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हरियाणा किसान आयोग के पूर्व प्रधान परोदा बोले- किसानों के लिए MSP से जरूरी खरीदार होना, मार्केट से जुड़ें

Farmers Protest हरियाणा किसान आयोग के पूर्व प्रधान और भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के पूर्व महानिदेशक डा आरएस परोदा ने किसानों को बड़ी सलाह दी है। उनका कहना है कि एमएसपी की गारंटी से जरूरी खरीददार मिलना है। किसान मार्केट से जुड़ें।

By Sunil Kumar JhaEdited By: Published: Sat, 12 Dec 2020 10:18 AM (IST)Updated: Sat, 12 Dec 2020 10:18 AM (IST)
हरियाणा किसान आयोग के पूर्व प्रधान परोदा बोले- किसानों के लिए MSP से जरूरी खरीदार होना, मार्केट से जुड़ें
Farmers Protest: धरने पर बैइे किसान और डा आरएस परोदा। (फाइल फोटो)

चंडीगढ़, [अनुराग अग्रवाल]। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आइसीएआर) के महानिदेशक रह चुके और हरियाणा किसान आयोग के पूर्व चैयरमैन डा. आरएस परोदा ने किसानों के आंदोलन (Farmers Protest) के बीच उनको बड़ी सलाह दी है। डा. परोदा ने कहा है कि किसान खुद को मार्केट से जाेड़ें। जो किसान मार्केट से जुड़ गया समझाे वह तर गया। न्‍यूनतम समर्थन मूल्‍य (MSP) से जरूरी खरीदार का मिलना है।

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बोले- जाे किसान मार्केट से जुड़ गया समझो तर गया

डा. परोदा को 1998 में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में कृषि के क्षेत्र में बेहतरीन कार्यों के लिए पद्म भूषण सम्मान से अंलकृत किया गया था। डिपार्टमेंट आफ एग्रीकल्चरल रिसर्च एंड एजुकेशन के सचिव के तौर पर कृषि जगत उनकी सेवाओं को आज भी याद करता है। हरियाणा की हुड्डा सरकार के समय डा. आरएस परोदा किसान आयोग के चेयरमैन थे। अब परोदा ट्रस्ट फार एडवांसमेंट आफ एग्रीकल्चर साइंस (टास) के चेयरमैन के रूप में अपनी सेवाएं दे रहे हैं।

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के पूर्व महानिदेशक डा. आरएस परोदा को जब नहीं मिले बाजरे के खरीदार

डा. परोदा मूल रूप से किसान हैं। वह रहते गुरुग्राम में हैं, कार्यक्षेत्र दिल्ली है...और करीब 20 एकड़ जमीन राजस्थान में है। किसानों के लिए लाभकारी नीतियां बनाने में उनका अहम योगदान रहा है। राजस्थान में चूंकि बाजरे की अधिक खेती होती है, इसलिए उन्होंने अपनी जमीन में बाजरा उपजा लिया। कृषि राज्य सरकारों का विषय है। हरियाणा सरकार ने अपने प्रदेश में बाजरे का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) 2150 रुपये क्विंटल तय कर रखा है। राजस्थान में बाजरे का एमएसपी घोषित नहीं है। वहां मार्केट में बाजरे का कोई खरीददार नहीं है।

 कहा- एमएसपी की गारंटी देने से जरूरी है मार्केट में फसलों का खरीददार का होना

कृषि जगत के लिए कल्याणकारी योजनाएं बनाने वाले डा. आरएस परोदा को राजस्थान में अपनी बाजरे की फसल 1100 से 1200 रुपये क्विंटल की दर पर बेचनी पड़ी, क्योंकि उन्हें इससे अधिक पर कोई खरीदार नहीं मिल रहा था। साथ ही पैसा भी चाहिए था। अगली फसल के लिए खेत खाली करने थे। या तो सरकार एमएसपी तय कर बाजरे की खरीद करती और अगर एमएसपी की गारंटी दे देती तो इस बात की भी क्या गारंटी थी कि बाजरा 1100 रुपये क्विंटल में प्राइवेट खरीदार खरीद ही लेता।

