिलहाल से अपने मिजाज की राजनीति शुरू कर दी है, ताकि जिलों में ब्लाक स्तर तक उनके समर्थकों का दबदबा मौजूद रहे।

हालांकि गैर जाट नेता के रूप में कुलदीप बिश्नोई, कुमारी सैलजा और कैप्टन अजय यादव की जोडतोड़ को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता, लेकिन अधिक विधायकों के बूते हुड्डा कोई भी गेम पलटने का दम रखते हैं। जाट नेता किरण चौधरी और रणदीप सिंह सुरजेवाला की प्रदेश में अच्छी पकड़ है। जब संगठन और टिकटों की बात आएगी तो वह भी चुप बैठने वाले नहीं हैं।

हुड्डा पूर्व में चुनाव के जरिए बन चुके अध्यक्ष

हरियाणा में कांग्रेस द्वारा सदस्यता मुहिम शुरू की जा चुकी है। पार्टी के सभी दिग्गज नेता अपने-अपने समर्थकों को अधिक से अधिक सदस्य बनाने के लिए प्रेरित कर रहे हैं। इसके पीछे छिपी राजनीति साफ है। जिस नेता के पक्ष में अधिक सदस्य होंगे, उसके ही पदाधिकारी भी अधिक बनेंगे। हुड्डा के अनुसार वह खुद भी पूर्व में चुनाव लड़कर प्रदेशाध्यक्ष बन चुके हैं। हुड्डा के पास 28 फरवरी 1997 से 31 जुलाई 2002 तक प्रदेश कांग्रेस की कमान रही। प्रदेशाध्यक्ष का कार्यकाल पांच वर्षों के लिए होता है। कांग्रेस के प्रदेश पदाधिकारियों व जिलाध्यक्षों की संभावित सूची पार्टी हाईकमान में लंबित है। इस सूची को लेकर हुड्डा ने कहा कि अगर सूची आती भी है तो यह अस्थाई होगी। स्थाई पदाधिकारियों का फैसला चुनावों के बाद ही होगा।


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