जींद उपचुनाव: जाटों का बिखराव और गैर जाटों की एकता से बनी भाजपा नंबर वन
हरियाणा के जींद उपचुनाव में भाजपा की जीत में मुख्य भूमिका जाट मतदाताओं में बिखराव और गैरजाटों के ध्रुवीकरण की रही।
चंडीगढ़, [अनुराग अग्रवाल]। हरियाणा में जींद उपचुनाव के नतीजों ने भविष्य की राजनीति की तस्वीर दिखा दी है। जींद के नतीजे न केवल लोकसभा और विधानसभा चुनाव पर असर डालेंगे, बल्कि इन परिणामों ने हार का स्वाद चखने वाले तमाम राजनीतिक दलों को अपनी रणनीति बदलने के लिए मजबूर कर दिया। जाटलैंड जींद में भाजपा ने 52 साल के लंबे अंतराल के बाद पहली बार कमल खिलाने में सफलता हासिल की है। भाजपा की इस जीत में जाट मतदाताआें का बिखराव और गैर जाटों का ध्रुवीकरण सबसे अहम रहा। ऐसे में अब लोकसभा चुनाव के साथ ही हरियाणा विधानसभा का चुनाव होने की संभावना फिर जिंदा हो गई है।
मुख्यमंत्री मनोहर लाल का चेहरा और सवा चार साल के कामों पर लगी मुहर
राज्य में पांच नगर निगमों के चुनाव में मिली विजय के बाद जींद का रण जीतने का सीधा श्रेय मुख्यमंत्री मनोहरलाल और उनकी सरकार के अब तक के कामों को दिया जा रा है। जींद में जाट मतदाताओं का बिखराव और गैर जाट मतदाताओं की एकजुटता भी सत्तारूढ़ भाजपा की जीत बड़ा कारण बनी है। जींद के रण में जनता ने मुख्यमंत्री मनोहर लाल की सरकार के सवा चार साल के कामकाज पर अपनी मुहर लगाई है।
जींद उपचुनाव में जीत के बाद मुख्यमंत्री मनोहरलाल के साथ जश्न मनाते भाजपा नेता।
अब प्रदेश में लोकसभा के साथ ही विधानचुनाव चुनाव के भी आसार हुए पैदा
पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा को उत्तर और दक्षिण हरियाणा से काफी सीटें मिली थी। अब मध्य हरियाणा खासकर बांगर-जाट बेल्ट में भाजपा ने अपना खाता खोलकर साफ संकेत दे दिए कि उसका विजय रथ अब हरियाणाा में हर दिशा में घूमेगा और यह किसी शायद ही रुक। जींद उपचुनाव के नतीजों से उत्साहित भाजपा अब लोकसभा के साथ ही विधानसभा चुनाव भी करा सकती है। भाजपा किसी सूरत में नहीं चाहेगी कि वह उसके हक में बने राजनीतिक माहौल को कैश न किया जाए। इसलिए बजट सत्र के तुरंत बाद एक साथ चुनाव का ऐलान संभव है।
जींद उपचुनाव में जीत के बाद खुशी जतातीं कैबिनेट मंत्री कविता जैन और अन्य नेता।
भाजपा को शहरों के अलावा गांवों से भी मिले वोट, सांसद राजकुमार सैनी नहीं बन सके पिछड़ों का चेहरा
दरअसल, जींद में जाट मतदाताओं में बिखराव हुआ है। जाट मतदाता जेजेपी उम्मीदवार दिग्विजय सिंह चौटाला और कांग्रेस प्रत्याशी रणदीप सिंह सुरजेवाला में बंट गए, जबकि इनेलो के उम्मेद सिंह रेढू उम्मीद के मुताबिक भी अपना प्रदर्शन नहीं कर पाए। भाजपा सांसद राजकुमार सैनी की लोकतंत्र सुरक्षा पार्टी के उम्मीदवार विनोद आश्री ने हालांकि दस हजार से अधिक वोट हासिल कर गैर जाट मतों में सेंधमारी की, लेकिन उनका गैर जाट का नारा भाजपा सरकार के कामकाज और उसकी गैर जाट की राजनीति के आगे कहीं नहीं टिक पाया है।
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भविष्य में चुनौती पेश करेगा जेजेपी और आप का गठबंधन, सुरजेवाला को उतार कांग्रेस ने की बड़ी गलती
भाजपा के प्रति जींद के जाट खासकर ग्रामीण मतदाताओं ने भी अपना भरोसा जताया है। ग्रुप डी की भर्तियों में निष्पक्षता, आॅनलाइन ट्रांसफर पालिसी तथा एक समान विकास कार्यों को इसकी वजह बताया बताया जा सकता है। भाजपा को ग्रामीण वोट भी उम्मीद से कहीं अधिक मिले। सबसे खराब हालत कांग्रेस की रही।
कांग्रेस ने अपनी पार्टी के कद्दावर नेता रणदीप सुरजेवाला को जींद के रण में उतारा था, जो उसकी सबसे बड़ी भूल रही है। पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र हुड्डा, अशोक तंवर, कुलदीप बिश्नोई, किरण चौधरी, कैप्टन अजय और कुमारी सैलजा समेत तमाम नेताओं ने सिर जोड़कर सुरजेवाला के लिए जींद में काम करने का दावा किया। लेकिन, कहीं न कहीं मतदाताओं के अपनेपन की कमी और पार्टी के दिग्गज नेताओं की भितरघात का सुरजेवाला शिकार हुए हैं।
इनेलो-बसपा गठबंधन के लिए खतरनाक संकेत, भविष्य में दोनों दलों के रिश्ते टूटने की पूरी आशंका
इनेलो की कोख से पैदा हुई जननायक जनता पार्टी भले ही यह चुनाव हार गई, लेकिन वह लोगों का दिल जीतने में कामयाब रही है। इनेलो के दिग्विजय सिंह चौटाला इस चुनाव में दूसरे नंबर पर रहे। आम आदमी पार्टी के अध्यक्ष अरविंद केजरीवाल ने उन्हें समर्थन दिया था, जिसका मतलब साफ है कि भविष्य में जेजेपी और आप प्रमुख विपक्षी दल की भूमिका में रहते हुए सत्तारूढ़ भाजपा को कड़ी टक्कर देने वाले हैं।
इस चुनाव में सबसे ज्यादा दुर्गति पूर्व मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला के नेतृत्व वाली इनेलो की हुई। अभय चौटाला के उम्मीदवार उम्मेद सिंह रेढू तीन हजार वोट भी हासिल नहीं कर सके, जिसका मतलब साफ है कि इनेलो-बसपा गठबंधन पर भविष्य में आंच आ सकती है।