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हरियाणा में कई बार बने राजनीति दलों के गठबंधन, लेकिन टिक नहीं पाते रिश्ते

हरियाणा में राजनीतिक दलों के बीच गठबंधन नई बात नहीं है। दलों ने कई बार गठबंधन किए, लेकिन ये अधिक समय तक टिक नहीं पाए।

By Sunil Kumar JhaEdited By: Published: Wed, 06 Feb 2019 09:08 AM (IST)Updated: Wed, 06 Feb 2019 09:08 AM (IST)
हरियाणा में कई बार बने राजनीति दलों के गठबंधन, लेकिन टिक नहीं पाते रिश्ते
हरियाणा में कई बार बने राजनीति दलों के गठबंधन, लेकिन टिक नहीं पाते रिश्ते

चंडीगढ़, [अनुराग अग्रवाल]। हरियाणा में राजनीतिक दलों के बीच खूब गठबंधन हुए और गठबंधन की सरकारें भी बनीं, लेकिन ये रिश्‍ते अधिक समय नहीं चले। हरियाणा में गठबंधन की राजनीति ज्यादा दिन न तो कभी सिरे चढ़ पाई और न ही गठबंधन के बिना राजनीतिक दलों का काम चल सका। हरियाणा बनने के बाद से ही प्रदेश में जोड़तोड़ की राजनीति शुरू हो गई थी। 53 साल बाद भी गठजोड़ और जोड़तोड़ की राजनीति का असर प्रदेश में कम नहीं हो पाया है। तमाम तरह के कड़वे अनुभवों के बावजूद राजनीतिक दल एक दूसरे पर भरोसा करने की मजबूरी में उलझे हुए हैं।

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हरियाणा बनने के बाद से ही शुरू हो गई थी जोड़तोड़ की राजनीति

इनेलो-बसपा की दोस्ती में दरार इसका ताजा उदाहरण है। पूर्व मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला के परिवार में राजनीतिक कलह और जींद उपचुनाव के नतीजों के बाद बसपा सुप्रीमो मायावती ने इनेलो के साथ अपने राजनीतिक रिश्ते खत्म करने के संकेत दे दिए हैं। इसकी औपचारिक घोषणा होनी बाकी है। बसपा और इनेलो अब अपने नए राजनीतिक सहयोगियों की तलाश में हैं।

प्रदेश में आज तक हुए राजनीतिक गठजोड़ नहीं चढ़ पाए सिरे

अतीत में अगर जाएं तो हरियाणा में गठजोड़ की राजनीति का लंबा इतिहास है। अभी भी इसका पूरा असर देखने को मिल रहा है। पूर्व मुख्यमंत्री राव बीरेंद्र सिंह ने 1967 में सबसे पहले विशाल हरियाणा पार्टी बनाई। वर्ष 1977 में कई राजनीतिक दलों के गठजोड़ से जनता पार्टी का उदय हुआ। तब नारनौल उपचुनाव में जनसंघ ने कैलाश चंद्र और ताऊ देवीलाल ने पूसा राम को आजाद प्रत्याशी के रूप में मैदान में उतारा। यानी गठबंधन के बावजूद नेताओं में दरार उस समय भी थी।

भाजपा, हविपा, इनेलो और बसपा कर चुकी राजनीतिक गठबंधन

सन 1979 में देवीलाल की सरकार तोडऩे के बाद भजनलाल ने 1980 में अपने विधायकों को कांग्रेस में शामिल करा दिया। वर्ष 1982 में बाबू जगजीवन राम और चरण सिंह की पार्टियों के बीच गठजोड़ हुआ था। सन 1987 में डाॅ. मंगल सेन और चौधरी देवीलाल की पार्टियां एक हुईं।

गठबंधन की राजनीति यहीं नहीं रुकी। उसके बाद बंसीलाल के नेतृत्व वाली हरियाणा विकास पार्टी और बहुजन समाज पार्टी में गठबंधन हुआ। फिर भाजपा और हविपा के बीच राजनीतिक गठजोड़ किसी से छिपा नहीं है। इनेलो और भाजपा के बीच गठबंधन की राजनीति कुछ साल चली, मगर इसमें भी दरार पड़ गई।

भाजपा और हजकां का गठबंधन भी प्रदेश में चर्चा का विषय बना रहा, लेकिन वर्ष 2014 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने गठबंधन की राजनीति से कान पकड़ लिए। इसके बाद हजकां और बसपा के राजनीतिक रिश्ते कायम हुए। हजकां और बसपा के बीच दोस्ती नहीं निभ पाने के बाद बसपा ने इनेलो को आजमाया। इनेलो नेता अभय सिंह चौटाला को बसपा सुप्रीमो मायावती ने राखी भी बांधी, मगर राजनीति में इन रिश्तों को भी ध्वस्त होते देखा गया।

हरियाणा में महागठबंधन के आसार, इनेलो और बसपा को नए रास्तों की तलाश

हरियाणा में अब नए राजनीतिक गठबंधन के आसार बन रहे हैं। दुष्यंत चौटाला की सरपरस्ती वाली जननायक जनता पार्टी और आम आदमी पार्टी के बीच मधुर रिश्ते हैं। दोनों ने मिलकर जींद उपचुनाव भी लड़ा। बसपा इन दलों के साथ मिलकर महागठबंधन की नींव रख सकती है। पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र हुड्डा पहले ही कांग्रेस और बसपा के बीच मित्रता के संकेत दे चुके हैं। यह विकल्प भी अब खुला है।

बसपा की निगाह केंद्रीय राज्य मंत्री राव इंद्रजीत पर

हरियाणा में बसपा को अब ऐसे साथी की तलाश है जो पिछड़ा वर्ग के मतदाताओं को लुभा सके। बसपा का अपना एक बंधा हुआ दलित वोट बैंक हैैं। केंद्रीय राज्य मंत्री राव इंद्रजीत ऐसे नेता हैैं, जिनकी दक्षिण हरियाणा खासकर पिछड़े वर्ग के वोट बैैंक में मजबूत पकड़ है।

बसपा की कोशिश राव इंद्रजीत को साधने की है, जबकि भाजपा सांसद राजकुमार सैनी के नेतृत्व वाली लोकतंत्र सुरक्षा पार्टी पर भी बसपा नेताओं की निगाह टिकी हुई है। बसपा के कुछ नेताओं ने केंद्रीय राज्य मंत्री राव इंद्रजीत का मन टटोलने के लिए अपने संपर्क बढ़ाने शुरू कर दिए हैं।


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