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संपत्ति उत्तराधिकार अधिनियम में पुरुषों को वरीयता देने को हाई कोर्ट में चुनौती, हरियाणा-पंजाब व केंद्र को नोटिस

पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट में संपत्ति उत्‍तराधिकार अधिनियम को चुनौती दी गई है। संपत्ति उत्‍तराधिकार अधिनियम में पुरुषों को वरीयता देने के खिलाफ याचिका दायर की गई है। याचिका में मांग की गई है कि संपत्ति के उत्‍तराधिकारी मेंं लैंगिक भेदभाव को समाप्‍त किया जाए।

By Sunil Kumar JhaEdited By: Published: Tue, 28 Jun 2022 07:05 PM (IST)Updated: Wed, 29 Jun 2022 08:35 AM (IST)
संपत्ति उत्तराधिकार अधिनियम में पुरुषों को वरीयता देने को हाई कोर्ट में चुनौती, हरियाणा-पंजाब व केंद्र को नोटिस
पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट! (फाइल फोटो)

चंडीगढ़, [दयानंद शर्मा]। संपत्ति उत्तराधिकार अधिनियम में पुरुषों को वरीयता देने को पंंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट में चुनौती दी गई है। इस संबंध में हाई कोर्ट में एक याचिका दायर की गई है। हाई कोर्ट ने  केंद्र सरकार के साथ -साथ  पंजाब व हरियाणा सरकारों को नोटिस जारी कर जवाब तलब किया है। मामले की सुनवाई के दौरान सभी प्रतिवादी पक्ष ने कोर्ट से आग्रह किया कि उनको इस मामले में जवाब देने के लिए कुछ समय दिया जाए।

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केंद्र समेत पंजाब, हरियाणा ने जवाब देने के लिए मांगा समय

हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस रवि शंकर झा पर आधारित डिविजन बेंच ने प्रतिवादी पक्ष की मांग को स्वीकार करते हुए सात सितंबर से पहले जवाब दायर करने का आदेश दिया है। इस मामले में नेशनल ला स्कूल के छात्र दक्ष कादियान ने संपत्ति उत्तराधिकार अधिनियम में पुरुषों को वरीयता और लैंगिक भेदभाव को समाप्त करने की मांग की है।

संपत्ति उत्तराधिकार अधिनियम में पुरुषों को वरीयता और लैंगिक भेदभाव को समाप्त करने की मांग

याचिका में कहा गया कि प्रावधानों के अनुसार यदि घर के मुखिया की मौत हो जाती है और वह मरने से पहले कोई वसीयत नहीं छोड़ते तो पुरुषों को प्राथमिकता दी जाती है। ऐसी स्थिति में पहली श्रेणी के उत्तराधिकारियों को प्राथमिकता दी जाती है, जिसमें बेटा, बेटी, पोता और पोती आदि शामिल हैं। यदि पहली श्रेणी के उत्तराधिकारी मौजूद नहीं होते हैं तो दूसरी श्रेणी को मौका दिया जाता है। इसमें पुरुष रिश्तेदार को ही प्राथमिकता दी जाती है। यानी बुआ के स्थान पर चाचा को प्राथमिकता मिलती है।

याचिका में गया है कि तीसरी श्रेणी की बात करें तो बेटे की बेटी की संतान को वरीयता देने की बात आती है। इनमें से महिला को प्राथमिकता मिलती है। ऐसे में बेटे की बेटी की बेटी पूरी प्रापर्टी की हकदार होगी, जबकि लड़के का हक नहीं होगा। याची ने कहा कि इस प्रकार लिंग के आधार पर भेदभाव करना सीधे तौर पर संवैधानिक प्रविधानों के खिलाफ है।

इसके साथ ही याची ने बताया कि जब करीबी रिश्तेदारों में प्रापर्टी के बंटवारे की बात आती है तो वहां पुरुष रिश्तेदारों को ही प्राथमिकता दी जाती है और महिलाओं से भेदभाव किया जाता है। कुछ मामलों में इसका उलट है। ऐसे में प्रविधान ऐसा हो जो लिंग के आधार पर भेदभाव को समाप्त करने वाला हो।

इस प्रविधान को भी जानना जरूरी

किसी हिंदू संयुक्त परिवार का मुखिया का वसीयत छोड़े बिना ही निधन हो जाता है और उसके परिवार में बेटे और बेटियां हैं।  उनकी संपत्ति में एक मकान भी है, जिस पर किसी भी वारिस का पूरी तरह से कब्जा नहीं है। ऐसे में बेटियों को हिस्सा तभी मिलेगा, जब बेटे अपना-अपना हिस्सा चुन लेंगे। यानि की प्राथमिकता लड़कों को होगी, हालांकि अगर बेटी अविवाहित, विधवा या पति द्वारा छोड़ दी गई है तो कोई भी उससे घर में रहने का अधिकार नहीं छीन सकता। वहीं विवाहित महिला को इस प्रविधान में अधिकार नहीं मिलता है।


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