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Haryana Scam: बिना काम के कर दिया 200 करोड़ रुपये का भुगतान, मामला फरीदाबाद नगर निगम का

Haryana Scam हरियाणा के फरीदाबाद नगर निगम में हुए घोटाले में बड़े तथ्‍य सामने आ रहे हैं। नगर निगम में बिना काम किए ही ठेकदारों को करीब 200 करोड़ रुपये का भुगतान कर दिया गया। इस मामले में फिलहाल दो इंजीनियर और एक ठेकदार जेल में है।

By Sunil Kumar JhaEdited By: Published: Thu, 30 Jun 2022 06:50 PM (IST)Updated: Thu, 30 Jun 2022 06:50 PM (IST)
फरीदाबाद नगर निगम में बड़ा घोटाला सामने आया है। (फाइल फोटो)

नई दिल्ली, [बिजेंद्र बसंल]। हरियाणा में एक ही नगर निगम में अधिकारियों ने मिलीभगत कर बिना काम हुए ठेकेदार को करीब 200 करोड़ रुपये का भुगतान कर दिया। फिलहाल ठेकेदार और दो मुख्य अभियंता जेल में हैं। स्टेट विजिलेंस ब्यूरो इसकी जांच कर रहा है। विजिलेंस ने पहले ठेकेदार और फिर एक-एक कर मुख्य अभियंताओं को गिरफ्त में लिया। अब इन तीनों सहित एक अन्य कर्मचारी का आमना-सामना भी करा दिया है। इससे विजिलेंस को भ्रष्ट तंत्र तक पहुंचने में सहयोग मिलेगा।

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फरीदाबाद में हुए 200 करोड़ के बिना काम भुगतान घोटाले की जांच कर रही है स्टेट विजिलेंस

सरकारी विभागों में काम के भुगतान के बदले कमीशन के लेनदेन की शिकायतें तो आम रहती हैं, मगर ऐसा मामला पहली बार सामने आया कि बिना काम हुए सरकारी विभाग से 200 करोड़ रुपये का भुगतान हो गया। फरीदाबाद नगर निगम में यह घोटाला 2020 में सामने आया। इसके बाद इस तरह के मामले गुरुग्राम, पंचकूला, करनाल से लेकर अन्य स्थानीय निकाय संस्थाओं में भी सामने आने लगे। राज्य सरकार ने स्टेट विजिलेंस को इन सबकी जांच का आदेश दिया है।

पार्षद, विधायक, अधिकारियों और ठेकेदारों के बीच होती रही सरकारी धन की बंदरबांट

फरीदाबाद नगर निगम में 2002 में भी एक ऐसा मामला आया था, तब चाचा चौक से सोहना चौक और सोहना चौक से चाचा चौक तक एक ही सड़क बनवाने की दो फाइल बनी। दोनों फाइल के हिसाब से नगर निगम ने भुगतान भी किया। मामला खुला तो राजनीतिक दबाव के चलते दबा दिया गया। ऐसे मामलों से बचने के लिए 2007 में तत्कालीन निगमायुक्त राजेश खुल्लर ने एक नियम बनाया। यह नियम था कि किसी भी विकास कार्य को करवाने की अनुमति तब दी जाती थी, जब उस क्षेत्र के लोग निगमायुक्त कार्यालय में उपस्थित होकर अपनी संस्तुति करें।

बिना काम भुगतान का भ्रष्ट फार्मूला फरीदाबाद से गुरुग्राम, पंचकूला व करनाल तक भी पहुंच गया

इतना ही नहीं इन्हीं लोगों की संस्तुति पर निगम ठेकेदार का भुगतान करता था। इन लोगों की कमेटी को नाम दिया गया विकास कमेटी। तब यह विकास कमेटी इतनी प्रभावी बन गई थी कि ठेकेदार घटिया निर्माण सामग्री का इस्तेमाल नहीं कर पाता था। संबंधित क्षेत्र के लोग जो विकास कमेटी में शामिल होते थे, वे घटिया निर्माण सामग्री इस्तेमाल होने पर निगमायुक्त से शिकायत कर देते थे। इससे संबंधित क्षेत्र के पार्षद और इंजीनियरिंग विभाग सहित लेखा विभाग के अधिकारियों का कमीशन भी ठेकेदार ने बंद कर दिया।

ठेकेदार तब खुश रहते थे, क्योंकि उन्हें न तो गलत काम करना होता था और न ही गलत काम की एवज में कमीशन देना होता था। अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों ने इस ईमानदार नियम को बदलवा दिया। विकास कमेटी को असंवैधानिक बताकर खत्म करवा दिया गया। तत्कालीन निगमायुक्त राजेश खुल्लर के तबादले के साथ ही विकास कमेटियों का भी अंत हो गया। इसके बाद अधिकारी भ्रष्ट पार्षद और विधायकों के साथ मिलकर सरकारी धन की बंदरबांट करने लगे।

बंदरबांट के लिए हर नियम को रखा ताक पर

नगर निगम के भ्रष्ट अधिकारियों ने सरकारी धन की बंदरबांट करने के लिए हर नियम को ताक पर रखा। एक आइएएस अधिकारी ने अपने कार्यकाल में एक ही तरह के काम की राशि को दो बार बढ़ा दिया। ऐसे एक नहीं कई उदाहरण हैं।

केस स्टडी: फरीदाबाद निगम के वार्ड नंबर-14 में इंटरलाकिंग टाइल लगवाने के लिए आठ नवंबर 2017 को 55 लाख 22 हजार 190 रुपये की फाइल मंजूर हुई।

इसके बाद निगमायुक्त ने इस कार्य को बढ़ाकर 99 लाख 321 रुपये रुपये का मंजूर कर दिया। एक करोड़ रुपये से ऊपर के विकास कार्य की फाइल चूंकि चुने प्रतिनिधियों की वित्त एवं संविदा कमेटी के पास जाती है। इसलिए इसकी राशि एक करोड़ रुपये से कम ही रहने दी गई।

भ्रष्ट तंत्र के हौसले इतने बुलंद थे कि 30 अक्टूबर 2018 को इसी फाइल को एक बार फिर बढ़ाकर 1 करोड़ 97 लाख 52 हजार 352 रुपये की मंजूर कर दिया। नियमानुसार यह फाइल वित्त संविदा कमेटी को भेजी जानी चाहिए मगर यह फाइल वहां नहीं भेजी गई। बाद में इसका भुगतान दाे अलग-अलग निगमायुक्त ने किया। विजिलेंस जो जांच कर रही है, वह सिर्फ बिना काम भुगतान करने वाले अधिकारियों के खिलाफ कर रही है।


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