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हाई कोर्ट की महत्वपूर्ण टिप्पणी, अभिव्यक्ति की आजादी का मतलब जंगली बनकर आरोपों की सीमा लांघना नहीं

पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट (Punjab and Haryana High Court) ने एक मामले में महत्वपूर्ण टिप्पणी की है। कहा कि अभिव्यक्ति की आजादी (Freedom of expression) का मतलब यह नहीं कि आप दूसरों के अधिकारों व मान-सम्मान को ठेस पंहुचा सकते हैं।

By Kamlesh BhattEdited By: Published: Tue, 13 Oct 2020 04:10 PM (IST)Updated: Wed, 14 Oct 2020 11:00 AM (IST)
हाई कोर्ट की महत्वपूर्ण टिप्पणी, अभिव्यक्ति की आजादी का मतलब जंगली बनकर आरोपों की सीमा लांघना नहीं
पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट की फाइल फोटो।

चंडीगढ़ [दयानंद शर्मा]। विचारों की अभिव्यक्ति या अभिव्यक्ति की आजादी (Freedom of expression) का मतलब यह नहीं कि आप दूसरों के अधिकारों व मान-सम्मान को ठेस पंहुचा सकते हैं। भारत के हर नागरिक को अपने विचार व्यक्त करने का अधिकार मिला हुआ है, लेकिन भाषण की आजादी का मतलब यह नहीं है कि कोई जंगली बनकर दुर्भावनापूर्ण आरोप लगाने में सीमा ही लांघ दे। पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट (Punjab and Haryana High Court) ने यह टिप्पणी फेसबुक, यू-ट्यूब और ट्विटर अकाउंट पर सेना की एक यूनिट के खिलाफ आपत्तिजनक सामग्री अपलोड करने के एक आरोपित की अग्रिम जमानत याचिका को खारिज करते हुए की।

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इस मामले में सेना की एक पूर्व महिला अधिकारी सेना के एक कमांडिंग आफिसर की पत्नी है। उसने अंबाला कैंट पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज कराई कि साबका सैनिक संघर्ष कमेटी नामक यू ट्यूब चैनल का एडमिन कपिल देव अपने चैनल पर सेना के खिलाफ आपत्तिजनक सामग्री अपलोड कर रहा है। चैनल ने सेना की एक यूनिट के खिलाफ कुछ वीडियो अपलोड किए, जिसमें कहा गया कि कुछ जवानों को यूनिट के कमांडिंग अधिकारी की पत्नी को सलाम न करने पर सजा दी गई। इस बाबत उसने सेना व अधिकारियों के खिलाफ हेट स्पीच (गलत टिप्पणियां करना) भी दी।

पूर्व महिला सेना अधिकारी ने हाई कोर्ट में आरोपित की अग्रिम जमानत का विरोध करते हुए कहा कि उसने सेना में मेजर के पद पर काम किया और उसके पति अभी कमांडिंग आफिसर हैंं, लेकिन आरोपित ने उनके खिलाफ दुष्प्रचार किया और सेना के कई महत्वपूर्ण व गोपनीय दस्तावेज अपलोड किए। इससे उनके सम्मान, प्रतिष्ठा और सामाजिक स्थिति को गहरी ठेस लगी है।

हाई कोर्ट के जस्टिस एचएस मदान ने कहा कि इस मामले में शिकायतकर्ता सेना की सम्मानित अधिकारी रही हैं और उनके पति अभी देश की सेवा कर रहे हैं। इनको छोड़कर भी किसी आम आदमी की प्रतिष्ठा और सम्मान को ठेस पहुंचाने का किसी को कोई हक नहीं है। ऐसे आरोपों को हलके में नहीं लिया जा सकता। बेंच ने कहा कि विचारों की अभिव्यक्ति का मतलब यह कतई नहीं कि आप किसी के मान सम्मान को चोट पहुंचाएंं।

बेंच ने कहा कि इस मामले में आरोपित को हिरासत में लेकर पूछताछ जरूरी है। इस बात की जांच जरूरी है कि आरोपित सेना की यूनिट व अधिकारियों के खिलाफ यू ट्यूब चैनल पर वीडियो अपलोड क्यों कर रहा है? इसके पीछे उसका वास्तविक मकसद और उसके साथी कौन हैं? केवल इस आधार पर कि वह जांच में शामिल हो गया है और पुलिस ने उसका मोबाइल अपने कब्जे में ले लिया है, अग्रिम जमानत का अधिकारी नहीं बनता।

बेंच ने कहा कि याची ने नफरत भरे भाषणों के माध्यम से सेना के खिलाफ असंतोष और दरार पैदा करने का प्रयास किया। इसके अलावा, उसने आधिकारिक दस्तावेजों और सेना प्रतिष्ठानों की गतिविधियों के प्रतिबंधित वीडियो अपलोड कर देश की सुरक्षा व राष्ट्रीय हितों को नुकसान करने का गंभीर कृत्य किया है। इससे पहले मई में अंबाला जिला अदालत ने भी उसको अंतरिम राहत देने से इन्कार कर दिया था। 


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