...तो फिर संपत्ति नहीं बेच पाएंगे 10 लाख लोग, नियमों के मकडजाल में रजिस्ट्री का खेल
हरियाणा में हुए रजिस्ट्री घोटाला का खेल नियमों के मकड़जाल में छिपा हुआ है। नियमों का सही से पालन हाे तो करीब 10 लाख लोग अपनी संपत्ति नहीं बेच पाएंगे।
रेवाड़ी/चंडीगढ़, [महेश कुमार वैद्य]। इन दिनों प्रदेश में रजिस्ट्री घोटाले की गूंज है, मगर कई सवाल अनुत्तरित हैं। आखिर भेंट चढ़ते ही कैसे बिना एनओसी (अनापत्ति प्रमाणपत्र) के कंट्रोल एरिया (नियंत्रित क्षेत्र) में रजिस्ट्री हो जाती है। इसका जवाब चौंकाने वाला है। रजिस्ट्री का खेल उन नियमों के मकड़जाल में छिपा है, जिनकी स्पष्ट व्याख्या नहीं है। सरकार ने एनओसी की शर्तें कड़ाई से लागू की तो एक अनुमान के अनुसार 10 लाख से अधिक मकान मालिक जरूरत के समय भी अपना घर नहीं बेच पाएंगे। इसके विपरीत सरकार ने अगर कुछ बातें स्पष्ट कर दी तो मोटी कमाई करने वाले अफसर घर नहीं भर पाएंगे और गरीबों की जेब पर डाका नहीं पड़ेगा।
दो कनाल जमीन खरीदना-बेचना कानूनी, इससे कम होते ही अपराध!
10 लाख मकान व भूखंड मालिक ऐसे हैं, जिनकी अचल संपत्ति अर्बन कंट्रोल एरिया के गांवों में लालडोरा से बाहर, शहर से सटी अनधिकृत कालोनियों या उस गांव में है जहां शहरीकरण के बावजूद पंचायत का अस्तित्व है। रेवाड़ी का भक्तिनगर इसका उदाहरण है। डालियावास पंचायत में शामिल इस कालोनी में अगर किसी का 200 वर्ग गज का भूखंड या मकान है तो डीटीपी से इसलिए एनओसी नहीं मिलेगी, क्योंकि टाइटल अनधिकृत है। तहसीलदार इसलिए रजिस्ट्री नहीं करेगा, क्योंकि एनओसी नहीं होगी। उन हजारों लोगों के सामने अंधेरा है, जिन्होंने भूमाफिया के चंगुल में फंसकर तीन-चार दशक के दौरान अनधिकृत कालोनियों अथवा लालडोरा के बाहर भूखंड खरीदे हैं।
पुराना खेल, चर्चा नई
आज बेशक उन रजिस्ट्रियों को रद करने की बात की जा रही है, जो लॉकडाउन के दौरान नियमों को ताक पर रखकर की गई है, मगर यह तो वर्षों से चली आ रही परिपाटी में थोड़ा अधिक तेज चलने का मामला भर है। 7ए की शर्त से जुड़े भ्रष्टाचार के मुद्दे को रेवाड़ी के पूर्व विधायक रणधीर कापड़ीवास ने विधानसभा में भी उठाया था लेकिन कोई समाधान नहीं निकला।
दो कनाल जमीन का खेल
अगर आप कंट्रोल एरिया में दो कनाल (1210 वर्ग गज) या इससे अधिक जमीन खरीदते या बेचते हैं तो आपको एनओसी की जरूरत नहीं है। इससे कम जमीन की खरीद-फरोख्त अपराध हो जाता है। मतलब अमीर के लिए राह खुली है जबकि छोटा भूखंड खरीदने की क्षमता वाले निर्धन पर प्रतिबंध है।
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गैर मुमकिन मकान लिखकर होता है पूरा खेल
अवैध प्लाटिंग करने वालों की पूरी कड़ी जुड़ी होती है। इनके प्लाटों की रजिस्ट्री में रजिस्ट्रार कृषि भूमि शब्द हटाकर गैर मुमकिन या मकान लिखकर रजिस्ट्री कर देते हैं। इसमें एनओसी न लेने के सवाल का जवाब मिल जाता है। नगर एवं ग्राम आयोजना विभाग की गाइडलाइन में निर्धारित धारा 7ए के अनुसार कृषि क्षेत्र में एनओसी की जरूरत होती है जबकि नियमित कालोनियों में एनओसी की जरूरत होती ही नहीं है।
लालडोरा से बाहर या अवैध कालोनी में गैर कृषि क्षेत्र बताकर रजिस्ट्री की जाती है। कुछ मामलों में 1210 वर्ग गज के भूखंड में एकाधिक नाम जोड़कर रजिस्ट्री की राह निकाल ली जाती है। नियमों की यह अस्पष्टता ही मोटी कमाई का जरिया बनती है। इसकी मार गरीब झेलते हैं। हरियाणा बनने से अब तक भाजपा से लेकर कांग्रेस व इनेलो तक हर सरकार अवैध कालोनियों को नियमित करती आई है। इसी उदारता व राजनीतिक संरक्षण से माफिया पनपा है।
नियम बनाने से पहले सुनो इनका दर्द
चांदपुर के राहुल ने कहा कि मेरे पिता ने 16-17 साल पहले अपने ही गांव में 300 वर्गगज का भूखंड यह सोचकर खरीदा था कि बड़ी बेटी की शादी में आधा हिस्सा बेच दिया जाएगा। मैं कानून के रास्ते चलना चाहता हूं, मगर इस रास्ते से एनओसी नहीं मिल सकती। मुझे पहले तो यह झूठ बोलना पड़ेगा कि भूखंड में मकान बना हुआ है। इसके बाद भी खरीददार से मोटी रकम की भेंट दिलानी होगी। मेरे जैसे हजारों लोग है। क्या कानून किसी को बीमारी या दुख के समय अपनी चल संपत्ति बेचने से रोक सकता है? इसका जवाब आना चाहिए।
जागरण सुझाव:
-अगर गैर मुमकिन क्षेत्र में बिना एनओसी रजिस्ट्री पर पाबंदी नहीं है तो सरकार इसकी सूचना सार्वजनिक कर दे।
-पहले से बने दस लाख से अधिक मकान मालिकों व पुराने भूखंड धारकों के लिए सरल नीति बने।
-किसान को जरूरत के समय अपनी जमीन में से दो कनाल से कम का भूखंड बेचने की अनुमति मिले।
-कंट्रोल एरिया के गांवों में लालडोर के बाहर व ट्यूबवेलों पर एक बने मकानों को नियमित माना जाए।
-सीएलयू की शर्तें सरल हो। अगर सरकार यह सार्वजनिक कर दे कि किस शहर में व्यक्तिगत आवास के लिए कितनी सीएनयू हुई है तो खुद पोल खुल जाएगी। कई शहरों में यह आंकड़ा शून्य है। इसका कारण जटिल शर्तें है।
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