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बंसी व भजनलाल के दलों से ज्यादा रहा Dushyant Chautala की JJP का असर, अब ये हैं सात चुनौतियां

Dushyant Chautala की JJP ने बहुत कम समय में मुकाम हासिल किया। एक साल की अवधि में इस नवगठित पार्टी ने तीन बड़े चुनावों का बखूबी सामना किया।

By Kamlesh BhattEdited By: Published: Tue, 03 Dec 2019 07:30 AM (IST)Updated: Tue, 03 Dec 2019 08:57 PM (IST)
बंसी व भजनलाल के दलों से ज्यादा रहा Dushyant Chautala की JJP का असर, अब ये हैं सात चुनौतियां
बंसी व भजनलाल के दलों से ज्यादा रहा Dushyant Chautala की JJP का असर, अब ये हैं सात चुनौतियां

जेएनएन, चंडीगढ़। हरियाणा की भाजपा सरकार में साझीदार जननायक जनता पार्टी (JJP) ने बहुत कम समय में बड़ा राजनीतिक मुकाम हासिल किया है। देश के पूर्व उप प्रधानमंत्री स्व. देवीलाल के पड़पोते दुष्यंत चौटाला (Dushyant Chautala) ने अपने दादा ओमप्रकाश चौटाला की राह पर चलते हुए जननायक जनता पार्टी का गठन किया था। चौटाला ने 1987 में इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) बनाई, जिसके बाद उन्होंने राजनीति में कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।

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दादा ओमप्रकाश चौटाला के ही नेतृत्व वाली इनेलो से निकाले जाने के बाद दुष्यंत चौटाला ने पिछले साल नौ दिसंबर को जननायक जनता पार्टी की नींव रखी। दुष्यंत ने पार्टी गठन के मात्र एक साल के छोटे से कार्यकाल में न केवल मजबूत संगठन खड़ा करने में कामयाबी हासिल की, बल्कि कार्यकर्ताओं की मजबूत फौज तैयार करते हुए सत्ता में भी प्रभावशाली हिस्सेदारी कायम करने में वह कामयाब हो गए।

दुष्यंत चौटाला ने जजपा के एक साल के कार्यकाल में अपने संगठनात्मक कौशल का शानदार प्रदर्शन किया है। इस एक साल की अवधि में दुष्यंत की जजपा ने तीन बड़े चुनावों का बखूबी सामना किया है। जींद उपचुनाव में कांग्रेस के दिग्गज नेता रणदीप सुरजेवाला की हार का कारण बनने के बाद जजपा लोकसभा चुनाव में पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा की पराजय का बड़ा कारण बनी। इसके तुरंत बाद जजपा ने विधानसभा चुनाव में दस सीटें जीतकर राजनीति में खुद को स्थापित करने का कोई मौका हाथ से नहीं जाने दिया।

विधानसभा चुनाव में भाजपा ने 40, कांग्रेस ने 31 और जजपा ने 10 सीटें जीती। सत्ता का गणित बैठाने में माहिर हो चुके दुष्यंत चौटाला ने भाजपा के साथ ऐसी गोटी फिट की कि कांग्रेस 31 विधायकों के बावजूद चारों खाने चित्त हो गई। शुरू में हालांकि दुष्यंत के इस कदम के कारण उन्हें आलोचना का शिकार होना पड़ा, लेकिन दुष्यंत चौटाला, उनके भाई दिग्विजय चौटाला और मां नैना चौटाला की टीम प्रदेश को यह समझाने में पूरी तरह से कामयाब रही कि किसी भी चुनाव का अंत सत्ता का शीर्ष है, जिसके जरिये देश, प्रदेश, कार्यकर्ता और पब्लिक की सेवा की जा सकती है।

हरियाणा में हालांकि पहले भी क्षेत्रीय दलों का गठन हुआ और उन्हें केंद्रीय चुनाव आयोग से मान्यता मिली है, लेकिन एक साल के कार्यकाल में तीन बड़े चुनाव लड़कर सत्ता में भागीदार होने वाली जननायक जनता पार्टी पहली है। जजपा को इस चुनाव में 15.34 प्रतिशत वोट मिले हैं। 1991 में पूर्व मुख्यमंत्री स्व. बंसीलाल की हरियाणा विकास पार्टी अस्तित्व में आई थी। तब उसे 12.54 फीसद वोट मिले थे। 1996 में इस पार्टी का ग्राफ बढ़ा और उसे 22.66 फीसद मत पड़े, जबकि 2000 में 5.66 फीसद मतों पर संतोष करना पड़ गया था।

पूर्व मुुख्यमंत्री स्व. भजनलाल के बेटे कुलदीप बिश्नोई ने भी हरियाणा जनहित कांग्रेस बनाई थी। 2009 में हजकां को 7.41 फीसद और 2014 में 3.57 फीसद वोट मिले थे। हरियाणा गठन के बाद राव वीरेंद्र सिंह हरियाणा विशाल पार्टी भी सत्ता के शीर्ष पर पहुंचने में कामयाब हुई थी, लेकिन दुष्यंत चौटाला की जननायक जनता पार्टी ने पहले ही साल में तीन चुनाव लड़ते हुए 5.34 प्रतिशत वोट हासिल कर न केवल बड़ी उपलब्धि हासिल की, बल्कि 10 विधायकों के साथ सत्ता में भागीदार बनते हुए अपने राजनीतिक कौशल का भी परिचय दिया।

अब क्या होंगी दुष्यंत चौटाला की चुनौतियां

  1. संगठन का विस्तार, प्रदेश व जिला इकाइयों में असरदार पदाधिकारियों की नियुक्ति
  2. जिन दस विधायकों के बूते दुष्यंत सत्ता के शीर्ष पर पहुंचेे, उन्हें साथ लेकर चलना
  3. पिता अजय सिंह चौटाला के राजनीतिक कद के बराबर प्रदेश में पहचान बनाना
  4. सत्ता में रहते हुए कार्यकर्ताओं को अपनेपन का अहसास
  5. भाजपा की नीतियों के अनुरूप खुद को ढालना व कार्यकर्ताओं को नाराज न होने देना
  6. मनोहर कैबिनेट में खुद का दमदार वजूद बनाए रखना
  7. पुरानी चौटाला सरकार के कार्यकाल की छवि को साफ कर अपनी बेदाग छवि कायम करना

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