मान नहीं रहे चढूनी, सरकार का सिरदर्द बढ़ाए, दो गुटों में बंटे किसान को समझाना मुश्किल हुआ
हरियाणा के किसान नेता गुरनाम सिंह सरकार के लिए सिरदर्द बन गए हैं। वह सरकार से बातचीत करने को तैयार नहीं हैं। इसके साथ ही किसानों के दो गुट होने से भी उनको समझाना मुश्किल हो गया है।
नई दिल्ली, [बिजेंद्र बंसल]। भाजपा सरकार के लाख प्रयास के बावजूद भी कृषि अध्यादेशों के खिलाफ आंदोलनरत भारतीय किसान यूनियन के नेता गुरनाम सिंह चढूनी मान नहीं रहे हैं। चढूनी और उनके साथ अन्य किसान संगठनों द्वारा किसान आंदोलन खड़ा करने से भाजपा सरकार को संसद के मानसून सत्र के कारण ज्यादा परेशानी हो रही है। दिल्ली के नजदीक हरियाणा के जिलों में चढूनी के आंदोलन से भाजपा भी असहज है।
किसान प्रदर्शन में हिस्सा लेने पहुंचे चढूनी को दिल्ली बार्डर पर हिरासत में लिया
चढूनी अपना समर्थन दिल्ली में हो रहे किसान प्रदर्शनों को भी दे चुके हैं। इससे भाजपा सरकार का यह दावा भी सटीक नहीं बैठ रहा है कि तीनों कृषि अध्यादेश किसान हित में हैं तथा अध्यादेशों को किसानों का समर्थन मिल रहा है। इतना ही नहीं हरियाणा भाजपा ने मंगलवार को जब कृषि अध्यादेशों में संशोधन के लिए आठ सुझाव केंद्रीय कृषि मंत्री को सौंपे तो भी चढूनी अलग रहे। राज्य में भाजपा का संगठन चाहता है कि किसी भी तरह चढूनी कृषि अध्यादेशों का समर्थन करने के लिए मान जाएं तो दिल्ली में पंजाब और उत्तर प्रदेश के किसानों को भी मनाया जा सकता है।
मंगलवार को नई दिल्ली के हरियाणा भवन में सरकार के अध्यादेश का समर्थन कर रहे किसान संगठनों के प्रतिनिधियों से सीधे भिड़ चुके चढूनी अब किसानों के राष्ट्रीय संगठनों के संपर्क में भी हैं। बुधवार को चढूनी जब कुरुक्षेत्र से अपने साथियों के साथ दिल्ली में किसान संगठन के नेता वीएम सिंह से मिलने आ रहे थे तो उन्हें दिल्ली पुलिस ने कुंडली बार्डर पर हिरासत में ले लिया। हालांकि दो घंटे तक अलीपुर थाना में रखने के बाद पुलिस ने उन्हें वापस हरियाणा जाने के लिए बार्डर पर छोड़ दिया। गुरनाम सिंह ने बताया कि कुंडली बॉर्डर से उनके पीछे खुफिया पुलिस के कर्मी तब तक रहे जब तक वे कुरुक्षेत्र जिला की सीमा में प्रवेश नहीं कर गए।
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'' सरकार किसानों के आंदोलन को दबाना चाहती है मगर हमारा आंदोलन यथावत चलता रहेगा। जिला स्तर पर धरने जारी रहेंगे। 20 सितंबर को किसान जगह-जगह रास्ता जाम करेंगे। सरकार खुले मन से बातचीत करने की बजाये भोले किसानों के साथ राजनीतिक दाव खेल रही है। हम मोटे तौर पर पूछ रहे हैं कि जब सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य पर किसान की उपज खरीदने को तैयार है तो फिर इस बात को अध्यादेश का हिस्सा बनाने से गुरेज क्यों किया जा रहा है।
- गुरनाम सिंह चढूनी, किसान नेता, भाकियू।