जानें हरियाणा के सत्ता के गलियारे की हलचल, आखिर खाली चला गया बड़े चौधरी का सियासी वार
हरियाणा में सत्ता के गलियारों में पर्दे केे पीछे खूब हलचल होती है। राज्य के सियासी नेताओं की जोड़-तोड़ चलती रहती है। जानें राजनीतिक हलचल का हाल।
चंडीगढ़। हरियाणा के मुख्यमंत्री बनने का सपना देखने वाले पूर्व केंद्रीय मंत्री चौधरी बीरेंद्र सिंह का सारा प्लान चौपट हो गया। मुख्यमंत्री नहीं बन पाने की कसक उनके दिल में आज भी है। बीरेंद्र सिंह कांग्रेस मुख्यमंत्री बनना चाहते थे, तब कांग्रेस में थे और अब भी मुख्यमंत्री बनना चाहते हैं, जब भाजपा में हैं। भाजपा ने उन्हेंं इज्जत बख्शी और केंद्रीय मंत्री बना दिया। उनकी पत्नी प्रेमलता विधायक रह चुकी हैं और अब आइएएस बेटे बृजेंद्र सिंह हिसार से सांसद हैं।
बीरेंद्र सिंह की योजना थी कि किसी तरह केंद्रीय राज्य मंत्री कृष्णपाल गुर्जर को भाजपा का प्रदेश अध्यक्ष बनवाकर मोदी कैबिनेट में एक पद खाली करा लिया जाए और जाट उम्मीदवार के नाते अपने बेटे बृजेंद्र सिंह को मंत्री बनवा दिया जाए। अब भाजपा ने चूंकि जाट प्रदेश अध्यक्ष के रूप में ओमप्रकाश धनखड़ को नियुक्ति दे दी है तो इससे बड़े चौधरी का वार खाली चला गया। हालांकि कृष्ण पाल गुर्जर के नाम का शोर भी खूब रहा, लेकिन कह सकते हैं कि भले ही वह अध्यक्ष नहीं बन पाए, लेकिन उनके पास अगर जीतने के लिए कुछ नहीं है तो खोने के लिए भी कुछ नहीं है।
अफसर अब हाथ जोड़े खड़े रहते हैं इनके सामने
हरियाणा विधानसभा की कमेटियां काफी पावरफुल हो गई है। जब से उन्हेंं अधिकारियों को तलब करने की पावर मिली, तब से अधिकारी इन कमेटियों में पूरी तैयारी के साथ शामिल होने आते हैं। एससी-बीसी कमेटी की बैठक में तीन जिलों के पुलिस कप्तान को सिर्फ इसलिए वापस लौटा दिया गया, क्योंकि वह आधी अधूरी तैयारी के साथ आए थे। विधानसभा की विशेषाधिकार हनन कमेटी भी अब उन अफसरों को धड़ाधड़ तलब कर ही है, जो विधायकों की बात नहीं सुनते अथवा फोन नहीं नहीं उठाते।
इस कमेटी का अफसरों में इतना खौफ है कि विपक्ष के विधायक भी स्पीकर ज्ञानचंद गुप्ता को आकर कहने लगे कि अध्यक्ष जी यह काम तो आपने बहुत बढ़यिा कर दिया। अब अफसर तुरंत बात सुनता है और फोन नहीं उठाने पर रिंग बैक करता है। इससे पब्लिक में हमारी इमेज अच्छी जा रही है। पहले तो जब अफसर फोन नहीं उठाते थे तो पब्लिक को लगता था कि अधिकारी फोन ही नहीं उठा रहा है तो काम क्या खाक करेगा।
फोन नहीं सुनने के भी फायदे हैं साहब
सोनीपत की एक महिला अधिकारी ने कांग्रेसी विधायक जगबीर मलिक का फोन नहीं सुना तो उन्होंने विधानसभा की विशेषाधिकार कमेटी में शिकायत कर दी। विधायकों के पास अपने विशेषाधिकार की रक्षा करने के लिए यह कमेटी है मगर मंत्री बेचारे क्या करें। फरीदाबाद के पत्थर खनन कारोबार से जुड़े व्यापारियों का कहना है कि खनन विभाग में चोरी रोकने के लिए लगाए टॉस्क फोर्स के आइजी स्तर के अधिकारी तो मंत्री का भी फोन नहीं सुनते।
ये व्यापारी बताते हैं कि पिछले दिनों जब वे अपनी शिकायत लेकर मंत्री के पास गए तो इस अधिकारी ने मंत्री का फोन भी नहीं उठाया। बाद में मंत्री की यह शिकायत मुख्यमंत्री के दरबार में गई तो यह अधिकारी अपनी सफाई में यह कहकर बच गया कि फोन उठाता तो चोरी के पत्थर भरे ट्रक छोडऩे पड़ते। अब बताओ अधिकारियों के पास फोन नहीं उठाने के भी फायद हैं साहब। यह अलग बात है कि इस अधिकारी नेयह कैसे समझ लिया कि मंत्री उसे किस काम के लिए फोन कर रहे हैं। काम कोई दूसरा भी तो हो सकता है। इसलिए कई बार ज्यादा दीमाग लगाना नुकसानदायक साबित हो जाता है।
आखिर दिल्ली दरबार ने खोल ही दिया फंसा पेंच
कहते हैं राष्ट्रीय राजनीतिक दलों के दिल्ली दरबार में हर उस फंसे पेच को खोल दिया जाता है जिसमें राज्य स्तर पर जंग लग गया हो। प्रदेश भाजपा अध्यक्ष पद पर भी कुछ इसी तरह का पेच का फंसा हुआ था जिसे दिल्ली दरबार ने आखिर खोल ही दिया। अब यह भी अलग चर्चा है कि दिल्ली दरबार ने यह जंग लगा पेच खोला है या इसके बहाने से और अधिक कस दिया है।
नए भाजपा अध्यक्ष ओमप्रकाश धनखड़ जमीन से जुड़े नेता हैं और वे संगठन के अलावा किसी व्यक्ति विशेष की कठपुतली नहीं बन सकते। प्रदेशाध्यक्ष की भागदौड़ के दौरान भी धनखड़ चुपचाप रहे और सिर्फ फेसबुक व अन्य सोशल मीडिया प्लेटफार्म के माध्यम से वर्चुअल संवाद करते रहे। बेशक धनखड़ दिल्ली नहीं आए मगर वे किसी न किसी संस्मरण के जरिये अपनी श्रृंखला मेरी राह के दीप के माध्यम से प्रभावी नेताओं से जुड़ रहे।
प्रस्तुति - अनुराग अग्रवाल, बिजेंद्र बंसल एवं सुधीर तंवर।