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Agricultural law: हरियाणा के विशेषज्ञों का मत- कृषि कानून किसान उत्पादक संघ व प्रगतिशील किसानों के लिए वरदान

Agricultural Law हरियाणा के प्रगतिशील किसानों और कई कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि तीनों कृषि कानून किसान उत्‍पादक संघ और प्र‍गतिशील किसानों के लिए वरदान की तरह है। हरियाणा में 80 हजार प्रगतिशील किसान और एफपीओ से जुड़े 70 हजार किसानों को इस कानून का फायदा मिलेगा।

By Sunil Kumar JhaEdited By: Published: Mon, 07 Dec 2020 06:13 PM (IST)Updated: Mon, 07 Dec 2020 06:13 PM (IST)
Agricultural law: हरियाणा के विशेषज्ञों का मत- कृषि कानून किसान उत्पादक संघ व प्रगतिशील किसानों के लिए वरदान
कृषि कानूनों को हरियाणा के विशेषज्ञों ने प्रगतिशील किसानों के लिए वरदान बताया है। (फाइल फोटो)

चंडीगढ़, [अनुराग अग्रवाल]। Agricultural Law: हरियाणा के प्रगतिशील किसानों और विशेषज्ञों का कहना है कि देशभर में काम कर रहे किसान उत्पादक संघ (एफपीओ) और प्रगतिशील किसानों के लिए तीनों कृषि कानून किसी वरदान से कम नहीं हैं। फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी मांग रहे अधिकतर किसान धान, गेहूं और सरसों की परंपरागत फसलों की पैदावार कर रहे हैं। केंद्र सरकार हर साल गेहूं, धान, मसूर, उड़द, मूंग, अरहर, सरसों, चना और मूंगफली समेत करीब दो दर्जन फसलों के एमएसपी तय करती है।

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परंपरागत फसलों की खेती करने वाले इन किसानों के लिए एमएसपी ज्यादा बड़ा मुद्दा नहीं है। मंडियों में उनकी फसल एमएसपी पर ही बिक रही है, लेकिन तीनों कृषि कानून रद कराने की जिद और राजनीतिक फेर में फंसे इन किसानों को अपने सुनहरे भविष्य की राह नजर नहीं आ रही है।

हरियाणा में 80 हजार प्रगतिशील किसान और एफपीओ से जुड़े 70 हजार किसानों को मिलेगा फायदा

हरियाणा में करीब 80 हजार किसान ऐसे हैं, जो प्रगतिशील किसानों की श्रेणी में शामिल हैं। 70 हजार किसान एफपीओ से अलग से जुड़े हैं। केंद्र सरकार ने देश में 10 हजार नए किसान उत्पादक संघ (एफपीओ) बनाने का ऐलान पहले से कर रखा है। एफपीओ से कोई भी किसान जुड़कर अपनी आजीविका कमा सकता है। प्रगतिशील किसान व एफपीओ चाहते हैं कि परंपरागत फसलों की खेती करने वाले किसान धान-गेहूं-गन्ने के मकड़जाल से बाहर निकलकर इनोवेटिव (खोज एवं तकनीकपूर्ण) खेती की ओर अग्रसर हों, ताकि उनके लाभ में बढ़ोतरी हो सके।

MSP कानून बना तो गायब होंगे निजी खरीदार, फसल खरीद को हरियाणा में पड़ेगी 10 लाख करोड़ की जरूरत

आश्चर्य की बात यह है कि प्रगतिशील किसान फसल विविधिकरण अपनाते हुए जिन फलों, सब्जियों, मसालों या फूलों की खेती करते हैं, उनके एमएसपी तय नहीं होते। कांट्रेक्ट फार्मिंग और खुला बाजार ही उनकी आय में बढ़ोतरी का बड़ा जरिया है। यह किसान मार्केट की जरूरत और खाद्य प्रसंस्करण इकाइयों (फूड प्रोसेसिंग यूनिट) की डिमांड के हिसाब से फसलों की खेती करते हैं।

