ओमप्रकाश चौटाला के साथ हुई घटना से मिला सबक, किसी के नहीं होते अराजक आंदोलनकारी
जींद के खटकड़ा टोल पर सतबीर पहलवान का एक बयान आता है कि चौटाला ने उसके पैर में डोगा (छड़ी) मारी। इस घटनाक्रम का कोई न तो आडियो है और न ही वीडियो है। अगले दिन सतबीर की कुछ राजनीतिज्ञों के साथ मंच साझा करते हुए फोटो वायरल होती है।
पंचकूला, अनुराग अग्रवाल। अराजक तत्व कभी किसी के नहीं होते। तीनों कृषि सुधार कानूनों के विरोध में पिछले आठ माह से चल रहे आंदोलन में यह बात कई बार सच साबित हो चुकी है। इन आंदोलनकारियों ने हरियाणा के पांच बार मुख्यमंत्री रह चुके 87 साल के इनेलो प्रमुख ओमप्रकाश चौटाला को भी नहीं बख्शा। चौटाला कृषि कानूनों का विरोध कर रहे इन आंदोलनकारियों को अपना समर्थन देने जींद के खटकड़ा टोल प्लाजा पर पहुंचे थे। वहां सतबीर पहलवान नाम के एक आदमी ने चौटाला पर उस समय पैर में डोगा (छड़ी) मारने का आरोप जड़ा जब चौटाला को बोलने के लिए माइक नहीं दिया गया।
बुजुर्ग चौटाला डोगा मारने के आरोप से खासे आहत हैं। चौटाला के साथ र्दुव्यवहार की घटना उस स्थिति में हुई है जब उनके बेटे अभय सिंह चौटाला ने तीनों कृषि कानूनों का विरोध करते हुए ऐलनाबाद विधानसभा सीट से त्यागपत्र दे रखा है। चौटाला ने यह कहकर मामले को ज्यादा तूल देना उचित नहीं समझा कि आंदोलन में हर तरह के लोग होते हैं। कुछ अच्छे तो कुछ माड़े। कुछ लोग ऐसे भी होते हैं, जिन्हें अच्छी बात भी अच्छी नहीं लगती। बुजुर्ग चौटाला के साथ हुए इस पूरे घटनाक्रम ने आंदोलन स्थलों पर बढ़ती जा रही अराजक लोगों की गतिविधियों पर अंकुश लगाना जरूरी कर दिया है।
पूर्व मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला अपने बेटे अभय चौटाला के चंडीगढ़ निवास पर। संजय घिल्डियाल
टीकरी बार्डर से लेकर हरियाणा के आधा दर्जन से ज्यादा आंदोलन स्थल पर अमर्यादित आचरण की घटनाएं किसी से छिपी नहीं हैं। यह वही आंदोलन स्थल हैं, जहां पर मारपीट, दुष्कर्म और लड़ाई झगड़े की एक के बाद एक कई घटनाएं हो चुकी हैं। केंद्र एवं प्रदेश सरकार के संयम का ये आंदोलनकारी पिछले आठ माह से लाभ उठा रहे हैं, यूं कहिए कि अपनी मनमर्जी कर रहे हैं। सरकार इन पर सिर्फ इसलिए ज्यादा सख्ती नहीं कर रही है, ताकि कहीं वे तिल का ताड़ न बना दें। भाजपा की इसी नरमी का फायदा आंदोलनकारी लंबे समय से उठा रहे हैं और किसी भी सत्तारूढ़ नेता के विरुद्ध नारेबाजी करने से लेकर उनकी गाड़ियों के शीशे तोड़ने और घेराव करने तक से नहीं चूक रहे हैं।
ओमप्रकाश चौटाला को माइक न देने की घटना से कई सवाल खड़े हो रहे हैं। चौटाला के साथ यह गलत आचरण उस स्थिति में किया गया, जब उन्होंने बार-बार कहा कि वह न तो मंच पर जाएंगे और न ही किसानों के बीच किसी तरह का भाषण देंगे, लेकिन माइक लेकर वह सिर्फ लोगों को राम-राम करना चाहते हैं। इस पर भी उन्हें माइक नहीं दिया गया। चौटाला जाते-जाते अपने साथ गाड़ी में रखे निजी माइक से लोगों को राम-राम बोल गए। किसान संगठनों से जुड़े ये आंदोलनकारी ताऊ देवीलाल, उनके बेटे ओमप्रकाश चौटाला और उनके भी बेटे अभय सिंह चौटाला के अपने प्रति भाव को समझ नहीं पाए। किसी भी समर्थन देने वाले व्यक्ति का ऐसा विरोध कहीं से वाजिब नहीं है। चौटाला पिछले दिनों गाजीपुर बार्डर पर भी गए थे। वहां उन्हें बड़े मंच पर भले ही न बैठाया गया हो, लेकिन राकेश टिकैत ने उन्हें पूरा सम्मान दिया। दूसरी तरफ ऐसे आंदोलनकारी भी हैं, जिनके अराजक होने की कोई सीमा नहीं है।
जींद के खटकड़ा टोल पर चौटाला और सतबीर पहलवान के बीच संवाद का जो वीडियो वायरल हुआ, वह सारी कहानी कह रहा है। चौटाला अपने पोते करण और सहायक के साथ खड़े हैं। शोर-शराबा चल रहा है। एक पतला-दुबला आदमी जिसका नाम सतबीर पहलवान बताया जाता है, वह बार-बार तुनक कर चौटाला पर हाथ फेंक रहा है। चौटाला उसे बात सुनने के लिए कहते हैं, लेकिन वह सुनने को तैयार नहीं होता। चौटाला माइक मांगते हैं। नहीं दिया जाता। कुछ घंटों के बाद सतबीर पहलवान का एक बयान आता है कि चौटाला ने उसके पैर में डोगा (छड़ी) मारी। इस घटनाक्रम का कोई न तो आडियो है और न ही वीडियो है। अगले दिन सतबीर पहलवान की कुछ राजनीतिज्ञों के साथ मंच साझा करते हुए फोटो वायरल होती है। यह फोटो भी कई तरह के सवाल खड़े कर रही है। इस फोटो के आधार पर सतबीर पहलवान को कोई पुराना लोकदली, कोई जजपाई तो कोई कांग्रेसी बता रहा है। बहरहाल सच्चाई कुछ भी हो, लेकिन आंदोलन में ऐसी अराजकता कतई उचित नहीं है।
[स्टेट ब्यूरो चीफ, हरियाणा]