हरियाणा के सियासी गलियारों में छाया चौटाला परिवार, खूब चल रही जुबानी जंग
राजनीति में कई ऐसी खबरें होती हैं जो अक्सर सुर्खियां नहीं बन पाती। आइए नजर डालते हैं हरियाणा की राजनीति की कुछ अंदर की खबरों पर...
चंडीगढ़। हरियाणा के सियासी गलियारों में इन दिनों चौटाला परिवार पूरी तरह से छाया हुआ है। कोरोना महामारी के कारण पैरोल पर निकले पूर्व मुख्यमंत्री ओम प्रकाश चौटाला और उनके बेटे पूर्व सांसद डॉ. अजय सिंह चौटाला में जहां जुबानी जंग छिड़ी है, वहीं चाचा अभय चौटाला व भतीजे दुष्यंत चौटाला भी एक-दूसरे को घेरने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं।
ओमप्रकाश चौटाला ने तो एक इंटरव्यू में यहां तक कह दिया कि मुख्यमंत्री पद का रोला था। अजय और दुष्यंत नहीं माने, इसलिए बात बिगड़ गई। इस बात में कितनी सच्चाई है, यह तो चौटाला परिवार के सदस्य ही बता सकेंगे, लेकिन किसानों से लेकर दूसरे कई मुद्दों पर चाचा अभय चौटाला अपने भतीजे दुष्यंत चौटाला पर हमलावर हैं। इस रस्साकशी में इनेलो ने जहां बसपा के पूर्व पदाधिकारियों को शामिल कर फिर से पार्टी को खड़ा करने का एलान कर दिया, वहीं जजपा ने इनेलो के कुछ कार्यकर्ताओं को अपने खेमे में लाकर दावा ठोक दिया कि स्व. देवीलाल की सियासत को अब वे ही आगे बढ़ाएंगे।
इसके उलट अभय सिंह चौटाला दावा कर रहे कि जजपा के कई नेता हमारे संपर्क में हैं। इस आरोप-प्रत्यारोप और दावेदारी के बीच नया घटनाक्रम यह हुआ कि दुष्यंत चौटाला ने लगातार दबाव बना रहे नारनौंद के बुजुर्ग विधायक रामकुमार गौतम को संकेत दे दिया कि वह मंत्री पद के सपने न पालें। बहरहाल, चौटाला परिवार की यह राजनीतिक जंग क्या रूप लेगी, यह तो आने वाला समय ही बता पाएगा, लेकिन भाजपा और कांग्रेस इसमें पूरा आनंद उठा रहे हैं।
मुन्नी बदनाम हुई डार्लिंग तेरे लिए
मुन्नी बदनाम हुई डार्लिंग तेरे लिए...। यह बात हम नहीं, बल्कि राजनीति के खिलाड़ी पूर्व शिक्षा मंत्री रामबिलास शर्मा कह रहे हैं। पिछले दिनों स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज का हाल-चाल जानने मोहाली पहुंचे बड़े पंडित जी कहते हैं कि राजनीति अपनी जगह है, लेकिन चौटाला परिवार में पारिवारिक रिश्ते नहीं टूटने चाहिए। ताऊ देवी लाल के परिवार से पुराने रिश्तों की दुहाई देते हुए पंडित रामबिलास शर्मा 24 जुलाई 1999 की याद दिलाते हैं कि कैसे चौधरी बंसीलाल की सरकार को गिरा कर भाजपा ने बड़े चौटाला को मुख्यमंत्री बनवाया था। उस दौरान भाजपा सरकार में शामिल नहीं हुई। फिर भी सरकार गिराने का ठीकरा पार्टी पर फूटा। बहरहाल अपने राजनीतिक तुजुर्बे का दावा करते हुए प्रोफेसर साहब कहते हैं कि पूर्व में चाहे जो हुआ, इस बार भाजपा-जजपा की सरकार पूरे पांच साल चलेगी।
धनखड़ की मेरी राह के दीप श्रृंखला
पूर्व कृषि मंत्री ओमप्रकाश धनखड़ ने लॉकडाउन के दौरान शुरू की मेरी राह के दीप श्रृंखला अनलॉक-एक में भी जारी रखी हुई है। अब तक वे 33 श्रृंखलाओं में अपने पूर्वज, गांव, स्कूल, कॉलेज, विद्यार्थी परिषद, किसान मोर्चा, विदेश यात्रा से लेकर संघ, भाजपा के वरिष्ठ नेताओं व पदाधिकारियों के साथ संस्मरण ताजा कर रहे हैं। राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, गृहमंत्री, रक्षा मंत्री, परिवहन मंत्रियों के साथ संगठन व सरकार के अनुभव भी वे सांझा कर चुके हैं। धनखड़ अपने इन संस्मरणों को बड़े ही एकाग्रचित होकर तन्मयता के साथ बताते हैं, मगर न जाने क्यों अभी तक सूबे के मुखियाजी उनकी श्रृंखला के हिस्सा नहीं बन पाए, जबकि मुखियाजी की कैबिनेट में धनखड़ पांच साल मंत्री रहे। इससे पहले भी उन्होंने मुखियाजी के साथ लंबे समय तक संगठन में काम किया। असल में संस्मरण-अनुभवों पर इतिहास गढ़ा जाता है और धनखड़ जानते हैं कि कब और किसे श्रृंखला का हिस्सा बनाना चाहिए।
कोई नई बात नहीं है यमुना से रेत की चोरी
अनलॉक-एक में भी यमुना रेत चोरी की शिकायतें सुनकर खनन मंत्री मूलचंद शर्मा का पारा चढ़ जाता है। सुबह पार्क में योग करने से भी उनका मन शांत नहीं होता। सिर्फ एक बात के लिए आत्ममंथन करते हैं कि रेत चोरी कैसे रुके? खाकी वर्दीधारियों की मिलीभगत से रेत चोरी होती है, यह बात तो वे तब से जानते हैं जब अपने पैतृक गांव सदपुरा के स्कूल में पढ़ते थे। अब जब वे इस विभाग के मंत्री हैं तब भी संगठित तरीके से चोरी होती है। मंत्री के सामने इन दिनों सिर्फ यही एक यक्ष प्रश्न खड़ा रहता है कि यह चोरी कैसे रुके। पिछले दिनों उनके सपने में यमुनानगर, नारनौल, महेंद्रगढ़, फरीदाबाद और पलवल में रेत चोरी के बड़े खलीफा आए। सभी ने मंत्री को रेत चोरी संबंधी अपनी विशेषज्ञता बताई, मगर मंत्री की दुविधा यह है कि वे उनसे इस दौरान रेत की चोरी रोकने का सुझाव नहीं ले सके। (प्रस्तुति - अनुराग अग्रवाल, बिजेंद्र बंसल एवं सुधीर तंवर)