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तीन दशक पुराने मोड़ पर वापस पहुंचा चौटाला का परिवार, फूट से टूट की नौबत

बिहार के लालू परिवार और उत्‍तर प्रदेश के मुलायम परिवार की तरह चौटाला परिवार भी कलह का शिकार हो रहा है। चौधरी देवीलाल का यह परिवार फिर 36 साल पुराने मोड़ पर ख़ड़ा है।

By Sunil Kumar JhaEdited By: Published: Fri, 12 Oct 2018 10:00 AM (IST)Updated: Fri, 12 Oct 2018 10:03 AM (IST)
तीन दशक पुराने मोड़ पर वापस पहुंचा चौटाला का परिवार, फूट से टूट की नौबत
तीन दशक पुराने मोड़ पर वापस पहुंचा चौटाला का परिवार, फूट से टूट की नौबत

चंडीगढ़, [अनुराग अग्रवाल]। राजनीति में कब क्या हो जाए, कुछ कहा नहीं जा सकता। खासकर तब, जब बात हरियाणा की राजनीति की हो। बिहार के लालू यादव और उत्‍तर प्रदेश के बाद अब हरियाणा के देवीलाल या चौटाला परिवार की कलह व टूट खुलकर सामने आ गया है। हरियाणा का यह बड़ा सियासी परिवार राजनीतिक फूट का शिकार हो गया है। चाचा अभय चौटाला और सांसद भतीजा दुष्‍यंत चौटाला के बीच रार में बड़े चौटाला के एक्‍शन के बाद परिवार और पार्टी इनेलो में घमासन चरम पर व निर्णायक दौर में पहुंच गया है।

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1989 में देवीलाल के सामने पैदा हुआ था राजनीतिक वारिस बनाने का संकट

देश की राजनीति में हरियाणा के सैकड़ों ऐसे उदाहरण हैैं, जो यहां के राजनेताओं के कौशल, पारिवारिक फूट, अच्छाइयों और पाला बदल राजनीति की तरफ इशारा करते हैैं। ऐसी हालत से चौटाला परिवार भी रूबरू है। परिवार में कलह पिछले कुछ समय से चल रहा था, लेकिन सभी कुछ अब तक पर्दे के पीछे था।

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एक समय था ज‍ब देवीलाल परिवार की देश की राजनीति में तूती बोलती है। अब इस परिवार की राजनीति इनेलो अध्यक्ष ओमप्रकाश चौटाला चलाते हैैं। यह परिवार एक बार फिर 31 साल पुराने उस मोड़ पर आन खड़ा हुआ है, जिस पर कभी देवीलाल असमंजस में फंस गए थे। जिस तरह के हालात आज ओमप्रकाश चौटाला के सामने हैं, ठीक उसी तरह के हालात उनके पिता स्व. देवीलाल के सामने 1989 में बने थे।

  31 साल बाद ओमप्रकाश चौटाला के सामने भी वही असमंजस, पौत्र से किनारा कर बेटे पर खेला दांव

देश के उप प्रधानमंत्री और दो बार मुख्यमंत्री रह चुके स्व. देवीलाल के सामने अपने बेटों रणजीत सिंह, प्रताप सिंह, जगदीश सिंह और ओमप्रकाश चौटाला में से किसी एक को अपना राजनीतिक उत्तराधिकारी चुनने की चुनौती थी। तब उन्होंने काफी सोच-विचार कर ओमप्रकाश चौटाला के नाम पर उंगली रख उन्हें सत्ता के शीर्ष पर बैठा दिया था।

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यह वह दौर था जब चौधरी देवीलाल 1987 में बड़ा न्याय युद्ध जीतने के बाद बेहद ताकतवर बन गए थे। पार्टी को प्रदेश की 90 में से 85 सीटें जीत में मिली थी और यह आंकड़ा ही अंतत परिवार में बेटों के बीच वर्चस्व की जंग का बड़ा कारण बन गया था। परिवार में उस समय की जबरदस्त फूट से कैबिनेट भी अछूती नहीं रही थी और एक के बाद एक कर मंत्री इस्तीफे तक दे गए थे।

महम कांड और जेबीटी शिक्षक भर्ती प्रकरण ने बढ़ाई परेशानियां

उस समय महम उपचुनाव आ गया तो परिवार बहुचर्चित महम कांड के चलते बड़े कानूनी शिकंजे में फंस गया। चौटाला परिवार के मौजूदा सियासी हालात पर गौर करें तो 14 साल से ज्यादा समय से सत्ता में वनवास झेल रही इनेलो और चौटाला परिवार बड़े संकटों से गुजरा। पार्टी सुप्रीमों ओमप्रकाश चौटाला तथा उनके बड़े बेटे अजय चौटाला जेबीटी शिक्षक भर्ती मामले में जेल गए तो पार्टी चलाने का बड़ा दारोमदार छोटे बेटे अभय चौटाला पर आ गया।

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अभय ने मजबूती से निभाया दायित्व, पर युवाओं में दुष्यंत छाए

अभय चौटाला ने बड़ी ही जिम्मेदारी के साथ पार्टी को खड़ा दिया। इस बीच लोकसभा चुनाव में देश को सबसे युवा सांसद दुष्यंत चौटाला राजनीतिक रूप से सशक्त हुए। देखते-देखते पार्टी में दो केंद्र नजर आने लगे। दुष्यंत युवाओं में लोकप्रिय होते चले गए तो अभय चौटाला पिता द्वारा सौंपी गई जिम्मेदारियों को भारी-उतार चढ़ाव के बीच पूरी ताकत से निभाते नजर आए। आज जब पार्टी चुनाव पर आंख गड़ाए हुए है तो कार्यकर्ताओं के लिए असमंजस के हालात पैदा हो गए हैैं।

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