छछरौली में पुलिया पर मिली थी मिली, स्वीडन में पली और फिर 25 साल बाद आई भारत
जागरण विशेष : शादी से पहले अपनी पुराना जन्मस्थल देखने पहुंची, जन्म के बाद पुलिया पर छोड़ गए थे प
राजेश मलकानिया, पंचकूला : हर बच्चा अपनी किस्मत लेकर पैदा होता है। 1990 में पैदा हुई एक बच्ची को उसके मा-बाप यमुनानगर जिले की एक पुलिया के पास छोड़ गए थे। यह बच्ची किसी ने बालकुंज छछरौली में पहुंचा दिया, यहा इस बच्ची को नाम मिला मिली। ढाई साल तक मिली के भविष्य के बारे में किसी को नहीं पता था कि वह अनाथालय में पलेगी या फिर उसे कोई गोद ले लेगा। कई बार उसकी फोटो गोद लेने वालों को दिखाई गई, लेकिन किसी रिस्पास नहीं आया। एक दिन अचानक ऐसा करिश्मा हुआ कि मिली को किसी भारतीय नहीं, बल्कि स्वीडन के दंपती ने गोद लेने का फैसला लिया और 1993 में सभी कागजी कार्रवाई पूरी करने के बाद मिली को स्वीडन दंपती अपने साथ ले गया। विदेश में लाड प्यार से हुआ पालन
हरियाणा राज्य बाल कल्याण परिषद के माध्यम से 1993 में स्वीडन निवासी बिल और एन देरेयाज एंडरसन ने इस बच्ची मिली को गोद ले लिया था। इसके बाद स्वीडन में ही मिली का लालन-पालन हुआ और वहीं पर यह अपनी जिंदगी जी रही थी। मिली को स्वीडन दंपती ने बता रखा था कि वे उसे भारत से गोद लेकर आए हैं और उसके असली माता-पिता नहीं हैं। दंपती ने मिली को अच्छा पढ़ाया और आज वे स्वीडन में मैथ एवं स्वीडन भाषा की टीचर हैं। यूं लिया था गोद
सेंट्रल एडॉप्शन रिसोर्स अथॉरिटी के पास स्वीडन की एजेंसी से बच्चे को गोद लेने के लिए आग्रह आया था। जिसके बाद बिल और एन देरेयाज एंडरसन को कई बच्चों का फोटो दिखायागया। काफी मंथन के बाद दंपती ने फैसला किया कि वे हरियाणा बाल कल्याण परिषद के छछरौली स्थित बालकुंज में पल रही मिली को गोद लेंगे। इसके बाद कागजी कार्रवाई के लिए हरियाणा के छछरौली पहुंचे, जहा पर उन्होंने बच्ची को गोद लिया और स्वीडन चले गए। वहा से पाच साल तक उन्होंने मिली के लालन-पालन की रिपोर्ट बाल कल्याण परिषद को भेजी, जोकि कानूनी प्रक्रिया के लिए अहम है। शादी से पहले सब कुछ देखने की तमन्ना
मिली की शादी स्वीडन के जैकब से होने वाली है। मिली ने अपने मंगेतर जैकब और अपने माता-पिता से कहा कि वह उस जगह को देखना चाहती हैं, जहा पर वह फेंक दी गई थी और उसके बाद ढाई साल तक उसे पाला गया। बिल और एन देरेयाज एंडरसन ने हरियाणा बाल कल्याण परिषद को पत्र लिखकर मिली की इच्छा बताई। इसके बाद मिली अपने मंगेतर और माता-पिता के साथ तीन दिन पूर्व भारत आ गई थी। मिली को परिषद द्वारा छछरौली ले जाया गया। यहा पर वह अपनी केयरटेकर चंचल से मिलीं। चंचल ने उसे भरपूर प्यार दिया और चंचल की आखें भी भर आई। ..इसे किस्मत कहते हैं
मिली ने कहा कि मैं बहुत ही खुश किस्मत हूं कि मुझे बिल और एन देरेयाज एंडरसन जैसे मा-बाप मिले। किस्मत कब रंग बदले कोई पता नहीं। एक मा-बाप पुलिया पर छोड़कर भाग गए थे और एक मा-बाप मुझे लेने के लिए स्वीडन से भारत आ गए, इसे किस्मत कहते हैं। बहुत खुश हैं जैकब
जैकब कहते हैं कि मेरे लिए यह बात कोई महत्व नहीं रखती कि मिली अनाथ हैं। स्वीडन में उनकी बहुत अच्छी देखभाल हुई है। मैं मिली से प्यार करता हूं और उससे शादी करने वाला हूं। परिषद के पास मिली के परिवार की ओर से एक पत्र पिछले दिनों मिला था। जिसके बाद हमने पूरी प्रक्रिया करने के बाद मिली, उनके मंगेतर जैकब, बिल और एन देरेयाज एंडरसन को भारत बुलाया। अब पिछले तीन दिन से वह पंचकूला, चंडीगढ़ और छछरौली में परिषद के बाल गृहों को देखने गए। छछरौली में मिली ने अपनी केयरटेकर चंचल से भी मुलाकात की। मैंने मिली से आग्रह किया है कि वह स्वीडन में ओर भी गोद लिए गए बच्चों से मिले और उन्हें भारत लेकर आए। साथ ही स्वीडन में भी भारतीय गोद लिए गए बच्चों का कार्यक्रम करवाने की कोशिश की जाएगी।
-कृष्ण ढुल्ल, मानद महासचिव, हरियाणा राज्य बाल कल्याण परिषद