मानेसर मामले में हुड्डा सहित आरोपितों की पेशी, सीबीआइ ने नहीं सौंपे चार्जशीट के डाक्यूमेंट्स
मानेसर लैंड घोटाला मामले में आज पंचकूला की विशेष सीबीआइ अदालत में सुनवाई हुई पूरी हो गई है। अदालत में पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा व अन्य आरोपित पेश हुए।
जेएनएन, पंचकूला। मानेसर लैंड घोटाला मामले में आज पंचकूला की विशेष सीबीआइ अदालत में सुनवाई हुई पूरी हो गई है। अदालत में पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा व अन्य आरोपित पेश हुए। पिछली सुनवाई में बचाव पक्ष ने कोर्ट से चार्जशीट के डाक्यूमेंट्स की मांग की थी, लेकिन आज भी सीबीआइ ने बचाव पक्ष को डाक्यूमेंट्स नहीं सौंपे। सीबीआई कोर्ट ने अब सीबीआइ को अगली सुनवाई से पहले बचाव पक्ष को सभी दस्तावेज उपलब्ध कराने के आदेश दिए हैं। मामले की अगली सुनवाई अब 4 अक्टूबर को होगी।
सीबीआइ ने मामला दर्ज किया था कि 27 अगस्त 2004 से 27 अगस्त 2007 के बीच निजी बिल्डरों ने हरियाणा सरकार के अज्ञात जनसेवकों के साथ मिलीभगत कर गुड़गांव जिले में मानसेर, नौरंगपुर और लखनौला गांवों के किसानों और भूस्वामियों को सरकार द्वारा अधिग्रहण का भय दिखाकर उनकी करीब 400 एकड़ जमीन औने-पौने दाम पर खरीद ली थी।
सितंबर 2015 को भाजपा सरकार ने इस मामले की जांच सीबीआइ को सौंप दी थी। इस मामले में ईडी ने भी हुड्डा के खिलाफ सितंबर 2016 में मनी लॉन्ड्रिंग का भी केस दर्ज किया था। ईडी ने हुड्डा और अन्य के खिलाफ सीबीआइ की एफआइआर के आधार पर आपराधिक मामला दर्ज किया था।
यूं चला पूरा प्रकरण
कांग्रेस की तत्कालीन हुड्डा सरकार के कार्यकाल के दौरान करीब 900 एकड़ जमीन का अधिग्रहण कर उसे बिल्डर्स को औने-पौने दाम पर बेचने का आरोप है। भूपेंद्र सिंह हुड्डा के कार्यकाल के दौरान मानेसर, नौरंगपुर और लखनौला में करीब 912 एकड़ जमीन के अधिग्रहण के लिए अधिसूचना जारी की गई थी। ग्रामीणों को सेक्शन 4, 6 और 9 के नोटिस थमा दिए गए थे। आरोप है कि इसके बाद हरियाणा सरकार से पहले कुछ निजी बिल्डरों ने किसानों को अधिग्रहण की धमकी देकर उनकी जमीन औने-पौने दाम में खरीदनी शुरू कर दी।
आरोप है कि यह पूरा घटनाक्रम तत्कालीन सरकार के संरक्षण में चल रहा था। इसी दौरान उद्योग निदेशक ने सरकारी नियमों की अवहेलना करते हुए बिल्डर द्वारा खरीदी गई जमीन को अधिग्रहण प्रक्रिया से मुक्त कर दिया। आरोप है कि निजी बिल्डरों ने तत्कालीन सरकार तथा संबंधित अधिकारियों के साथ मिलकर करीब 400 एकड़ जमीन को खरीदा था। अधिसूचना रद करने से नाखुश किसान सीबीआई जांच की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट पहुंच गए थे। जिसके बाद मामले की सीबीआइ जांच के आदेश दिए थे।