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शहरी निकाय चुनाव में निर्दलीयों की जीत पर कांग्रेस और भाजपा में घमासान, दोनों पार्टियां कर रही हैं दावे

Haryana Local Body हरियााणाके स्‍थानीय निकाय चुनाव में जीते निर्दलीयों को लेकर भाजपा और कांग्रेस के बीच घमासान मच गया है। दोनों पार्टियों इस चुनाव में जीते अधिकतर निर्दलीयों काे अपने पाले में बता रही हैं। कांग्रेस ने यह चुनाव अपने सिंबल पर नहीं लड़ा था।

By Sunil Kumar JhaEdited By: Published: Sun, 26 Jun 2022 12:26 PM (IST)Updated: Sun, 26 Jun 2022 12:26 PM (IST)
शहरी निकाय चुनाव में निर्दलीयों की जीत पर कांग्रेस और भाजपा में घमासान, दोनों पार्टियां कर रही हैं दावे
भूूपेंद्र सिंह हुड्डा के साथ दीपेंद्र हुड्डा और हरियाणा भाजपा अध्‍यक्ष ओमप्रकाश धनखड़। (फाइल फोटो)

राज्य ब्यूरो, चंडीगढ़। Haryana Local Body Elections : हरियाणा के 46 शहरी निकायों में हुए चुनाव में जीते निर्दलीय उम्‍मीदवाराें को लेकर कांग्रेस और भाजपा के बीच घमासान शुरू हो गया है। दोनों पार्टियां जीते अधिकतर निर्दलीयों पर अपना दावा जता रही हैं।     

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निर्दलीय जीते अधिकतर उम्मीदवारों पर अपनी दावेदारी जता रही कांग्रेस

इस चुनाव में जीते निर्दलीय उम्मीदवारों पर कांग्रेस अपना हक जता रही है। कांग्रेस का कहना है कि राज्यसभा चुनाव और संगठनात्मक गतिविधियों में व्यस्तता के चलते वह शहरी निकाय चुनाव सिंबल पर नहीं लड़ पाई। निर्दलीय उम्मीदवारों को 52 प्रतिशत से अधिक वोट मिले हैं।

भूपेंद्र सिंह हुड्डा और दीपेंद्र हुड्डा आंकड़ों के साथ गिनाई गठबंधन सरकार की विफलता

हालांकि चुनाव जीते कई निर्दलीय अध्यक्ष और पार्षद सत्तारूढ़ दल भाजपा व जजपा के वरिष्ठ नेताओं से मुलाकात कर सत्ता का आशीर्वाद हासिल कर रहे हैं, लेकिन इस राजनीतिक जोड़बंदी के बीच पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा और राज्यसभा सदस्य दीपेंद्र सिंह हुड्डा ने दावा किया है कि निर्दलीय चुनाव जीते अधिकतर अध्यक्ष और पार्षद कांग्रेस विचारधारा के हैं। उन्हें भाजपा-जजपा गठबंधन के विरुद्ध नाराजगी का वोट पड़ा है। कांग्रेस यदि सिंबल पर चुनाव लड़ती तो गठबंधन के विकल्प के रूप में यह वोट कांग्रेस उम्मीदवारों को मिलते।

कांग्रेस के राज्यसभा सदस्य दीपेंद्र सिंह हुड्डा ने आंकड़ों के साथ भाजपा की दावेदारी पर सवाल खड़े किये हैं। दीपेंद्र ने कहा कि 2018 के निकाय चुनाव में भाजपा को 49 प्रतिशत वोट मिले थे, जबकि 2020 के निकाय चुनाव में यह वोट घटकर 39 प्रतिशत रह गये।

उन्‍होंने कहा कि  022 के निकाय चुनाव में 2018 में मिले वोटों के करीब आधे यानी 26 प्रतिशत ही वोट मिल पाए हैं। 2018, 2020 और 2022 के निकाय चुनाव में भाजपा का लगातार गिरता वोट प्रतिशत उसकी विफलता का प्रतीक है। 2018 के निकाय चुनाव में भाजपा को मिले 49 प्रतिशत वोट के बाद विधानसभा चुनाव में 40 सीटें आई। इस बार 26 प्रतिशत वोट के साथ भाजपा कितना नीचे जायेगी, इसका अंदाजा जनता खुद ही लगा सकती है।

