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बरोदा के रण में पूरा दमखम दिखा रहे 86 साल के चौटाला, गढ़ पर दोबारा कब्‍जे को लगा रहे जोर

Haryana Baroda By Election 2020 हरियाणा के पूर्व मुख्‍यमंत्री और इंडियन नेशनल लोकदल के प्रधान ओमप्रकाश चौटाला बरोदा के रण में पूरा जोर लगा रहे हैं। 86 साल के चाैटाला अपने गढ़ पर कब्‍जा करने के लिए पूरा जोर लगा रहे हैं।

By Sunil Kumar JhaEdited By: Published: Tue, 27 Oct 2020 03:25 PM (IST)Updated: Tue, 27 Oct 2020 03:25 PM (IST)
बरोदा के रण में पूरा दमखम दिखा रहे 86 साल के चौटाला, गढ़ पर दोबारा कब्‍जे को लगा रहे जोर
हरियाणा के पूर्व सीएम और इनेलो के प्रमुख ओमप्रकाश चौटाला।

चंडीगढ़, [अनुराग अग्रवाल]। ताऊ देवीलाल की राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाते हुए हरियाणा के पांच बार मुख्यमंत्री रहे 86 साल के ओमप्रकाश चौटाला में पूरा दमखम बरकरार है। उम्र के इस पड़ाव पर पहुंचने के बावजूद चौटाला की गाड़ी का पहिया बरोदा विधानसभा क्षेत्र में लगातार घूम रहा है। 3 नवंबर को होने वाले उपचुनाव में चौटाला बरौदा के अपने पुराने गढ़ को जीतने की ताबड़तोड़ कोशिश में जुटे हैं तो साथ ही इनेलो के विघटन के बाद बिखरे वोट बैंक को वापस जोड़ने की कवायद में भी जुटे हैं। उनके इस काम में सहयोग कर रहे हैं चौटाला के राजनीतिक वारिस अभय सिंह चौटाला।

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1977 से छह बार चुनाव जीत चुके देवीलाल और चौटाला के उम्मीदवार

सोनीपत जिले का बरोदा विधानसभा क्षेत्र हमेशा से ही इनेलो के लिए उपजाऊ रहा है। इस सीट पर छह बार ताऊ देवीलाल के लोकदल और ओमप्रकाश चौटाला की इनेलो पार्टी के उम्मीदवार जीत दर्ज कराते रहे हैं। कांग्रेस भी यहां छह बार चुनाव जीत चुकी है। कांग्रेस के टिकट पर जीत की लगातार हैट्रिक लगाने वाले श्रीकृष्ण हुड्डा के निधन के बाद इस सीट को वापस हासिल करने के लिए ओमप्रकाश चौटाला और उनके बेटे अभय सिंह चौटाला ने पूरा जोर लगा दिया है। इनेलो ने यहां से अपने पुराने उम्मीदवार जोगिंदर मलिक को मैदान में उतारा है।

 चौटाला पिता-पुत्र के लिए बरोदा का रण रखता है खास मायने, भावनात्मक लगाव से बना रहे माहौल

बरोदा एक मेटाडोरनुमा रथ में सवार होकर बरोदा हलके का दौरा कर रहे हैं। उनकी सभाओं में न केवल चौटाला के पुराने कद्रदान जुड़ते नजर आ रहे हैं, बल्कि महिलाओं में खासा क्रेज बना हुआ है। चौटाला गाड़ी में बैठे-बैठे सिर्फ एक ही बात कहते हैं, हमें गद्दारों और प्रदेश के दुश्मनों से बदला लेना है। महिलाएं और पुराना काडर भी चौटाला को हाथ उठाकर भरोसा दिलाता है। कहते हुए सुनाई देता है, चिंता न करो, वोट थमै ही देंगे।

एक गांव से आश्वस्त होकर चौटाला दूसरे गांव की तरफ कूच करते हैं। उनसे पहले अभय सिंह चौटाला और अभय से पहले उनके बेटे कुरुक्षेत्र लोकसभा का चुनाव लड़ चुके अर्जुन चौटाला बरोदा हलके में माहौल बना चुके हैं। बरोदा के रण में गठबंधन सरकार की खामियों तथा कांग्रेस की आपसी गुटबाजी को उजागर करते हुए पिता-पुत्र चौटाला अपना पुराना गढ़ वापस जीतने के प्रति भरोसेमंद दिखाई देते हैं।

इसके साथ ही वह अपने पोते पर कटाक्ष करने का कोई मौका भी नहीं चूकते। चौटाला के विरोधी हालांकि उनकी यादाश्त को लेकर सवाल खड़े करते हैं, लेकिन जब चौ टाला अपने पुराने कार्यकर्ताओं से मिलते हैं तो सहज ही अलग माहौल नजर आने लगता है।

लोकदल और इनेलो के उम्मीदवार बरोदा में 1977 से लगातार जीतते आ रहे हैं। 2005 के बाद यहां कांग्रेस का कब्जा हो गया था। अब चौटाला पिता-पुत्रों व हुड्डा पिता-पुत्रों के बीच इस हलके को छीनने की भिड़ंत हैं। हुड्डा व चौटाला की इस राजनीतिक लड़ाई में भाजपा-जजपा गठबंधन के उम्मीदवार पहलवान योगेश्वर फायदा उठाने की फिराक में हैं। उनके लिए सत्तारूढ़ भाजपा-जजपा गठबंधन का पूरा सिस्टम काम कर रहा है।

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