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अभी पूरी तरह बंद नहीं हुए कालका के निवर्तमान विधायक प्रदीप चौधरी के रास्ते, जानें कैसे

हरियाणा विधानसभा अध्यक्ष ज्ञानचंद गुप्ता ने कालका के विधायक प्रदीप चौधरी को विधानसभा की सदस्यता से अयोग्य घोषित करते हुए गजट नोटिफिकेशन जारी कर दिया है। लेकिन चौधरी को यदि ऊपरी कोर्ट से राहत मिलती है तो उनकी सदस्यता बहाल हो सकती है।

By Kamlesh BhattEdited By: Published: Sun, 31 Jan 2021 04:23 PM (IST)Updated: Sun, 31 Jan 2021 04:23 PM (IST)
अभी पूरी तरह बंद नहीं हुए कालका के निवर्तमान विधायक प्रदीप चौधरी के रास्ते, जानें कैसे
कालका के निवर्तमान विधायक प्रदीप चौधरी की फाइल फोटो।

जेएनएन, चंडीगढ़। कालका के कांग्रेस विधायक प्रदीप चौधरी के पास विधानसभा से अपनी सदस्यता बचा पाने का अब मात्र एक ही रास्ता बचा है। प्रदीप चौधरी यदि ऊपरी कोर्ट से अपने विरुद्ध निचली कोर्ट के दंड आदेश (सेंटेंस) और सजा (कन्वीक्शन) को स्थगित कराने में कामयाब हो जाते हैं तो उनकी विधानसभा की सदस्यता बहाल हो सकती है। दिसंबर 2019 में मध्य प्रदेश के भाजपा विधायक की सजा को हाई कोर्ट द्वारा स्टे कर दिए जाने के बाद उनकी सदस्यता बहाल हुई थी, जबकि इसी साल 28 जनवरी को दिल्ली के एक विधायक को सेशन कोर्ट से राहत मिल चुकी है।

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प्रदीप चौधरी पहले इनेलो में थे, लेकिन पिछला चुनाव उन्होंने कांग्रेस के टिकट पर लड़ा और जीत गए। 14 जनवरी को हिमाचल प्रदेश के सोलन जिले की नालागढ़ प्रथम श्रेणी न्यायिक मजिस्ट्रेट अदालत ने प्रदीप चौधरी एवं 14 अन्यों को धारा 143, 341, 147, 148, 353, 332, 324, 435 और 149 के तहत अपराधी घोषित किया गया है। उन्हें तीन साल की सजा हुई है। सुप्रीम कोर्ट का 2013 का फैसला है कि जो जनप्रतिनिधि 2 साल या उससे अधिक सजायाफ्ता होगा, उसकी सदस्यता खारिज हो जाएगी। सुप्रीम कोर्ट के इसी फैसले के आधार पर स्पीकर ज्ञानचंद गुप्ता ने शनिवार को प्रदीप चौधरी को विधानसभा की सदस्यता से अयोग्य घोषित करते हुए गजट नोटिफिकेशन जारी कर दी।

हरियाणा कांग्रेस की अध्यक्ष कु. सैलजा और स्वयं प्रदीप चौधरी ने हालांकि उन्हें अपनी बात नहीं रखने का मौका नहीं देने के खुले आरोप स्पीकर पर लगाए हैं, लेकिन अब प्रदीप चौधरी कानूनी राय लेने में जुटे हुए हैं। नालागढ़ अदालत द्वारा हालांकि प्रदीप चौधरी एवं अन्य दोषियों के विरुद्ध दिया गया दंडादेश सीआरपीसी 1973 की धारा 389 के अंतर्गत 30 दिनों तक के लिए अर्थात 28 फरवरी तक स्थगित कर दिया गया है, ताकि सभी दोषी ऊपरी अदालत (सोलन जिले की सेशन कोर्ट) में इसे चुनौती देते हुए अपील दायर कर सकें, मगर केवल अपीलेट सेशन कोर्ट में क्रीमिनल अपील दायर कर निचली अदालत के आदेश के विरूद्ध ही स्टे हासिल करना प्रदीप चौधरी के लिए पर्याप्त नहीं होगा। अगर उन्हें अपनी विधानसभा सदस्यता बहाल करानी है तो उन्हें अपनी सजा के आदेश पर भी अपीलेट कोर्ट से स्टे प्राप्त करना होगा। सुप्रीम कोर्ट के सितंबर 2018 के लोक प्रहरी बनाम भारत सरकार के निर्णय में इस बात का उल्लेख है।

एमपी के भाजपा विधायक लोधी की सदस्यता हुई बहाल

पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट के एडवोकेट हेमंत कुमार के अनुसार सवा वर्ष पूर्व 31 अक्टूबर 2019 को मध्य प्रदेश की एक अदालत द्वारा मौजूदा भाजपा विधायक प्रहलाद लोधी को आइपीसी की धारा 147, 332, 341 एवं 353 में दोषी घोषित कर दो वर्ष का कारावास दिया गया था, जिसके दो दिनों बाद ही दो नवंबर 2019 को प्रदेश के तत्कालीन विधानसभा स्पीकर द्वारा लोधी को सदन से अयोग्य घोषित कर दिया गया।

हालांकि इसके चार दिन बाद मध्य प्रदेश हाई कोर्ट की एकल जज पीठ द्वारा एक विस्तृत आदेश से लोधी के विरुद्ध न केवल दंड बल्कि दोष को भी सात जनवरी 2020 तक स्थगित कर दिया गया, जो आज तक बढ़ाया जाता रहा है। मध्यप्रदेश की तत्कालीन सरकार हाईकोर्ट के इस आदेश के विरुद्ध सुप्रीम कोर्ट भी गई, परंतु शीर्ष अदालत ने इसमें हस्तक्षेप करने से इन्कार कर दिया था। आखिर में स्पीकर को दिसंबर 2019 में ही लोधी की विधानसभा की सदस्यता को बहाल करना पड़ा। फिलहाल लोधी का केस मध्यप्रदेश हाई कोर्ट में लंबित है।

दिल्ली में सोमनाथ भारती को मिल चुकी ऊपरी कोर्ट से राहत

अभी दस दिन पूर्व ही दिल्ली की एक निचली अदालत द्वारा मौजूदा दिल्ली विधानसभा में सत्तारूढ़ आप पार्टी के एक विधायक सोमनाथ भारती को भी आइपीसी की धारा 147, 149, 332 और 353 में दोषी घोषित कर कुल दो वर्ष के कारवास की सज़ा सुनाई गई, लेकिन इससे पहले कि दिल्ली विधानसभा भारती को सदन से अयोग्य घोषित करती, 28 जनवरी को ही एक ऊपरी अपीलेट विशेष कोर्ट द्वारा भारती के विरुद्ध दंडादेश और दोषसिद्धि को स्टे कर दिया गया है एवं मामले की अगली सुनवाई 15 फरवरी निर्धारित की गई है। ऐसे में उनकी विधानसभा से सदस्यता नहीं गई। भारती दिल्ली सरकार में मंत्री भी रहे हैं।


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