चौटाला ने यूं ही नहीं की थी हुड्डा के पुत्र की तारीफ, यहां भी पक सकती है महागठबंधन की खिचड़ी
हरियाणा में लोकसभा चुनाव में करारी हार के बाद अब विपक्षी दल महागठबंधन की तैयारी में हैं। इनेलो सुप्रीमो ओपी चौटाला द्वारा दीपेंद्र हुड्डा की तारीफ के कई मायने निकाले जा रहे हैं।
चंडीगढ़, [अनुराग अग्रवाल]। हरियाणा में लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद नए राजनीतिक समीकरणों का माहौल बन रहा है। इनेलो सुप्रीमो ओमप्रकाश चौटाला द्वारा पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा के बेटे दीपेंद्र हुड्डा की तारीफ करने से प्रदेश में नई राजनीतिक अटकलों को हवा मिल रही है। माना जा रहा है कि चौटाला जैसे धुर कांग्रेस विरोधी नेता ने यूं ही हुड्डा के बेटे की तारीफ नहीं कर दी। हरियाणा में भाजपा विरोधी दलों की महागठबंधन की खिचड़ी पक सकती है और इसकी हलचल भी दिखने लगी है।
लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद हरियाणा में बन रहे नए राजनीतिक समीकरण
लोकसभा चुनाव में भाजपा को जिस तरह से एक तरफा जीत मिली और विपक्ष को करारी हार का सामना करना पड़ा, इसके कारण कयास लगाए ला रहे हैंं राज्य में विधानसभा चुनाव से पहले विरोधी दल एक साथ आ सकते हैं। बताया जाता है कि इस दिशा में राजनीतिक दलों ने अंदरूनी तौर पर प्रयास शुरू कर दिए हैं।
इनेलो से अलग होकर अस्तित्व में आई जननायक जनता पार्टी और आम आदमी पार्टी के बीच लोकसभा चुनाव में गठबंधन था। आप सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल और पार्टी की हरियाणा इकाई के अध्यक्ष नवीन जयहिंद ने आखिर तक प्रयास किया कि कांग्रेस को भी इस गठबंधन का हिस्सा बना लिया जाए। शुरू में हालांकि जननायक जनता पार्टी के संरक्षक दुष्यंत चौटाला कांग्रेस को गठबंधन का हिस्सा बनाए जाने के हक में नहीं थे, लेकिन भाजपा को शिकस्त देने की मंशा से आखिर में वह तैयार हो गए। कांग्रेस की आपसी गुटबाजी के चलते महागठबंधन की नींव नहीं पड़ी तो जेजेपी-आप गठबंधन ने ही अपने बूते चुनाव लड़ा, जिसका नतीजा बुरी तरह से हुई हार के रूप में सामने आया।
भाजपा के खिलाफ महागठबंधन खड़ा करने की तैयारी में विपक्षी दल
हरियाणा में लोकसभा चुनाव में भाजपा के बागी सांसद राजकुमार सैनी की लोकतंत्र सुरक्षा पार्टी तथा बसपा के बीच भी गठबंधन था, लेकिन यह गठबंधन भी उम्मीद के मुताबिक नतीजे नहीं दे पाया। राज्य के प्रमुख विपक्षी दल इनेलो का प्रदर्शन सबसे खराब रहा और पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा, कुमारी सैलजा और अशोक तंवर समेत कांग्रेस के तमाम दिग्गज चुनाव हार गए।
राज्य की सभी 10 लोकसभा सीटों पर भाजपा ने एक तरफा जीत हासिल की। लोकसभा चुनाव में प्रदेश में 90 विधानसभा सीटों में से 79 में भाजपा को भारी भरकम बढ़त मिली। दस विधानसभा सीटों पर कांग्रेस और एक पर जननायक जनता पार्टी ने बढ़त लेकर अपनी उपस्थिति दर्ज कराई।
विधानसभा चुनाव में हार की संभावना से डरे दलों को अब सिर जोड़ने की आस
हरियाणा में लोकसभा चुनाव के इन नतीजों से भाजपा खासी उत्साहित और विपक्षी दल बेहद निराश हैं। हालांकि सभी दल नए जोश के साथ विधानसभा चुनाव में जुटने का दावा कर रहे, लेकिन उन्हें अच्छी तरह से समझ आ रही कि खुद के बूते भाजपा को शिकस्त देना उनके वश की बात नहीं है। जेबीटी शिक्षक भर्ती मामले में सजा काट रहे इनेलो सुप्रीमो ओमप्रकाश चौटाला इस समय पैरोल पर हैं। चौटाला हर जिले में जा रहे और नए सिरे से पार्टी को खड़ा करने की कोशिश कर रहे हैं। उन्होंने मुख्यमंत्री मनोहर लाल और अपने पोते दुष्यंत चौटाला पर खुला हमला बोल रखा है, जबकि कांग्रेस के प्रति उनकी भाषा काफी नरम है।
कांग्रेस और इनेलो के बीच गठबंधन के मिल रहे संकेत
चौटाला का हाल ही में दीपेंद्र सिंह हुड्डा की हार पर दिया गया बयान सोशल मीडिया पर खासा प्रसारित हो रहा है। चौटाला ने आश्चर्य जाहिर किया था कि नरम स्वभाव के दीपेंद्र सिंह हुड्डा को भी रोहतक में हार का सामना करना पड़ गया और ऐसा व्यक्ति जीत गया, जिसका रोहतक से कोई ताल्लुक नहीं है। चौटाला के इस बयान के सभी अपने-अपने ढंग से अर्थ निकाल रहे हैं। कोई इसे जाटों की एकजुटता का संदेश देने के रूप में ले रहा तो कोई नए राजनीतिक गठबंधन के संकेत बता रहा। पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने चौटाला के बयान को अपने बेटे दीपेंद्र हुड्डा पर बुजुर्ग के आशीर्वाद के तौर पर लिया, लेकिन राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि भविष्य में कांग्रेस और इनेलो के बीच गठबंधन की खिचड़ी पक सकती है।
महागठबंधन के लिए प्रयास शुरू करने की तक रहे राह
अभय सिंह चौटाला हालांकि कांग्रेस पर हमलावर होने का कोई मौका नहीं चूकते, लेकिन जिस तरह से जजपा और आप गठबंधन कांग्रेस के साथ चुनाव लड़ने को तैयार हो गया था, उसी तरह इनेलो व कांग्रेस के बीच गलबहियां होने की संभावना से भी इन्कार नहीं किया जा सकता। राजनीतिक विश्लेषकों का यहां तक कहना है कि विधानसभा चुनाव में कांग्रेस, आप, इनेलो और जेजेपी मिलकर महागठबंधन तैयार कर सकते हैं। इसके लिए किसी एक नेता द्वारा प्रयास शुरू किए जाने की राह तकी जा रही है। इस महागठबंधन में बसपा और लोसुपा का क्या रुख होगा, यह भविष्य के हालात पर निर्भर करेगा।
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