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गैर HCS कर्मचारियों से IAS के चयन पर विवाद, हाई कोर्ट ने सरकार से मांगा जवाब

गैर HCS कर्मचारियों से IAS में चयन के लिए बोर्ड निगम और विश्वविद्यालयों सहित स्वायत्त निकायों में कार्यरत कर्मचारियों को बाहर रखा गया है। इसका विरोध हो रहा है।

By Kamlesh BhattEdited By: Published: Tue, 07 Jul 2020 10:08 AM (IST)Updated: Tue, 07 Jul 2020 12:35 PM (IST)
गैर HCS कर्मचारियों से IAS के चयन पर विवाद, हाई कोर्ट ने सरकार से मांगा जवाब
गैर HCS कर्मचारियों से IAS के चयन पर विवाद, हाई कोर्ट ने सरकार से मांगा जवाब

जेेेेेेेएनएन, चंडीगढ़। हरियाणा सरकार द्वारा गैर HCS कर्मचारियों से IAS के पांच पदों की चयन प्रक्रिया में बोर्ड, निगम और विश्वविद्यालयों सहित अन्य स्वायत्त निकायों में कार्यरत कर्मचारियों को बाहर रखने को पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट में चुनौती दी गई है। गत दिवस इस विषय पर कई अन्य याचिका भी दायर की गई थी। इस पर हाई कोर्ट की बेंच ने सभी याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई का निर्णय लेते हुए मंगलवार तक स्थगित कर दिया था। आज हाई कोर्ट ने सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है।

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बीपीएस महिला विश्वविद्यालय सोनीपत के डॉ. अनिल बलहारा व अन्य ने हाई कोर्ट में याचिका दायर कर सरकार के फैसले को चुनौती दी है। याचिका में बताया गया कि 2018 की चयन सूची के लिए हरियाणा लोक सेवा आयोग द्वारा 20 जून को IAS के पांच पदों को भरने का विज्ञापन जारी किया गया था। इस विज्ञापन में सभी बोर्ड, निगम और अन्य स्वायत्त निकायों के कर्मचारियों को इस भर्ती से बाहर रखा गया। आवेदन पत्र ऑनलाइन जमा करने की अंतिम तिथि 28 जून थी।

इस संबंध में, हरियाणा सरकार ने 23 जून को एक पत्र जारी किया था जिसमें सभी विभागों के प्रशासनिक सचिवों को नोडल अधिकारी नियुक्त करने और प्रपत्रों को पूरा करने और समयबद्ध तरीके से एचपीएससी को भेजने के लिए कहा था। याचिकाकर्ता ने कहा कि वह विज्ञापन के तहत IAS की भर्ती के लिए पूरी तरह से योग्य है लेकिन सरकार ने इस भर्ती में विश्वविद्यालय के कर्मचारियों को शामिल नहीं किया जिस कारण उसका आवेदन रद हो गया।

याचिकाकर्ता के अनुसार वह सरकार का कर्मचारी है, सरकारी फंड से उनको वेतन व अन्य सुविधा मिलती हैं ऐसे में उसको अयोग्य मानना सरकार का फैसला अनुचित व भेदभाव पूर्ण है।याचिकाकर्ता कहा कि गैर-राज्य सिविल सेवा के माध्यम से IAS के पद के लिए सर्वश्रेष्ठ उम्मीदवार का चयन करना एक अच्छी पहल है, लेकिन इसमें सभी को मौका मिलना चाहिए। याचिकाकर्ता ने हैरानी जताते हुए कहा कि राज्य के सरकारी कॉलेजों में काम करने वाले सहायक प्रोफेसर या शिक्षक इस पद के लिए आवेदन करने के पात्र हैं, जबकि राज्य में समान योग्यता और समान वेतनमान वाले विश्वविद्यालय शिक्षकों को बाहर रखा गया है।


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