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HC का बड़ा फैसला , कानूनी तौर पर पिता बच्चे का अभिभावक लेकिन नाना-नानी को भी कस्टडी अवैध नहीं

पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने बच्चे के कानूनी अभिभावक के बारे में अहम फैसला किया है। हाई कोर्ट ने एक मामले में एक बच्‍चे की कस्‍टडी को लेकर कहा कि पिता बच्‍चे का अभिभावक है लेकिन नाना-नानी को कस्‍टडी देना अवैध नहीं है।

By Sunil Kumar JhaEdited By: Published: Wed, 20 Oct 2021 05:44 PM (IST)Updated: Wed, 20 Oct 2021 09:40 PM (IST)
HC का बड़ा फैसला , कानूनी तौर पर पिता बच्चे का अभिभावक लेकिन नाना-नानी को भी कस्टडी अवैध नहीं
पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट की फाइल फोटो।

चंडीगढ़, [दयानंद शर्मा]। पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने बच्‍चे के कानूनी अभिभावक को लेकर महत्‍वपूर्ण फैसला दिया है। हाई कोर्ट ने कहा है कि मां की मृत्यु के बाद पिता अपने बच्चे का प्राकृतिक अभिभावक है लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि बच्चे को मां मायके से अलग कर दिया जाए और वह भी तब च्चा काफी समय से नाना-नानी के पास रह रहा हो। ऐसी  स्थिति में नाना-नानी को बच्‍चे की कस्‍टडी देना अवैध नहीं है। 

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हाई कोर्ट के जस्टिस सुवीर सहगल ने यह आदेश सोनीपत के एक वकील की बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका को खारिज करते हुए दिया। वकील ने अपनी याचिका में दिवंगत पत्नी के माता-पिता और भाई-बहनों की अवैध हिरासत से अपने दो साल और 11 महीने के बेटे की रिहाई के लिए निर्देश देने की मांग की थी।

कहा- कोर्ट के लिए बच्चे का कल्याण सर्वोपरि,पिता की बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका खारिज

हाई कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि बहुत ही कम उम्र के बच्चे को पारिवारिक माहौल से दूर करना उचित नहीं है, जबकि वह पिछले एक साल से अधिक समय से वहां रह रहा है। कोर्ट ने कहा कि कानूनी तौर पर मां की मृत्यु के बाद पिता अपने बच्चे का प्राकृतिक अभिभावक है लेकिन कोर्ट के लिए बच्चे का कल्याण सर्वोपरि है और यह सुनिश्चित करना कोर्ट का बाध्य कर्तव्य है कि बच्चा स्वस्थ और अनुकूल वातावरण में रहे। पिता को इस समय बच्चा सौंपना बच्चे के हित में नहीं होगा।

इस मामले में याची की शादी 2017 में हुई थी और एक बेटे का जन्म हुआ था। उसकी पत्नी का निधन 7 दिसंबर, 2020 को उनके पैतृक घर रोहतक में दिल के दौरे के कारण हुआ था। याचिकाकर्ता के अनुसार जब वह अपनी पत्नी के अंतिम संस्कार में शामिल होने गया था तो उसके परिवार वालों ने उसके बेटे को जबरन उससे छीन लिया।

याचिका का जोरदार विरोध करते हुए, बच्चे के नाना-नानी ने तर्क दिया कि वे करीबी रिश्तेदार होने के कारण, बच्‍चे की मां ने उसकी कस्टडी उन्हें सौंप दी थी और उन्होंने खुद को  बच्‍चे का कानूनी अभिभावक घोषित करने के लिए फैमिली कोर्ट के समक्ष एक याचिका दायर की हुई है , लेकिन याचिकाकर्ता जानबूझकर फैमिली कोर्ट के समक्ष पेश नहीं हो रहा। उन्होंने कोर्ट को यह भी बताया कि उनकी बेटी अंबाला में याचिकाकर्ता के साथ रहती थी, जहां वह आर्मी पब्लिक स्कूल में शिक्षक के रूप में कार्यरत थी। इस दौरान पति अपनी पत्‍नी बच्चे को परेशान करता था। अंतहीन क्रूरता के कारण वह अक्टूबर, 2019 में उससे अलग हो गई थी।

नाना-नानी ने कहा कि याचिकाकर्ता कभी भी अपनी पत्नी और बेटे से मिलने नहीं आया , बल्कि उनके प्रति उनका रवैया अलगाव का था। अपनी पत्नी की मृत्यु के बाद, उनके पति द्वारा प्रथागत क्रिया भी नहीं की गई। सभी पक्षों को सुनने के बाद, हाई कोर्ट ने माना कि नाना-नानी के हाथों में बच्चे की कस्टडी को अवैध नहीं कहा जा सकता है। और याची द्वारा बच्चे को लेकर जो बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर की गई है उसे स्वीकार नहीं किया जा सकता।

इसी के साथ हाई कोर्ट ने संबंधित फैमिली कोर्ट को कहा है कि वो कानूनी अभिभावक घोषित करने के जो याचिका उसके समक्ष विचाराधीन है उसका याची के पेश होने के छह माह के भीतर निपटारा करे।


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