श्रम कानूनों में बदलाव की आहट से कर्मचारी भड़के, निजीकरण किया तो उतरेेंगेे सड़कों पर
आर्थिक सुधारों के नाम पर श्रम कानूनों में मजदूर विरोधी बदलाव करने और जन सेवाओं के निजीकरण के खिलाफ कर्मचारी एवं मजदूर सड़कों पर उतर सकते हैं।
जेएनएन, चंडीगढ़। आर्थिक सुधारों के नाम पर श्रम कानूनों में मजदूर विरोधी बदलाव करने और जन सेवाओं के निजीकरण के खिलाफ कर्मचारी एवं मजदूर सड़कों पर उतर सकते हैं। ऑल इंडिया स्टेट गवर्नमेंट इंप्लाइज फेडरेशन की दो दिवसीय राष्ट्रीय कार्यकारिणी में यह चेतावनी दी गई है। चंडीगढ़ में आयोजित बैठक में हरियाणा, पंजाब, चंडीगढ़, हिमाचल सहित 25 राज्यों एवं केंद्रशासित राज्यों के कर्मचारी संगठनों के सैकड़ों प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया।
फेडरेशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष सुभाष लांबा ने कहा कि केंद्र सरकार सार्वजनिक क्षेत्र के 42 उपक्रमों के निजीकरण या उन्हें बंद करने की तैयारी में है जिसकी तस्दीक नीति आयोग के वाइस चेयरमैन राजीव कुमार भी कर चुके हैं। पीएसएसएफ के राज्य प्रधान रविंद्र लूथरा, महासचिव सुखदेव सैनी व यूटी चंडीगढ़ इंप्लाइज फेडरेशन के प्रधान रणबीर चंद ने कहा कि केंद्र सरकार को जन सेवाओं का निजीकरण करने की बजाय इन्हें मजबूत करके आम आदमी को बेहतर जनसेवाएं प्रदान करने का कदम उठाने चाहिए।
लांबा ने कहा कि केंद्र एवं राज्य सरकारों में 50 लाख पद रिक्त पड़े हुए हैं जिन्हें सरकार स्थायी नियुक्तियों के बजाय आउटसोर्सिंग से भरने पर अमादा है। सरकार न तो कच्चे कर्मचारियों को पक्का कर रही है और न ही उन्हें समान काम समान वेतन देने के प्रति गंभीर है। 44 केंद्रीय श्रम कानूनों को चार कोड में बदला जा रहा है। बिजली एवं ट्रांसपोर्ट सेक्टर को विशेषतौर पर निशाना बनाया जा रहा है। उन्होंने कहा कि दिसंबर में राष्ट्रीय जनरल कौंसिल की जाएगी, जिसमें आगे की रणनीति तय की जाएगी।
हरियाणा की ताजा खबरें पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
पंजाब की ताजा खबरें पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
लोकसभा चुनाव और क्रिकेट से संबंधित अपडेट पाने के लिए डाउनलोड करें जागरण एप