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सेंध से पहले इनेलो के बसपा से रहे पुराने रिश्ते, हरियाणा में दोनों की दोस्‍ती ने खिलाए थे कई गुल

इनेलो द्वारा बसपा को बड़ा झटका देने के बाद हरियाणा में सियासी हलचल है। इनेलाे और बसपा का पुराना रिश्‍ता रहा है। दोनों ने मिलकर कई चुनाव लड़े थे।

By Sunil Kumar JhaEdited By: Published: Tue, 16 Jun 2020 06:12 PM (IST)Updated: Wed, 17 Jun 2020 08:21 AM (IST)
सेंध से पहले इनेलो के बसपा से रहे पुराने रिश्ते, हरियाणा में दोनों की दोस्‍ती ने खिलाए थे कई गुल
सेंध से पहले इनेलो के बसपा से रहे पुराने रिश्ते, हरियाणा में दोनों की दोस्‍ती ने खिलाए थे कई गुल

चंडीगढ़, [अनुराग अग्रवाल]। इंडियन नेशनल लोकदल (INLD) ने हरियाणा में बहुजन समाज पार्टी (BSP) को तगड़ा झटका दिया है। इससे हरियाणा की राजनी‍ति में हलचल है और पिछले कुछ समय से मंद पडे इनेलो में जान आई है। सेंध से पहले हरियाणा में पूर्व मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला के नेतृत्व वाली इनेलो और बसपा के बीच पुराने राजनीतिक रिश्ते रहे हैं। दोनों दलों ने मिलकर कई चुनाव लड़े और जीत हासिल की। सबसे उल्‍लेखनीय बात है कि बसपा से गठबंधन के बाद वोट प्रतिशत बढ़ने से ही इनेलो का चुनाव आयोग से पार्टी के रूप में मान्‍यता मिली।

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बसपा से गठबंधन के बाद ही इनेलो को मिला था मान्यता प्राप्त दल का दर्जा

2019 के चुनाव से पहले भी इनेलो और बसपा के बीच दस माह तक गठजोड़ रहा, लेकिन चौटाला परिवार के सदस्यों के बीच आपसी खींचतान को आधार बनाकर बसपा सुप्रीमो मायावती ने इस गठबंधन को लंबा नहीं चलने दिया। अब बड़े चौटाला और उनके छोटे बेटे अभय सिंह ने ऐसा दांव खेला कि हरियाणा में बसपा का सफाया करते हुए पूरी प्रदेश यूनिट के तमाम उन नेताओं को इनेलो में शामिल कर लिया, जो बसपा का आधार स्तंभ माने जाते रहे हैं।

इनेलो सुप्रीमो ओमप्रकाश चौटाला पांच बार हरियाणा के मुख्यमंत्री रहे हैं। यह अलग बात है कि उनका तीन से ज्यादा बार का कार्यकाल कुछ दिनों का ही रहा, लेकिन इनेलो को बहुजन समाज पार्टी के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ने के बाद ही मान्यता प्राप्त दल का दर्जा प्राप्त हुआ था। फरवरी 1998 में 12वीं लोकसभा के लिए हुए चुनाव में हरियाणा में इनेलो को चार और बसपा को एक सीट मिली थी। अब बसपा के दो पूर्व अध्यक्षों का अपनी पूरी टीम के साथ इनेलो में विलय इनेलो के लिए कितना कारगर साबित होगा, यह तो बरौदा विधानसभा सीट का उपचुनाव ही साबित करेगा, लेकिन नए समीकरण शहरी निकाय और पंचायती चुनावो में भी अपनी दमदार उपस्थिति दर्ज करा सकते हैं।

बरौदा विधानसभा के उपचुनाव में साबित करना होगा अभय चौटाला को अपना कौशल

22 साल पहले की अगर बात करें तो फरवरी 1998 में 12वीं लोकसभा के मध्यावधि चुनावों में हरियाणा में बसपा के साथ चौधरी देवीलाल और ओमप्रकाश चौटाला की हरियाणा लोक दल राष्ट्रीय (हलोदरा) का गठबंधन हुआ। बाद में यह पार्टी नाम बदलकर इनेलो हो गई। इन चुनावों में हरियाणा की कुल 10 सीटों में से हलोदरा ने सात एवं बसपा ने तीन सीटों पर चुनाव लड़ा। हलोदरा ने कुरुक्षेत्र, सोनीपत, सिरसा और हिसार, जबकि बसपा की अंबाला सीट पर विजय हुई। कांग्रेस ने तीन सीटों करनाल, रोहतक और महेंद्रगढ़ में जीत हासिल की, जबकि हरियाणा विकास पार्टी (हविपा) ने भिवानी और भाजपा ने फरीदाबाद सीट जीती थी।

पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट के अधिवक्ता हेमंत कुमार के अनुसार बसपा के साथ इस चुनावी गठबंधन के फलस्वरूप हलोदरा को हरियाणा में 19 लाख 56 हज़ार 87 यानी 38.21 फीसदी वोट मिले थे, जबकि राष्ट्रीय दल का दर्जा प्राप्त बसपा को हरियाणा में पांच लाख 80 हज़ार 152 वोट यानी 7.68 फीसदी वोट हासिल हुए। देश में बसपा ने जिन 251 लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ा था, उसमें से अंबाला के अतिरिक्त उत्तर प्रदेश में ही चार सीटें अर्थात देश में कुल पांच सीटें ही जीती थीं। उसका राष्ट्रीय वोट प्रतिशत 4.67 ही रहा।