फिर उन्हें अपनी मर्जी के हिसाब से फसल के दाम मिलते हैं। एमएसपी की गारंटी का कानून बनने के बाद न केवल मार्केट से खरीददारों के गायब हो जाने का खतरा पैदा हो जाएगा, बल्कि खरीददार नहीं होने की स्थिति में किसानों के सामने भी अपनी फसल को बेचने का बड़ा संकट पैदा होगा।

दिल्ली-हरियाणा के बार्डर पर जमा जो किसान तीनों कृषि कानूनों को रद करने की जिद पकड़े हुए हैं, वह उनकी एफपीओ और प्रगतिशील किसानों के विरुद्ध तो लड़ाई है ही, साथ ही खुद के लिए भी वह परेशानी खड़ी कर रहे हैं। मार्केट में उतार-चढ़ाव किसी से छिपे नहीं हैं।

अर्थशास्त्री डा. एमएम गोयल और डा. रमेश मदान के अनुसार पूरे देश में सभी फसलों की एमएसपी की गांरटी देकर सभी उत्पादों को एकसाथ कंट्रोल करना आसान काम नहीं है। बाजार में यदि फसल या उत्पाद का रेट सस्ता है तो सरकार के पास एमएसपी पर अपना माल बेचने वालों की लाइन नहीं टूटेगी। वह बढ़ती चली जाएगी। फिर मार्केट व किसान का भगवान ही मालिक होगा।

प्रगतिशील किसान वरुण, हरेकृष्ण, प्रीतम सिंह, विकास चौधरी, गिरिराज, नरेंद्र, दिनेश मनौली और कंवल चौहान के अनुसार पूरे देश में फिलहाल एमएसपी पर डेढ़ लाख करोड़ रुपये के अनाज की खरीद होती है। इसमें अकेले 90 हजार करोड़ की फसल पंजाब व हरियाणा के किसानों की खरीदी जाती है।

उनका कहना है कि हर फसल को यदि सरकार एमएसपी पर खुद ही खरीदने लगेगी तो मार्केट में नए खरीददार नहीं पैदा होंगे, प्रतिस्पर्धा खत्म हो जाएगी, प्राइवेट सेक्टर में किसान की फसल अधिक दाम पर खरीदने की होड़ नहीं रहेगी और केंद्र को बाकी सभी मदों की बजाय सिर्फ खेती के लिए ही बजट का इंतजाम करना होगा। अकेले हरियाणा व पंजाब की सभी फसलों की एमएसपी पर खरीद के लिए केंद्र सरकार को कम से कम 10 लाख करोड़ रुपये का इंतजाम करना पड़ेगा, जो कि संभव नहीं है।

छोटे और सीमांत किसानों को मकड़जाल से बाहर निकालेंगे एफपीओ, सरकार देगी 15 लाख

विशेषज्ञों का कहना है कि केंद्र सरकार ने जिन 10 हजार नए किसान उत्पादक संगठन बनाने की मंजूरी दी है, वह अगले चार से पांच साल में तैयार हो जाएंगे। इन पर 4,496 करोड़ रुपये खर्च होंगे। इनका रजिस्ट्रेशन कंपनी एक्ट में ही होगा, इसलिए इसमें वही सारे फायदे मिलेंगे जो एक कंपनी को मिलते हैं। ये संगठन कापरेटिव पालिटिक्स से बिल्कुल अलग होंगे यानी इन कंपनियों पर कापरेटिव एक्ट लागू नहीं रहेंगे।

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विशेषज्ञों के अनुसार, एफपीओ किसानों का वह संगठन होता है, जिसमें खेती करने वाले सभी किसान शामिल होते है। अगर अकेला किसान अपनी पैदावार बेचने जाता है, तो उसका मुनाफा बिचौलियों को मिलता है। छोटे और सीमांत किसानों की संख्या 86 फीसदी है, जिनके पास देश में 1.1 हेक्टेयर से कम औसत खेती है। कम से कम 11 किसान और अधिकतम कितने भी संगठित होकर अपनी एग्रीकल्चर कंपनी या संगठन बना सकते हैं। मोदी सरकार एफपीओ को 15 लाख रुपये देने की बात कर रही है। इस योजना का फायदा कंपनी का काम देखकर तीन साल में दिया जाएगा।

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