दीपेंद्र सिंह हुड्डा ने कहा कि कुल 12 लाख 71 हजार 782 मतदाताओं में से नौ लाख 37 हजार 909 मतदाताओं ने भाजपा के खिलाफ वोट दिया केवल। केवल तीन लाख 33 हजार 873 वोट ही भाजपा को मिले। भाजपा नेता अनर्गल बयानबाजी तक सीमित हैं। उनके बयानों में अगले विधानसभा चुनाव में हार का डर स्पष्ट दिखाई दे रहा है।

उन्‍होंने कहा कि भाजपा-जजपा के कुशासन, भ्रष्टाचार और बेरोजगारी से त्रस्त हरियाणा बदलाव चाहता है, जिसका विकल्प सिर्फ कांग्रेस ही दे सकती है। दीपेंद्र ने कहा कि मुख्यमंत्री और उप मुख्यमंत्री के इलाकों में उनकी पार्टियों के उम्मीदवारों की हार सरकार की अलोकप्रियता का प्रतीक है, जिसे खोखले बयानों से नकारा नहीं जा सकता।

भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने कहा कि 2018 में निर्दलीय उम्मीदवारों को 29.4 प्रतिशत वोट मिले, जो 2020 में बढ़कर 37.9 प्रतिशत हो गये और इस बार के चुनाव में यह प्रतिशत 52.2 पर पहुंच गया है। सीएम के इलाके करनाल में असंध, निसिंग और तरवाड़ी में भाजपा को हार का सामना करना पड़ा, जबकि उप मुख्यमंत्री के हलके उचाना में जजपा प्रत्याशी को तगड़ी हार का सामना करना पड़ा है।

उन्‍होंने कहा कि हरियाणा सरकार के अधिकतर मंत्रियों के हलकों में भजपा-जजपा गठबंधन के उम्मीदवारों को जनता ने करारी हार का स्वाद चखाया है। 2018 के नतीजों के बाद से ही ग्रामीण क्षेत्रों में भाजपा का जनाधार समाप्त हो चुका था, अब शहरी इलाकों में भी भाजपा का वोट बैंक खत्म होने के कगार पर है।

कांग्रेस को इतना ही गुमान था तो मैदान छोड़कर क्यों भागी : धनखड़

हरियाणा भाजपा के अध्यक्ष ओमप्रकाश धनखड़ और प्रवक्ता सुदेश कटारिया को कांग्रेस नेताओं के दावों पर कड़ी आपत्ति है। धनखड़ ने कहा है कि यदि कांग्रेस में चुनाव लड़ने का साहस होता तो वह मैदान छोड़कर नहीं भागती। कटारिया ने कहा कि निकायों में एक सीट पर कई-कई दावेदार थे।

उन्‍होंने कहा कि भाजपा व जजपा के अधिकृत प्रत्याशियों के अलावा इन दोनों दलों की विचारधारा के निर्दलीय उम्मीदवारों से चुनाव जीते हैं, जो अब गठबंधन की सरकार में आस्था जता रहे हैं। धनखड़ और कटारिया ने कहा कि कांग्रेस को यदि अपने वोट बैंक पर इतना ही गुमान था तो वह राहुल गांधी से ईडी की पूछताछ और राज्यसभा चुनाव में व्यस्तता का बहाना बनाने की बजाय चुनाव लड़ती।

धनखड़ ने कहा कि एक दर्जन से ज्यादा कांग्रेस विधायकों के हलकों में उनके द्वारा समर्थित उम्मीदवारों की हार पूरी कहानी कह रही है। कटारिया ने कहा कि कांग्रेस में पिता-पुत्र का एकाधिकार पार्टी को डुबोने वाला साबित होगा।


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