जमानत के लिए 100 करोड़ के बांड की शर्त, हाई कोर्ट ने कहा- ऐसी शर्त नहीं रखनी चाहिए जिससे यह कल्पना बन जाए
फरीदाबाद कोर्ट ने एक व्यक्ति की जमानत के लिए 100 करोड़ रुपये के बांड की शर्त रख दी। मामला हाई कोर्ट पहुंचा तो हाई कोर्ट ने कहा कि ऐसी शर्त नहीं ऱखनी चाहिए जिससे यह कल्पना बन जाए।
चंडीगढ़ [दयानंद शर्मा]। पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने फरीदाबाद कोर्ट द्वारा जमानत देने केे बारे में रखी एक शर्त को रद करते हुए सख्त टिप्पणी करते हुए कहा है कि जमानत देने के लिए ऐसी शर्त नहीं रखनी चाहिए जो संभव न हो सके और जमानत केवल कल्पना बनकर रह जाए। जज को जमानत देेते समय न्यायिक शक्ति का उपयोग विवेकपूर्ण तरीके से करना चाहिए।
हाई कोर्ट के जस्टिस अरूण मोगा ने यह टिप्पणी फरीदाबाद के एक नामी बिल्डर अनिल जिंदल की जिला अदालत के आदेश को चुनौती देने वाली एक याचिका पर सुनवाई करते हुए दी। फरीदाबाद कोर्ट ने जिंदल को इस शर्त पर जमानत दी थी कि उसे व्यक्तिगत बांड के बदले 100 करोड़ रुपये की किसी भी संपत्ति के विवरण और दस्तावेजों प्रस्तुत करने होंगे।
हाई कोर्ट ने कहा कि जमानत देते समय ऐसी शर्तें लगाना, जिनका अनुपालन अक्षम हो, जमानत को एक पूर्ण कल्पना बना देती है। हाई कोर्ट ने माना है कि किसी अदालत द्वारा लगाई गई जमानत की शर्तें इतनी दुष्कर भी नहीं होनी चाहिए कि वे जमानत के लिए घातक साबित हो जाएं। बेंच ने कहा ऐसे में तो किसी को जमानत देने का भ्रम देने के बजाय जमानत को अस्वीकार ही किया जा सकता है।
पीठ ने कहा कि जमानत देने के लिए लगाई शर्त ऐसी नहीं होनी चाहिए कि वह स्वयं ही जमानत के आदेश को शून्यता के रूप में प्रस्तुत कर दें। याचिकाकर्ता को 67 प्राथमिकियों के संबंध में गिरफ्तार किया गया था, जो
उसके खिलाफ जालसाली, धोखाधड़ी आदि धाराओं के तहत दर्ज की गई थी। उसने केवल एक प्राथमिकी के संबंध में जमानत याचिका दायर की थी। जमानत देते समय, अदालत ने प्रत्येक प्राथमिकी पर विचार किया और पाया कि लगभग 300 करोड़ की धोखाधड़ी का मामला बनता है। उसी के अनुसार अदालत ने जमानत के लिए उक्त शर्त लगा दी।
हालांकि हाई कोर्ट ने निवेशकों के हित के बारे में जिला अदालत द्वारा जताई गई चिंता पर संतोष जताया। बेंच ने अपने फैसले में कहा कि स्वतंत्रता और कानून को एक साथ जाना चाहिए। कानून एक संदिग्ध व्यक्ति की स्वतंत्रता को कम करने की अनुमति देता है, लेकिन इस विषय के आधार पर स्वतंत्रता पर अंकुश नहीं लगाया जा सकता है, जिनकी परिकल्पना कानून में नहीं की गई है। जैसा कि वर्तमान मामले में किया गया है।
यह भी पाया गया कि एडीशनल सेशन जज द्वारा पारित आदेश में सिक्योरटी के लिए लगाई गई भारी शर्तें अनुचित और अतिक ठोर थी। इस बात को ध्यान में नहीं रखा गया कि याचिकाकर्ता (26 महीने से ) अभी भी जेल में बंद है, जबकि उसे एक साल पहले जमानत का आदेश प्राप्त हो गया था।
याचिकाकर्ता की अक्षमता के कारण उसे आगे भी हिरासत में रखना अनुचित होगा और उसे खुद का बचाव करने में भी अत्यधिक कठिनाई होगी। हाई कोर्ट ने जमानत की संबंधित शर्त में संशोधन करते हुए याचिकाकर्ता को तीन करोड़ रुपये के व्यक्तिगत बांड व एक जमानती पेश करने की शर्त पर जमानत दे दी।
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