बोले- केंद्र के तीन कृषि कानून किसानों के हित में मगर किसान बेवजह हो रहे भ्रमित

अब परोदा ने अपने खेतों में आंवला, कीनू, बेर, चीकू, नींबू, अमरूद और अनार लगाने की कार्ययोजना तैयार की है। वह खेती में नया प्रयोग कर रहे हैं। किसानों को संदेश देना चाहते हैं कि नए अनुसंधान करो। मार्केट से जुड़ो। सिर्फ एमएसपी की गारंटी की लकीर पर मत अटके रहो। अपने बच्चों को खेती के नए तरीके सिखाओ। थोड़ा रिस्क लो। केंद्र सरकार के तीनों कृषि कानून सिर्फ कारपोरेटर जगत के लिए नहीं हैं। इनमें किसानों की भलाई छिपी है। इन्हें लागू होने दें। फिर और बेहतरीन के लिए सरकार से अनुरोध करें। उनका कहना है कि केंद्र सरकार के तीन कृषि कानून किसानों के हित में हैं, लेकिन वे बेवजह भ्रमित हो रहे हैं।

जीएसटी की तरह कृषि काउंसिल से हल होंगे मसले

इंडियन साइंस कांग्रेस के अध्यक्ष रह चुके डा. आरएस परोदा के मुताबिक, तीन कृषि कानून बनाने के पीछे सरकार की मंशा बिल्कुल पाक-साफ है। वह किसानों को फायदा पहुंचाना चाहती है। लागत से अधिक लाभ कमाने के लिए हमें खेती में नए प्रयोग करने होंगे। किसानों को अपनी आने वाली पीढ़ी को सक्षम बनाना होगा। इसमें सरकार सहयोग करने को तैयार है। आज तीन कृषि कानून आए हैं, कल कृषि रिफार्म (सुधार) भी आएंगे।

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उन्‍होंने कहा कि जीएसटी काउंसिल की तरह कृषि एवं किसान काउंसिल भी बन सकती है। तब कृषि किसी एक राज्य का मसला नहीं रहेगी। किसी राज्य में यदि खेती के पानी पर विवाद है तो उसका समाधान कृषि काउंसिल के जरिये होगा। किसानों को उनकी लागत से ज्यादा आमदनी नहीं हो रही तो कृषि काउंसिल उसका रास्ता निकालेगी।

किसान दुकानें खोलकर खुद के बाजार चलाने को तैयार ही नहीं

डा. परोदा कहते हैं, तीन कृषि कानून सेल्फ हेल्फ ग्रुप और एफपीओ की वकालत करते हैं। इन्हीं में किसानों का भला है। इनमें यदि किसानों के बाजार भी विकसित कर दिए जाएं तो सोने पर सुहागा। एजेंट का कंट्रोल कम होगा। हरियाणा किसान आयोग के चेयरमैन रहते हुए हमने किसानों के लिए करनाल, रोहतक व पंचकूला में मंडियां बनाई। उन्हें खुद दुकानें चलाने को कहा, लेकिन वह इसके लिए तैयार नहीं होते, क्योंकि उन्हें खुद पर भरोसा नहीं है। उन्हें अपने मन और दिमाग से भ्रम दूर करने होंगे।

कृषि सब्सिडी की बजाय मनोहर सरकार का रास्ता अपनाए केंद्र

डा. आरएस परोदा के मुताबिक नए कानूनों में मंडियां बिल्कुल भी खत्म नहीं हो रही। न ही एमएसपी पर कोई फर्क पडऩे वाला है। इन मंडियों में प्रबंधन को मजबूत करने की जरूरत है, जो केंद्र व राज्य सरकार दोनों का विषय बने। हमें समझना होगा कि जो मार्केट से जुड़ गया, समझो वह कामयाब हो गया। पूरे देश में किसानों को सवा दो से ढ़ाई लाख करोड़़ रुपये तक की सब्सिडी दी जा रही है। इस सब्सिडी को देने की बजाय यदि हम दस एकड़ तक के किसानों को एक दस हजार रुपये प्रति एकड़ प्रोत्साहन राशि दे दें, जो कि हरियाणा में भाजपा-जजपा सरकार छह हजार रुपये दे रही है, तो इससे किसानों को बड़ा प्रोत्साहन मिलेगा।

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