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अभय चौटाला ने गंवाया गढ़, फिर भी हार का गम कम और इस कारण है खुशी ज्‍यादा

जींद उपचुनाव में बुरी तरह पराजित होने के साथ ही अभय चौटाला ने इनेलो का गढ़ गंवा दिया, लेकिन उनको पार्टी की हार पर दुख कम और भतीजे दिग्विजय चौटाला की हार से खुशी ज्‍यादा है।

By Sunil Kumar JhaEdited By: Published: Thu, 31 Jan 2019 08:42 PM (IST)Updated: Fri, 01 Feb 2019 08:50 AM (IST)
अभय चौटाला ने गंवाया गढ़, फिर भी हार का गम कम और इस कारण है खुशी ज्‍यादा
अभय चौटाला ने गंवाया गढ़, फिर भी हार का गम कम और इस कारण है खुशी ज्‍यादा

चंडीगढ़, जेएनएन। कभी चौधरी देवीलाल और ओमप्रकाश चौटाला का गढ़ रहे जींद में इनेलो बुरी तरह हार गई। यह अभय चौटाला के लिए बड़ा झटका है, लेकिन उनको इस हार के गम से अधिक भतीजे दिग्विजय चौटाला के नहीं जीत पाने की हे। वास्‍तव में इनेलो व अभय के लिए अपनी हार से अधिक बड़ा धक्का दिग्विजय की जीत  साबित हो सकती थी। यदि जननायक जनता पार्टी के दिग्विजय चुनाव जीत जाते तो यह अभय चौटाला के लिए यह अधिक चुनौती भरा होता। लिहाजा इनेलो समर्थक जहां अपनी हार पर दुखी हैैं, वहीं जेजेपी की पराजय पर खुश भी हैैं।

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जननायक जनता पार्टी यदि चुनाव जीत जाती तो अधिक बढ़तीं इनेलो की मुश्किलें

अभय चौटाला और उनके बड़े अजय चौटाला के राजनीतिक रिश्तों के साथ-साथ पारिवारिक रिश्ते भी अब अलग हो चुके। इनेलो की कोख से पैदा हुई जननायक जनता पार्टी के संस्‍थापक दुष्‍यंत और दिग्विजय चौटाला ने अपने चाचा अभय चौटाला को खुली चुनौती दी थी। हालांकि इसकी नींव खुद अभय चौटाला के प्रयासों से रखी गई, जब अजय सिंह, दुष्यंत और दिग्विजय को पार्टी से निकाल दिया गया।

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जेजेपी की जींद के रण में शुरुआती पारी थी। जेजेपी ने यहां उम्मीद से कहीं अधिक अच्छा प्रदर्शन किया। आम आदमी पार्टी ने भी जेजेपी को अपना समर्थन दिया, लेकिन इसके बावजूद जेजेपी यहां जीत दर्ज नहीं करा सकी। इनेलो का प्रदर्शन तो बेहद निराशाजनक रहा है, लेकिन अभय चौटाला समर्थकों के लिए तब अधिक दिक्कतें बढ़ जाती, यदि जेजेपी यहां से चुनाव जीत जाती। ऐसे में अभय चौटाला समर्थक अपनी हार से कम दुखी और जेजेपी की पराजय से अधिक खुश हैैं।

इनेलो की बसपा से दोस्ती में पड़ सकती है दरार, विधायकों को रोके रखना अभय के लिए बड़ी चुनौती

जींद उपचुनाव के नतीजे राज्य के प्रमुख विपक्षी दल इनेलो के लिए सबसे अधिक कड़वाहट भरे रहे हैं। इस नतीजे का असर इनेलो व बसपा की दोस्ती पर भी पड़ सकता है। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि दोनों दलों की दोस्‍ती में दरार आने की आशंका बढ़ गई है। इसके साथ ही अभय चौटाला के विधायकों के भी दूसरे दलों की तरफ मुड़ने के हालात बन रहे हैं। एेसे में लोकसभा चुनाव से पहले इनेलो में भगदड़ संभव है। जींद कभी इनेलो का गढ़ हुआ करता था। यहां से दिवंगत विधायक डाॅ. हरिचंद मिढ़ा नौ साल तक इनेलो के विधायक रहे।

