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हिसार के एक स्कूल में छात्र से टीचर तक सब कुछ फर्जी, जुर्माना मात्र एक लाख, हाई कोर्ट ने दिए विस्तृत जांच के आदेश

हिसार जिले के एक स्कूल में टीचर से स्टूडेंट तक सबकुछ फर्जी था। मामले की जांच हुई तो महज एक लाख रुपये का जुर्माना लगा दिया गया। हाई कोर्ट ने अब मुख्य सचिव को आदेश दिया है कि मामले की अपनी निगरानी में विस्तृत जांच करवाएं।

By Kamlesh BhattEdited By: Published: Sat, 31 Oct 2020 01:01 PM (IST)Updated: Sat, 31 Oct 2020 07:40 PM (IST)
हिसार के एक स्कूल में छात्र से टीचर तक सब कुछ फर्जी, जुर्माना मात्र एक लाख, हाई कोर्ट ने दिए विस्तृत जांच के आदेश
हिसार के स्कूल में टीचर से स्टूडेंट तक सब कुछ फर्जी। सांकेतिक फोटो

जेएनएन, चंडीगढ़। हरियाणा के हिसार जिले के एक स्कूल में फर्जी छात्र और फर्जी कक्षाएं चलाने का मामले में पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट के आदेश पर राज्य के मुख्य सचिव ने हलफनामा दायर कर कोर्ट को बताया कि इस मामलेे की स्कूल शिक्षा विभाग के निदेशक ने जो जांच की है। वह उससे असंतुष्ट हैंं, इसलिए उन्होंने इस मामले की जांच स्कूल शिक्षा विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव (एसीएस) को दी है। एसीएस छह सप्ताह में इसकी जांच रिपोर्ट सौंप देंगे।

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स्कूल व अन्य प्रतिवादी पक्ष ने हाई कोर्ट में आरोप लगाया कि जांच में उनका पक्ष सही तरीके से नहीं सुना जा रहा। इस पर कोर्ट ने मुख्य सचिव को आदेश दिया कि वो सभी पक्षों को सही तरीके सुनने का मौका दे। हाई कोर्ट ने स्कूल शिक्षा विभाग को यह भी निर्देश दिया कि वो जांच कर 18 नवंबर तक अपनी जांच कर रिपोर्ट कोर्ट में सौंपे। हाई कोर्ट ने फर्जी छात्र और फर्जी क्लास रूम मामले में बोर्ड चेयरमैन द्वारा स्कूल के खिलाफ कोई कार्रवाई न करने और स्कूल पर केवल एक लाख रुपये का जुर्माना लगाने पर सवाल खड़ा किया।

हाई कोर्ट ने बोर्ड के चेयरमैन की कार्यशैली के प्रति कड़ा रूख अपनाते हुए राज्य के मुख्य सचिव को आदेश दिया है कि फर्जी छात्र और फर्जी क्लास रूम मामले की अपनी निगरानी में विस्तृत जांच करवाएं। इस जांच में बोर्ड व बोर्ड के चेयरमैन से लेकर निचले स्तर के अधिकारी की भूमिका के बारे में भी जांच कर हाई कोर्ट में रिपेार्ट दी जाए।

हाई कोर्ट ने यह आदेश आशीष व अन्य द्वारा दायर याचिका पर दिए। याचिका के मुताबिक यह मामला हिसार जिले के डीएन पब्लिक स्कूल बरवाला का है। इन छात्रों ने दसवीं कक्षा का उनका परिणाम घोषित न करने के बोर्ड के आदेश को चुनौती दी थी। हाई कोर्ट के नोटिस पर बोर्ड ने परिणाम घोषित न करने पर अपना जवाब दायर कर कहा कि जनवरी में स्कूल पर बोर्ड की कमेटी द्वारा छापा मारा गया था और पाया गया कि शिक्षक और छात्र स्कूल में उपलब्ध नहीं थे।

पूछताछ करने पर कमेटी को सूचित किया गया कि छात्र खेलने के लिए गए हैं और शीघ्र ही आने वाले हैं। एक घंटे के इंतजार के बाद कुछ छात्र सिविल ड्रेस में आए और उन्हें कक्षा एक से पांच तक के बच्चों के क्लास रूम में बैठा दिया गया। इन कमरों में छोटे बच्चों के बैठने के मुताबिक फर्नीचर था। शिक्षकों ने कड़ी पूछताछ पर स्वीकार किया कि वह किसी दूसरे स्कूल के शिक्षक हैं। इन गंभीर अनियमितताओं को देखते हुए बोर्ड ने जून में स्कूल पर एक लाख रुपये का जुर्माना लगाने का आदेश दिया।

बाद में स्कूल द्वारा जुर्माना न जमा करने के आधार पर बोर्ड द्वारा छात्रों का परिणाम घोषित नहीं किया गया था। इस पर बच्चों की तरफ से वकील ने कहा कि यह स्कूल व बोर्ड का मामला है। बच्चों को बोर्ड द्वारा एडमिट कार्ड जारी किए गए थे। ऐसे में दोनों के बीच विवाद के चलते उनको दंडित नहीं किया जा सकता।

हाई कोर्ट यह देखकर आश्चर्यचकित था कि बोर्ड चेयरमैन ने कोई सख्त कदम उठाने के बजाय, स्कूल पर केवल एक लाख रुपये का जुर्माना लगाया। स्कूल फर्जी छात्रों के साथ फर्जी कक्षाएं चला रहा था, जो छात्र वास्तव में कक्षाओं में भाग नहीं ले रहे थे, लेकिन उन्हें नियमित छात्रों के रूप में परीक्षा देने की अनुमति दी जा रही थी। हाई कोर्ट ने बोर्ड को याचिकाकर्ताओं के परिणाम को घोषित करने का निर्देश देते हुए मुख्य सचिव को चेयरमैन समेत सभी अधिकारियों की कार्यशैली की जांच करने के आदेश दिए थे।

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