उन्‍होंने बताया कि इन चुनावी नतीजों के आधार पर मई 1998 में चुनाव आयोग द्वारा हलोदरा को हरियाणा में मान्यता प्राप्त राज्य दल का दर्जा प्राप्त हो गया, जो तब तक पूर्व मुख्यमंत्री चौ. बंसीलाल के नेतृत्व वाली हविपा के पास ही था। अगस्त 1998 में हलोदरा ने चुनाव आयोग से अपना नाम बदलवाकर इनेलो करवा लिया।

इनेलो और भाजपा का भी रह चुका गठबंधन, अब दुष्यंत हो चुके अलग

यहां यह जिक्र करना जरूरी है कि इनेलो अब दोफाड़ होकर इनेलो व जजपा हो चुकी है। जजपा संयोजक के नाते दुष्यंत चौटाला और उनके पिता अजय सिंह चौटाला हरियाणा की भाजपा सरकार में साझीदार हैं। जुलाई 1999 में इनेलो ने भाजपा के साथ मिलकर और हविपा के बागी विद्याको के सहयोग से प्रदेश में बंसीलाल की सरकार का तख्तापलट कर दिया था तथा ओम प्रकाश चौटाला ने गठबंधन की सरकार बना ली थी।

1999 चुनाव में भाजपा और इनेलो गठबंधन ने सभी 10 लोकसभी सीटों पर की थी जीत हासिल

सितंबर 1999 में इनेलो और भाजपा ने मिलकर हरियाणा में पांच-पांच सीटों पर चुनाव लड़ा और सभी सीटें जीतीं। इसके बाद फरवरी 2000 में हरियाणा विधानसभा चुनाव में इनेलो-भाजपा ने  प्रदेश में भी मिलकर सरकार बनाई। हालांकि 2004 के लोकसभा चुनाव से ठीक पहले इनेलो और भाजपा का गठबंधन टूट गया और दोनों ने हरियाणा में अलग अलग लोकसभा चुनाव लड़ा।

उस समय केवल भाजपा को ही एक सीट सोनीपत की मिली। इसके बाद 2009 के लोकसभा चुनाव में एक बार फिर भाजपा और इनेलो का गठबंधन हुआ और दोनों ने मिलकर पांच-पांच सीटों पर चुनाव लड़ा, परंतु दोनों ने एक भी  सीट नहीं जीती। इसके बाद इनेलो ने 2014 का लोकसभा चुनाव फिर अकेले लड़ा और दो सीटें हिसार (दुष्यंत चौटाला) और सिरसा (चरणजीत सिंह रोड़ी) की जीती। 2018 के अंत में दुष्यंत ने इनेलो छोड़ अपनी जननायक जनता पार्टी (जजपा) बना ली।

तीसरी बार बदला बसपा ने पाला, दो चुनाव में आठ फीसदी वोट मिले

एडवोकेट हेमंत कुमार के अनुसार मई 2019 में 17वी लोकसभा के आम चुनाव का जिक्र करें तो दोफाड़ हो चुकी इनेलो व जजपा ने अलग-अलग चुनाव लड़े। इनेलो को केवल 1.9 फीसदी वोट मिल पाए, जबकि दुष्यंत चौटाला की जजपा ने आम आदमी पार्टी के साथ गठबंधन कर सात और तीन सीटों पर चुनाव लड़ा। तब जजपा को  4.9 फीसदी वोट मिले। हालांकि इस चुनाव में जजपा एक रजिस्टर्ड पार्टी ही थी, वहीँ बसपा ने राजकुमार सैनी की लोकतंत्र सुरक्षा पार्टी (लोसुपा) के साथ मिलकर आठ और दो सीटों पर चुनाव लड़ा और बसपा को 3.65 फीसदी वोट मिले।

अक्टूबर 2019 में विधानसभा चुनाव हुए, जिसमें इनेलो को मात्र 2.44 फीसदी वोट मिले तथा एकमात्र अभय सिंह चौटाला ऐलनाबाद से जीतकर आए। जननायक जनता पार्टी (जजपा) ने 10 सीटें जीती और उसका वोट प्रतिशत 14.84 फीसदी रहा। इसकेफ़लस्वरूप  जजपा को भारतीय चुनाव आयोग ने हरियाणा में मान्यता प्राप्त क्षेत्रीय दल का दर्जा प्रदान कर दिया। बसपा ने इन चुनावों में 4.14 फीसदी वोट हासिल किए, लेकिन सीट नहीं जीत पाई।

50 वर्ष पहले पहली बार कांग्रेस से विधायक बने थे ओमप्रकाश चौटाला

एक रोचक जानकारी के अनुसार 50 वर्ष पूर्व इनेलो सुप्रीमो ओमप्रकाश चौटाला सर्वप्रथम मई 1970 में सिरसा ज़िले की ऐलनाबाद सीट पर हुए उपचुनाव में कांग्रेस की टिकट पर चुनाव जीतकर हरियाणा विधानसभा के सदस्य बने थे। इसके बाद  मई 1990 के उपचुनाव में सिरसा की दरबाकलां सीट से, वर्ष 1993 के नरवाना उपचुनाव में और फिर लगातार चार विधानसभा आम चुनावों 1996, 2000, 2005 और 2009 में चौटाला जीतकर आए।

चौटाला कुल सात बार विधायक बने, जबकि पांच बार मुख्यमंत्री रहे। जनवरी 2013 में जेबीटी टीचर भर्ती केस में दोषी सिद्ध होने पर दिल्ली की सीबीआई कोर्ट द्वारा उन्हें दस वर्ष कारवास की सजा दी गई एवं जनवरी 2023 में सामान्य रिहाई के बाद या इससे पूर्व जल्द रिहा होने के भी छह वर्ष तक वह चुनाव नहीं लड़ सकते हैं। हालांकि भारतीय चुनाव आयोग इन छह वर्ष की अयोग्यता अवधि को कम या समाप्त कर सकता है।

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