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जींद उपचुनाव में इनेलो का जो हश्र हुआ, वैसा किसी ने सोचा न था। उपचुनाव में मिली करारी हार के बाद अभय चौटाला को राजनीतिक रूप से कई तरह की मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है। उनकी पार्टी को भतीजों दुष्यंत व दिग्विजय चौटाला ने हाइजेक कर लिया। अभय चौटाला खेमे के विधायकों की जींद उपचुनाव में उपस्थिति भी औपचारिकता ही साबित हुई, जबकि खुद अभय चौटाला, उनके बेटे करण चौटाला, अर्जुन चौटाला, इनेलो के प्रदेश अध्यक्ष अशोक अरोड़ा और पूर्व सीपीएस रामपाल माजरा आखिर तक डटे रहे।

जींद उपचुनाव में प्रचार के दौरान एक समय ऐसा भी आया जब दो दिन के लिए पूरा प्रचार चौटाला परिवार की आपसी कलह पर केंद्रित हो गया। प्रचार के दौरान अभय ने अपने भाई अजय चौटाला के परिवार से नाता तोड़ने का ऐलान भी कर दिया। चुनाव में तिहाड़ जेल से ओम प्रकाश चौटाला की तरफ से इनेलो उम्मीदवार उम्मेद सिंह रेढू के हक में अपील भी जारी हुई लेकिन यह अपील भी बेअसर हो गई। गढ़ बचाने के लिए अभय चौटाला ने 17 साल पुराने कंडेला कांड के लिए माफ भी मांगी। अन्य प्रत्याशियों के मुकाबले जाट समुदाय का वोट भी इनेलो प्रत्याशी को आशा के अनुरूप नहीं मिला।

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मतगणना के दौरान छठे चरण में तो आलम यह था कि इनेलो प्रत्याशी को 40 वोट तो नोटा को 64 वोट मिले। इससे तय माना जा रहा है कि इनेलो में अभय चौटाला के लिए मुश्किलें बढ़ेंगी। उनके सामने नेताओं को पार्टी में रोकना सबसे बड़ी चुनौती होगी। उनके प्रत्याशी को साढे तीन हजार से भी कम वोट मिलने के बाद बहुजन समाज पार्टी द्वारा गठबंधन को जारी रखने पर चर्चाओं का दौर शुरू हो गया है। बताया जाता है कि बसपा सुप्रीमो मायावती पहले ही दुष्यंत चौटाला और राजकुमार सैनी के संपर्क में हैं।

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इनेलो में बिखराव का भाजपा को मिला फायदा : अरोड़ा

दूसरी ओर बहादुरगढ़ के इनेलो के प्रदेश प्रधान डॉ. अशोक अरोड़ा ने कहा कि जींद उपचुनाव में भाजपा को इनेलो में बिखराव का फायदा मिला। उपचुनाव में पार्टी की हार के कारणों पर मंथन किया जाएगा। जो कमियां रह गईं उन्हें दूर किया जाएगा। उन्होंने कहा कि जींद उपचुनाव में इनलो ही सभी राजनीतिक दलों के टारगेट पर थी। जहां धन, धर्म, जाति और बल के बूते पर चुनाव लड़ा गया हो, वहां भला एक गरीब किसान का बेटा कैसे टिक सकता था।

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अशोक अरोड़ा ने कहा कि कांग्रेस और भाजपा को इनेलो के बिखराव का फायदा मिला। जींद उप चुनाव में भाजपा, कांग्रेस और जजपा के उम्मीदवार हैवीवेट नेता थे। भाजपा उम्मीदवार को सहानुभूति का फायदा मिला। जेजेपी उम्मीदवार  दिग्विजय के अच्छे प्रदर्शन पर उन्होंने कहा कि भगवान इन बच्चों को सदबुद्धि दें।

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